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व्रत-सूची
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जब कि सूर्य कर्क एवं सिंह राशि में होता है, उस समय उनमें स्नान नहीं किया जाता, जो धाराएँ १००८ धनु लम्बी नहीं होतीं, वे नदियाँ नहीं कहलातीं. वे केवल छिद्र या गर्त कहलाती हैं। देखिए गोभिलस्मृति (१११४१. १४२); निर्णयसिन्धु (१०९-११०); (एक धन ४ हाथ)। श्रावण में कतिपय देव विभिन्न तिथियों पर पवित्रारोपणव्रत (देखिए इसी सूची में) पर बुलाये जाते हैं; श्रावण में प्रति सोमवार को उपवास करना चाहिए या नक्त-विधि करनी चाहिए (स्मृतिकौस्तुभ १३९); दोनों पक्षों की नवमियों पर कौमारी नाम से दुर्गा की पूजा करनी चाहिए (कृत्यरत्नाकर २४४, स्मृतिकौस्तुभ २००); तमिल प्रदेशों में श्रावण कृष्ण १ को सभी वैदिक ब्राह्मण गायत्री का जप १००८ बार करते हैं। श्रावण की अमावास्या को कुशोत्पाटिनी कहा जाता है क्योंकि उस दिन कुश एकत्र किये जाते हैं (कृत्यरत्नाकर ३१६, स्मृतिकौस्तुभ २५२) । इस अमावास्या पर अपुत्रवती नारियाँ या वे नारियाँ, जिनकी सन्तान बचपन में ही मर जाती है, उपवास करती हैं, ब्रह्माणी एवं अन्य माताओं की प्रतिमाओं के लिए आठ कलश स्थापित करती हैं।
श्रावणिकावत : मार्गशीर्ष शुक्ल ८ एवं १४ पर; स्नान करके मध्याह्न के समय कर्ता को कई नारियों या एक नारी (यदि वह धनहीन हो) या सुचरित्र ब्राह्मण सगोत्र नारियों एवं एक विद्वान् एवं सुचरित्रवान् ब्राह्मण को आमन्त्रित करना चाहिए, उनके चरणों को पखारना चाहिए, उन्हें अर्घ्य देना चाहिए, गन्ध आदि से उनकी पूजा करनी चाहिए तथा भोजन देना चाहिए; नारियों के समक्ष सूतों एवं मालाओं से आवृत १२ जलपूर्ण घट रखे जाने चाहिए, अपने सिर एक घट रखना चाहिए तथा केशव का ध्यान करना चाहिए, प्रार्थना करनी चाहिए कि वह पितृ-ऋणों, देव-ऋणों एवं मनुष्य-ऋणों से मुक्त हो जाये; नारियाँ आशीर्वचन देती हैं - ऐसा ही हो'; तिथिव्रत; देवता श्रावण्य नामक देवियाँ, जो ब्रह्मा से जाकर कर्ता जो कुछ अच्छा या बुरा करता है, कहती हैं; हेमाद्रि (व्रत० २, १३४-१३९, भविष्योत्तरपुराण से उद्धरण)।
श्रीपंचमी : (१) मार्गशीर्ष शुक्ल ५ पर लक्ष्मी की स्वर्णिम, रजत, ताम्र, काष्ठ या मिट्टी की प्रतिमा का निर्माण या किसी वस्त्र-खण्ड पर उसका चित्र खींच कर पुष्पों से पूजा तथा आपादमस्तक पूजा; पतिव्रता नारियों का कुंकुम, पुष्पों, भोजन एवं प्रणाम आदि से सम्मान ; एक घृतपूर्ण पात्र के साथ एक प्रस्थ चावल का दान तथा 'लक्ष्मी मुझसे प्रसन्न हों' ऐसा कहना ; प्रत्येक मास में लक्ष्मी के विभिन्न नामों से ऐसा ही एक वर्ष तक करना; अन्त में एक मण्डप में लक्ष्मी-प्रतिमा-पूजन, प्रतिमा का एक गाय के साथ दान तथा साफल्य के लिए श्री से प्रार्थना; २१ पीढ़ियों तक समृद्धि; हेमाद्रि (व्रत० १, ५३७-५४३, भविष्योत्तरपुराण, अध्याय ३७।१-५८ से कुछ विभिन्नता के साथ उद्धरण); (२) सफलता के लिए अन्य व्रत है श्रवण-नक्षत्र या उत्तराफाल्गुनी एवं सोमवार के साथ पंचमो पर; चौथ पर एकभक्त; दूसरे दिन बिल्व वृक्ष की पूजा, जिसके नीचे आठ दिशाओं में आठ कलश रखे रहते हैं ; इन कलशों में पवित्र जल, रत्न, दूर्वा, श्वेत कमल आदि छोड़े जाते हैं; लक्ष्मी की प्रार्थना एवं पूजा; कलश के मध्य में नारायण का आवाहन एवं नारायण-प्रतिमा-पूजन; एक वर्ष तक या जब तक सफलता न प्राप्त हो जाये ; हेमाद्रि (व्रत० १, ५४६-५५२, गरुडपुराण से उद्धरण); (३) माघ शुक्ल ५ पर जलपूर्ण पात्र में या शालग्राम प्रस्तर पर लक्ष्मी पूजा, क्योंकि उस दिन वे विष्णु के आदेश पर इस विश्व में आयीं ; भुजबलनिबन्ध (पृ० ३६३, पाण्डुलिपि) के मत से पूजा कुन्द पुष्पों से होती है; कृत्यतत्त्व (४५७-४५८); पुरुषार्थचिन्तामणि (९८) के मत से पूजा माघ शुक्ल ५ को किन्तु स्मृतिकौस्तुभ (४७९) के मत से उस दिन काम एवं रति की पूजा होती है और वसन्तोत्सव किया जाता है; (४) चैत्र शुक्ल ५ पर लक्ष्मी-पूजा; जीवन भर समृद्धि की प्राप्ति; नीलमतपुराण (पृ० ६२, श्लोक ७६६-७६८); स्मृतिकौस्तुभ (९२) ।
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