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धर्मशास्त्र का इतिहास
जोड़ी गायों एवं एक कपिल बल का दान ; माघ एवं आगे के मासों में मार्गशीर्ष तक विभिन्न भोजनों से नक्तविधि, मासव्रत हेमाद्रि ( व्रत० २,८४३-८४८); (२) कार्तिक में नक्त-विधि; मास के अन्त में गुड़ एवं घृतयुक्त तिल-रोटी का अर्पण अष्टमी एवं चतुर्दशी को उपवास, मार्गशीर्ष से आगे के मासों में शिव से सम्बन्धित पदार्थों का शिव-प्रतिमा को अर्पण; मासव्रत; देवता शिव; हेमाद्रि ( व्रत०२, ८४८-८५३, शिवधर्म पुराण से उद्धरण) ।
शैवोपवासव्रत : एक वर्ष तक प्रत्येक मास के दोनों पक्षों की अष्टमी एवं चतुर्दशी पर उपवास; देवता शिव ; हेमाद्रि ( वत० २, ३९७, भविष्यपुराण से उद्धरण) ।
शौर्यव्रत : आश्विन शुक्ल ७ पर संकल्प, ८ पर उपवास, ९ पर आटे से बना भोजन एवं दुर्गा पूजा तथा ब्रह्म-भोज; एक वर्ष तक यही विधि; तिथिव्रत; देवता दुर्गा; अन्त में कुमारियों को भोजन तथा उन्हें वस्त्र आदि का दान तथा 'देवी मुझ पर प्रसन्न हों' से प्रार्थना; विना विद्या पढ़े ज्ञान की उत्पत्ति, दुर्बल व्यक्ति शौर्य वाला हो जाता है, लुप्त राज्य प्राप्त हो जाता है। वराहपुराण (६४.१-६ ) ; कृत्यकल्पतरु ( व्रत० २७३ ) ; हेमाद्रि ( व्रत० १९५७-९५८ ) ; कृत्यरत्नाकर (३६४-३६५) ।
श्यामामहोत्सव : देखिए ऊपर 'द्राक्षा- भक्षण' ; हेमाद्रि ( व्रत० २ ९१५ आदित्यपुराण से उद्धरण ) ; कृत्यरत्नाकर (३०३-३०४) ।
श्येनग्रासनविधि : कार्तिक शुक्ल ४, ८, ९ या १४ पर; स्त्रियों के लिए; कृत (सत्य) युग में नारियाँ देवी तक पहुँचाने के लिए श्येन (बाज ) को एक ग्रास देती थीं ; किन्तु आजकल ऐसा नहीं किया जाता, अब नारियाँ भोजन अपने पतियों के पास ले जाती हैं और उसके उपरान्त खाती हैं; हेमाद्रि ( व्रत० २, ६४१-६४३, आदित्यपुराण से उद्धरण) ।
श्रवणद्वादशी : (१) भाद्रपद शुक्ल १२ को जब कि श्रवण नक्षत्र हो; एकादशी को उपवास ; द्वादशी को गंगा-यमुना के पवित्र जल से धोये गये मिट्टी के पात्र में भात एवं दही का दान; कृत्यकल्पतरु ( व्रत० ३४८, वायुपुराण से उद्धरण); (२) श्रवण नक्षत्र में १२ पर उपवास जनार्दन - पूजा; १२ द्वादशियों का पुण्य फल ; यदि श्रवण-द्वादशी बुधवार को पड़े तो उसे महान् कहा जाता है; तिथिव्रत; देवता विष्णु हेमाद्रि ( व्रत० १, ११६२-११७१, विष्णुधर्मोत्तरपुराण १।१६१।१-८ से उद्धरण ) ; अग्निपुराण के १५ श्लोक पाये जाते हैं; अधिकांश निबन्ध इसका विस्तृत वर्णन उपस्थित करते हैं; हेमाद्रि ( काल० २८९ - २९८ ) ; कालविवेक ( ४५९-४६४); निर्णयसिन्धु (१३७-१४० ) ; स्मृतिकौस्तुभ ( २४०-२४९ ) ; पद्मपुराण (६।७० ) में इसकी गाथा एवं माहात्म्य है; और देखिए गरुड़पुराण ( १, अध्याय १३६) ।
श्राद्धव्रत: केशव प्रतिमा के समक्ष शिव प्रतिमा पर चन्दन - लेप लगाना तथा जलधेनु एवं घृतधेनु का दान ; सभी पापों से मुक्ति एवं शिव-लोक-प्राप्ति; संवत्सर-व्रत देवता शिव; हेमाद्रि ( व्रत० २, ८६३, पद्मपुराण से उद्धरण) ।
श्रावण-कृत्य : कृत्यकल्पतरु (नयतकालिक, ३९५ - ३९७ ) ; कृत्य रत्नाकर (२१८-२५४); वर्षक्रियाकौमुदी ( २९२ ); कृत्यतत्त्व ( ४३७ - ४३८); निर्णयसिन्धु ( १०९-१२२ ) स्मृतिकौस्तुभ ( १४८-२०० ) ; पुरुषार्थचिन्तामणि ( २१५ -२२२) ।
श्रावण में बहुत-से महत्वपूर्ण व्रत किये जाते हैं, यथा - नागपंचमी, अशून्यशयनव्रत, कृष्ण जन्माष्टमी जिनका उल्लेख यहाँ पर यथास्थान किया गया है । यहाँ पर कुछ बातें दी जा रही हैं। ऐसी धारणा है कि उन नदियों को छोड़कर जो सीधे समुद्र में गिरती हैं, अन्य नदियाँ उस समय रजस्वला ( मासिक धर्म में ) कही जाती हैं.
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