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व्रत-सूची
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रहती हैं; गोरोचना से सभी शुभकामनाएँ उत्पन्न हुईं, गोमूत्र से गुग्गुल उत्पन्न हुआ, गोदुग्ध से विश्व की सम्पूर्ण शक्तिउदित हुई, दही से सभी शुभ वस्तुएँ एवं घृत से सभी समृद्धि उत्पन्न हुई; अतः दूध, दही एवं घृत से हरि-स्नान एवं गुग्गुल, दीप आदि से हरिपूजा की जाती है, पूजा अगस्त्यि - पुष्पों से भी की जाती है; कर्ता को विष्णुलोक - प्राप्ति एवं नरकवासी पितरों को स्वर्ग-प्राप्ति, जलधेनु, घृतधेनु, मधुधेनु का दान ; सभी पापों से मुक्ति; हेमाद्रि ( व्रत० १ ११५६ - ११५८, अग्निपुराण से उद्धरण) ।
शुक्लद्वादशी : देखिए नीचे शुभद्वादशी ।
शुभद्वादशी : मार्गशीर्ष शुक्ल १ को आरम्भ ; १ से ९ तक एक भक्त १० को स्नानोपरान्त मध्याह्न में केशव पूजा; दोनों पक्षों की द्वादशी पर ( मार्गशीर्ष से चार मासों तक ) तिल एवं हिरण्य का दान, चैत्र से वर मासों में भूसी निकाले हुए अन्नों एवं सोने से पूर्ण पात्रों का दान ; इसी प्रकार अन्य चार मासों में गोविन्दपूजा कार्तिक शुक्ल १२ पर सात पातालों, पर्वतों से युक्त पृथिवी की स्वर्णिम प्रतिमा का निर्माण और उसके समक्ष हरि प्रतिमा स्थापन एवं हरि-पूजा; जागर ( रात भर जागना ), दूसरे दिन प्रातः २१ ब्राह्मणों में से प्रत्येक को एक गाय, एक बैल, एक जोड़ा वस्त्र, अँगूठी, सोने का कंगन एवं कर्णफूल, एक ग्राम ( यदि कर्ता राजा हो) का दान तथा कृष्ण १२ पर पृथिवी की रजत प्रतिमा बनाकर उसका दान ; कर्ता को समृद्धि एवं विष्णुलोक की प्राप्ति; कृत्यकल्पतरु (व्रत० ३४० - ३४३ ) ; हेमाद्रि ( व्रत० १, ११०१-११०३, वराहपुराण ५५।१-५९ से उद्धरण ) ।
शुभ सप्तमी : आश्विन शुक्ल ७ पर; कपिला गाय की पूजा तथा ताम्रपात्र में एक प्रस्थ तिल तथा एक स्वर्णिम बैल का, वस्त्रों, पुष्पों एवं गुड़ का 'अर्यमा प्रसन्न हों' के साथ दान; तिथिव्रत; देवता अर्यमा ; प्रतिमास एक वर्ष तक; मत्स्यपुराण ( ८०११ - १४ ) ; कृत्यकल्पतरु ( व्रत० २३१-२२३ ) ; हेमाद्रि ( व्रत० १, ६४८-६५०, पद्मपुराण ५।२१।३०७-३२१ से उद्धरण); भविष्योत्तरपुराण ( ५१।१-१४) ।
शूलप्रदानव्रत : एक वर्ष तक सभी अमावास्याओं पर उपवास; तिथिव्रत वर्ष के अन्त में आर्ट से निर्मित त्रिशूल तथा सोने या चांदी का कमल शिव को अर्पण और उसे अपने सिर पर रखना तथा दान ; अहिंसा के नियमों का पालन, ब्रह्मचर्य, भूमि-शयन आदि का पालन; हेमाद्रि ( व्रत०२, २५२-२५३, शिवधर्मोत्तरपुराण से उद्धरण) ।
शैलव्रत: ( १ ) पर्वत-पूजा इच्छा पूर्ति एवं आनन्द प्राप्ति; हेमाद्रि ( व्रत० १, ७९६, विष्णुधर्मोत्तरपुराण से उद्धरण); (२) चैत्र शुक्ल १ से सात दिनों तक प्रति दिन सात पर्वतों, यथा --- महेन्द्र, मलय, सह्य, शुक्तिमान्, ऋक्ष, विन्ध्य एवं पारियात्र की पूजा; जौ से होम, केवल जौ का सेवन एक वर्ष तक; अन्त में २० प्रस्थ जौ का दान कर्ता राजा शत्रुओं पर विजय एवं पृथिवी राज्य पाता है; हेमाद्रि ( व्रत० १, ४६३ - ४६४, विष्णुधर्मोत्तरपुराण ३।१६१।१ ७ से उद्धरण) ।
शैवनक्षत्रव्रत: फाल्गुन शुक्ल में हस्त नक्षत्र से आरम्भ नक्त-विधि किन्तु तेल एवं नमक का त्याग ; शिव पूजन, पाद से सिर तक हस्त से आरम्भ कर सभी नक्षत्रों को समन्वित कर 'शिवायेति च हस्तेन पादौ सम्पूजयेद् विभोः' के रूप से पूजा; सभी नक्त-दिनों में घृतपूर्ण पात्र के साथ एक प्रस्थ चावल का दान ; पारण पर शिव एवं उमा की प्रतिमाओं, एक सुसज्जित पलंग तथा गाय का दान नक्षत्रव्रत; देवता शिव; हेमाद्रि (व्रत० २, ७०३-७०६, विष्णुधर्मोत्तरपुराण से उद्धरण) ।
शैवमहाव्रत : (१) पौष ८ से आरम्भ ; लगातार नक्त विधि, किन्तु दोनों पक्षों की अष्टमी पर उपवास ; दिन में तीन बार शिव पूजा, होम, भूमि-शयन; पौष पूर्णिमा पर घी से महापूजा; आठ ब्राह्मणों को भोज, एक
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