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व्रत-सूची
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दूसरे दिन प्रातः शिवभक्तों, अंधों, दरिद्रों एवं दलितों को भोजन; यह ऋतुव्रत है; शिव को रथ दान; हेमाद्रि ( व्रत०२, ८५९-८६०, विष्णुधर्मोत्तरपुराण से उद्धरण) ।
शिवरात्रिव्रत : देखिए 'महाशिवरात्रि' के अन्तर्गत ।
शिवलगव्रत : शिव-लिंग पर श्वेत चन्दन का लेप, खिले श्वेत कमलों से पूजा एवं प्रणाम; एक अँगूठ के बराबर छोटे लिंग को दक्षिणामूर्ति के समीप स्थापित कर बिल्व दलों से पूजा, धूप आदि अन्य उपचारों का अर्पण; सभी पापों से मुक्ति एवं शिवलोक की प्राप्ति; हेमाद्रि ( व्रत० २, ८८७-८८९, शिवधर्मोत्तर पुराण से उद्धरण) ।
शिवव्रत : (१) आषाढ़ पूर्णिमा से चार मासों तक नख- परित्याग एवं बैंगन का सेवन वर्जित कार्तिक पूर्णिमा पर एक स्वर्णिम घट को घी एवं मधु से भरकर दान; कृत्यकल्पतरु ( व्रत० ४४० - ४४१, मत्स्यपुराण ११।११-१२ से उद्धरण); (२) मार्गशीर्ष से कार्तिक तक शिव-पूजा ; शिव के समक्ष प्रत्येक मास में क्रम से आटे से बनी निम्नलिखित वस्तुओं का दान - घोड़ा, गज, रथ, ११ बैलों का एक झुण्ड, एक चन्द्र-ज्योति ( या कर्पूर का) घर, जिसमें दास-दासियाँ हों तथा अन्य गृहस्थी के उपकरण हों, धान से पूर्ण सात पात्र, दो सौ फल एवं गुग्गुल, दान का एक 'मण्डल, ' जिसमें खाद्य पदार्थ एवं चित्र हों, पुष्पों से निर्मित एक यान ( गाडी ) ; गुग्गुल धूप एवं देवदार, विल्व के बीज, घी एवं अगुरु भाद्रपद मास में जलाये जाते हैं; आश्विन मास भर अर्क की पतियों से
दोने में दूध एवं घी; एक दोने में ईख का रस जो वस्त्र से ढँका रहता है; वर्ष के अन्त में शिवभक्तों को भोज एवं पेय तथा सोने एवं वस्त्र का दान हेमाद्रि ( ० २,८१९-८२१, कालोत्तरपुराण से उद्धरण); (३) पौष से मार्गशीर्ष तक दोनों पक्षों की चतुर्दशी या अष्टमी या पूर्णिमा पर विशिष्ट पूजा, यथा -- एक प्रस्थ जौ, दूध एवं घी से पूर्ण शर्करा का नैवेद्य ; एक बैल के साथ एक वितस्ति ऊँचाई की जौ के आटे की कपिला गौ का निर्माण : माघ में ११ ब्राह्मणों एवं ४ गैंड़ों को खिलाना, फाल्गुन में नकुल को खिलाना, चैत्र में आटे की शिव-प्रतिमा, इसी प्रकार सभी मासों में विभिन्न पदार्थों का आटे से निर्माण; एक वर्ष तक; हेमाद्रि ( व्रत०२, ३९८-४००, काठोत्तरपुराण से उद्धरण); (४) दोनों पक्षों की अष्टमी एवं चतुर्दशी पर उपवास एवं अपराह्न में शिव-पूजा; जप एवं होम ; गुरु-सम्मान पंचगव्य के तीन चुलुकों (चुल्लुओं) का पान; दूसरे दिन केवल हविष्य भोजन; पूरे जीवन भर करना; शिवलोक में तीन पीढियों का निवास; हेमाद्रि (व्रत०२, ३४३, कालोत्तरपुराण से उद्धरण); (५) पौष में आरम्भ; गेहूँ, चावल एवं दूध के पदार्थों को नक्त विधि से खाना ; दोनों पक्षों की अष्टमी पर उपवास, भूमि-शयन पूर्णिमा पर घृत से रुद्र-स्नान; इसे एक वर्ष के लिए मार्गशीर्ष तक करना; विभिन्न मासों में विभिन्न पदार्थों का उपयोग; लिंगपुराण ( ८३।१३-५४); (६) एक अयन दूसरे अयन ( ६ मासों) तक; पुष्प एवं घी का अर्पण; अन्त में पुष्पार्पण, पायस एवं घी से ब्रह्म-भोज; घृतधेनु का दान इससे धन एवं स्वास्थ्य की प्राप्ति; कृत्यरत्नाकर (२१९, अग्निपुराण से उद्धरण ) ; (७) आषाढ़ पूर्णिमा से कार्तिक पूर्णिमा तक नाखून न कटाना; अन्त में सोने के साथ मघु एवं घृत से पूर्ण एक घट का दान कर्ता रुद्रलोक जाता है; कृत्यरत्नाकर ( २१९-२२० ); वर्षक्रियाकौमुदी ( २९२) ।
शिवव्रतेषु पूजा व्रतराज ( पृ० ५७-६१ ) ने शिव की सभी पूजाओं की विधि का उल्लेख किया है ।
शिवशक्ति महोत्सव- व्रत : काशी या श्रीशैल जैसे शिवक्षेत्र में शिव एवं शक्ति के सम्मान में अष्टमी - युक्त नवमी पर उत्सव ; कालनिर्णय ( १९७ ) ।
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