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धर्मशास्त्र का इतिहास
विषय में पूछा था ) की प्रतिमा का स्थापन; कृष्ण ने इस श्रद्धेया नारी की गाथा सुनायी है; हेमाद्रि ( व्रत० २, ६५९-६६५, भविष्योत्तरपुराण से उद्धरण) ।
शिखिव्रत : प्रत्येक मास के दोनों पक्षों की प्रथम तिथि पर एकभक्त की विधि; एक वर्ष तक; अन्त में कपिला-गोदान, वैश्वानरलोक की प्राप्ति; अग्नि० ( १७६।६-७ ) ; वर्षक्रि० (२९, मत्स्य ० १०१।९२ से उद्धरण) । शितव्रत: चतुर्थी पर एकभक्त विधि से भोजन, सर्वप्रथम एक गृहस्थ और उसके उपरान्त ७ घरों को नमक, धनियाँ, जीरा, मरिच, हींग, सोंठ एवं मनःशिला के साथ हल्दी देना; इससे समृद्धि की प्राप्ति; हेमाद्रि ( व्रत० १,५३१-५३२; भविष्योत्तरपुराण से उद्धरण); कृत्यरत्नाकर (९६-९८) ।
शिरोव्रत : वसिष्ठधर्मसूत्र २६ । १२; मुण्डक उ० ३ । २ । १०, इसके भाष्य में शंकराचार्य कहते हैं कि यह अथर्ववेदियों में प्रचलित, अग्नि (ज्ञान के प्रतीक) को सिर पर धारण करने की एक विधि है ।
शिवकृष्णाष्टमी : मार्गशीर्ष कृष्ण अष्टमी पर ; तिथिव्रत; देवता शिव; एक वर्ष तक प्रत्येक अष्टमी पर शिवलिंग की पूजा; प्रत्येक मास शिव के विभिन्न नाम एवं कार्तिक तक विभिन्न पदार्थों का सेवन, सभी पापों से मुक्ति; भविष्योत्तरपुराण ( ७५1१-३०), व्रतप्रकाश ( पाण्डुलिपि १४१ बी - १४३ ए ) ।
शिवचतुर्दशीव्रत : मार्गशीर्ष शुक्ल १३ ( अमान्त गणना के अनुसार ) पर एकभक्त शिव-प्रार्थना; चतुर्दशी को उपवास ; श्वेत कमलों, गन्ध आदि से पाद से लेकर सिर तक शंकर एवं उमा की पूजा; यही कार्तिक १४ तथा अन्यं चतुर्दशियों पर किया जाना चाहिए; मार्गशीर्ष से लेकर आगे के सभी १२ मासों में विभिन्न नामों से शंकर को प्रणाम प्रत्येक मास में १२ पदार्थों में से (यथा- गोमूत्र, गोबर, दूध, दही आदि ) किसी एक का पान; विभिन्न पुष्पों का प्रयोग, यथा -- मन्दार, मालती आदि; एक या १२ वर्षों तक कार्तिक में; वर्ष के अन्त में एक नील वृष का उत्सर्ग; किसी विद्वान् एवं सुचरित्रवान् ब्राह्मण को घट के साथ पलंग का दान ; एक सहस्र अश्वमंधों का फल, महापातक भी कट जाते हैं; मत्स्यपुराण ( ९५।५-३८); कृत्यकल्पतरु ( व्रत० ३७० ३७४ ) ; हेमाद्रि ( व्रत० २,५८-६१ ) ; कृत्यरत्नाकर ( ४६६-४७१ ) ; निर्णयसिन्धु ( २२६) ।
शिवव्रत : (१) कृष्ण ८ या १४ पर नक्त-विधि; इहलोक में आनन्द एवं मृत्यूपरान्त शिवलोक ; कृत्यकल्पतरु (३८६); हेमाद्रि ( व्रत०२, ३९८, भविष्यपुराण से उद्धरण); (२) एक वर्ष तक प्रत्येक पर्व पर नक्त ; एक वर्ष तक शिव पूजा; कृत्यकल्पतरु ( व्रत० ३८६ ) ; (३) अष्टमी, नवमी, त्रयोदशी एवं चतुर्दशी पर कर्ता केवल एकभक्त रहता है, पृथिवी पर रखा भोजन करता है; एक वर्ष तक कृत्यक० ( व्रत ३८६ - ३८७ ) । शिवनक्षत्र पुरुषव्रत : फाल्गुन शुक्ल में जब हस्त नक्षत्र हो तो उपवास करने में असमर्थ रहने वाले को इस व्रत का संकल्प करना चाहिए; यह नक्षत्रव्रत है; शिव देवता; पाद से लेकर सिर तक शिव के अंगों की पूजा, ,शिव के विभिन्न नामों का प्रयोग हस्त ( जिस पर यह आरम्भ होता है) एवं अन्य २६ नक्षत्रों से सम्बन्धित होता है; नक्त-विधि, किन्तु तेल एवं नमक का प्रयोग नहीं; पात्र में घी के साथ एक प्रस्थ चावल का दान, पारण में शिव एवं उमा की स्वर्णिम प्रतिमाओं तथा उपकरणों से युक्त पलंग का दान हेमाद्रि ( व्रत०२, ७०३-७०६, विष्णुधर्मोत्तरपुराण से उद्धरण) ।
frastrयुक्त शिवरात्रिव्रत : शिव योग के साथ माघ कृष्ण १४ पर;
तिथिव्रत; शिव देवता; उस राजा की कथा जो पूर्व जन्म में चोरी की प्रवृत्ति वाला था हेमाद्रि ( व्रत०२, ८७-९२, स्कन्द० से उद्धरण) । शिवरथव्रत : हेमन्त (मार्गशीर्ष एवं पौष) एवं माघ में एकभक्त ; माघ के अन्त में विभिन्न रंगों से सज्जित एवं चार बैलों वाले रथ का निर्माण; एक आढक चावल के आटे से एक लिंग बनाकर रथ में स्थापित करना; रात्रि में जन-मार्ग पर रथ को हाँककर शिव मन्दिर में लाना ; प्रकाश एवं नाच-गान के साथ जागर;
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