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________________ व्रत-सूची २११ दूर होती है, पुत्रोत्पत्ति, दीर्घायु एवं स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है ; मत्स्यपुराण (७७।१-१७); कृत्यकल्पतरु (व्रत० २१४-२१७); हेमाद्रि (व्रत० १, ६४२-६४३, पद्मपुराण ५।२१।२६३-२७९ से उद्धरण); कृत्यरत्नाकर (१५७-१५९, मत्स्यपुराण से उद्धरण); भविष्योत्तरपुराण (४९।१-१८) में भी मत्स्यपुराण के श्लोक पाये जाते हैं। शाक : शाक के दस रूप हैं, यथा--जड़ें, पत्तियाँ, अंकुर, कलियाँ, फल, तना, बीज (चना आदि), छाल, पुष्प एवं छत्रक' (कुकुरमुत्ता); हेमाद्रि (व्रत० १, ४७); निर्णयसिन्धु (१०५); व्रतरत्नाकर (१७) । शाकसप्तमी : कार्तिक शुक्ल ७ पर आरम्भ ; प्रत्येक मास वर्ष भर ; पूरे वर्ष को ४-४ मासों के तीन दलों में विभाजित करना; पंचमी को एकभक्त, षष्ठी को नक्त तथा सप्तमी को उपवास; ब्राह्मणों का मसालेदार तरकारियों से भोज और स्वयं रात्रि में भोजन ; तिथिव्रत; सूर्य देवता ; प्रत्येक चार मासों की अवधि में पुष्पों (अगस्ति, सुगन्धित पुष्पों, करवीर) से, अंजनों या लेपों (कुंकुम, श्वेत चन्दन एवं लाल चन्दन) से, धूपों (अपराजित, अगुरु, गुग्गुल) और नवेद्यों (पायस, गुड़ रोटी, पकाया हुआ भात) से पूजा; अन्त में ब्रह्म-भोज, पुराणों का पाठ सुनना ; कृत्यकल्पतरु (व्रत० १०३-१०७), हेमाद्रि (व्रत० १,७६०-७६३); कृत्यरत्नाकर (४१७-४१९) ने भविष्यपुराण (१.४७।४७-७२) को उद्धृत किया है। शान्ता-चतुर्थी : माघ शुक्ल ४ को शान्ता कहा जाता है ; उपवास एवं गणेश-पूजा; तिथिव्रत ; देवता गणेश; होम'; घृत-गुड़ से पकाये गये चावल एवं नमक का नैवेद्य ; स्नान, दान एवं साधारण आहुतियों से एक सहस्र गुना पुण्य ; हेमाद्रि (व्रत० १,५१३-५१४, भविष्यपुराण १॥३१॥६-१० से उद्धरण)। शान्ति-पंचमी : भाद्रपद की पंचमी पर; काले एवं अन्य चूर्णों से सॉं की आकृतियाँ तथा गन्ध आदि से पूजा, आश्विन पंचमी पर दर्भो से सकृितियाँ बनाकर उनकी पूजा, इन्द्राणी की पूजा भी; कर्ता से सर्प प्रसन्न हो जाते हैं ; मन्त्र यह है-कुरुकुल्ले हुं फट् स्वाहा' ; कृत्यकल्पतरु (व्रत० १,९५, केवल आश्विन पंचमी पर); हेमाद्रि (व्रत० १, ५६३-५६४, भविष्यपुराण १।३७।१-३ एवं ११३८।१-५ से उद्धरण)। शान्तिव्रत : (१) तृतीया को वेदी का निर्माण और उस पर श्वेत चावल से मण्डल बनाना, नरसिंह का आवाहन और ऐसी प्रतिमा की स्थापना जिसमें उस अवतार के सभी चिह्न पाये जायें तथा विभिन्न प्रकार के पुष्पों, बिल्वफल, तिल आदि से अलंकरण ; विभिन्न उपचारों से पूजा, नृत्य, गीत एवं संगीत ; प्रतिमा के समक्ष एक जलपूर्ण कलश तथा आठ दिशाओं में आठ कलशों का स्थापन; तिल, घृत आदि से विस्तृत रूप से होम तथा तर्पण एवं जप ; सभी कष्टों, रोगों एवं पापों का निवारण ; हेमाद्रि (व्रत० १, ४६५-४७१, गरुडपुराण से उद्धरण); (२) कार्तिक शुक्ल ५ पर; एक वर्ष तक खट्टे पदार्थों का त्याग ; रात्रि में हरि-प्रतिमा का पूजन (प्रतिमा में हरि शेषनाग पर शयन करते हों और अपने एक पैर को लक्ष्मी की गोद में रखे हों); पाद से सिर तक के अंगों की पूजा, प्रत्येक अंग को आठ नागों (वासुकि, तक्षक, कालिय, मणिभद्र, ऐरावत, धृतराष्ट्र, कर्कोटक एवं धनंजय) से सम्बन्धित करना तथा सभी नागों की प्रतिमाओं को दूध से नहलाना; तिल एवं दूध का होम ; अन्त में स्वर्णिम नाग. गाय एवं हिरण्य का दान ; सर्प-दंश के भय का नाश; कालविवेक (९६-९७); हेमाद्रि (व्रत० १, ५५६५५७), दोनों ने वराहपुराण (६०।१-८) से उद्धरण दिया है। शाम्भरायणीवत : एक नक्षत्रव्रत; देवता अच्युत ; सात वर्षों तक ; १२ नक्षत्रों, यथा--कृत्तिका, मृगशिरा, पुष्य . . . से वर्ष के १२ मासों के नाम, यथा कार्तिक, मार्गशीर्ष, पौष आदि; कार्तिक में आरम्भ, नैवेद्य, प्रथम चार मासों के लिए खिचड़ी (कृशर), फाल्गुन से आगे के मासों में संयाव तथा आषाढ़ से आगे के चार मासों में पायस ; ब्राह्मणों को नैवेद्य का ही भोज; ब्राह्मणी नारी शांभरायणी (जिससे बृहस्पति ने इन्द्र के पूर्व के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002792
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1971
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size18 MB
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