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________________ धर्मशास्त्र का इतिहास २१० चन्द्र, शतभिषा नक्षत्र ( जिसके देवता वरुण हैं) की गन्ध आदि से पूजा ; आचार्य को पेय पदार्थों, गाय, घट एवं सोने का दान तथा ब्राह्मणों को दक्षिणा; कर्ता को शमी, शाल्मली एवं बाँस के पत्रों के अग्र भागों के तीन आवरणों से आच्छादित एक रत्न धारण करना चाहिए; सभी रोगों से मुक्ति नक्षत्र व्रत देवता विष्णु एवं वरुण; हेमाद्रि ( व्रत० २,६५३-५४, विष्णुधर्मोत्तरपुराण से उद्धरण) । शत्रुनाशनव्रत : कुंकुम, श्वेत पुष्प, गुग्गुल धूप, घृतदीप एवं लाल वस्त्र से वासुदेव की पूजा; नक्षत्रव्रत ; इससे शत्रुओं का नाश; हेमाद्रि ( व्रत०२, ५९७, विष्णुधर्मोत्तरपुराण से उद्धरण) । शनिप्रदोषव्रत : कार्तिक मास से आगे रविवार को पड़ने वाली त्रयोदशी पर; एक वर्ष तक ; सन्तति के लिए; शिव पूजा; सूर्यास्त के उपरान्त भोजन ग्रहण स्मृतिकौस्तुभ (४०-४१ ) ; पुरुषार्थचिन्तामणि (२२५२२९); व्रतार्क (२६५ ९-२६९ बी ) । शनिवार व्रत: श्रावण के प्रत्येक शनिवार को शनि की लौहप्रतिमा को पंचामृत से स्नान कराना, पुष्पों, फलों आदि का दान एवं शनि के नामों का उच्चारण, यथा--- कोणस्थ, पिंगल, बभ्रु, कृष्ण, रौद्र, अन्तकः, यग, सौरि ( सूर्य का पुत्र), शनैश्चर, मन्द ( शनि की मन्द गति का द्योतक ); श्रावण के चार शनिवारों के नैवेद्य हैं-चावल एवं उर्द एक साथ पकाया हुआ, पायस, अम्बिली ( चावल के आटे एवं मक्खन वाले दूध से बनी लप्सी) एवं पूरिका (गेहूँ की रोटी); स्मृतिकौस्तुभ (५५५-५६), इसमें स्कन्दपुराण से उद्धृत शनैश्चर का स्तोत्र है । शनिव्रत : शनिवार को तेल से स्नान तथा किसी ब्राह्मण को तैल-दान; काले पुष्पों से शनि पूजा; एक वर्ष तक; अन्त में तेल युक्त लोहे या मिट्टी के आधार में शनि की लौहप्रतिमा का काले वस्त्रों के एक जोड़े के साथ दान; ब्राह्मण के लिए मंत्र है 'शन्नो देवीरभिष्टये' तथा अन्य वर्णों के लिए पौराणिक मन्त्र हैं जो शनि को (जहाँ कोण नाम आया है, जो सम्भवतः यूनानी शब्द है) स्तुति के लिए बने हैं; इस व्रत से शनि से उत्पन्न सभी कष्ट कट जाते हैं, हेमाद्रि ( व्रत० २, ५८०-५८६, भविष्योत्तर ० से उद्धृत); स्मृतिको ० ( ५५५) । शमीपूजन : शमी 'वृक्ष की पूजा, देखिए विजयादशमी, गत अध्याय १०; स्मृतिकौस्तुभ ( ३५५)। शम्भुव्रत जो व्यक्ति एक वर्ष तक भैंस के दूध से बने घी के दो सहस्र पलों को अग्नि में होम करता है। वह नन्दी की स्थिति पा लेता है, संवत्सरव्रत; देवता शिव हेमाद्रि ( व्रत० २, ८६६-८६७, पद्मपुराण से उद्धरण) । ; शयन : विष्णु एवं अन्य देवी-देवताओं का शयन; देखिए गत अध्याय ५; हेमाद्रि ( काल० ( ८९७ - ९१५ ) ; कालविवेक ( २६५-२७३ ) । शय्यादान : पलंग का दान यह कई व्रतों में होता है, यथा-मासोपवास व्रत, शर्करा - सप्तमी आदि में; स्मृतिकौस्तुभ ( ४१७-४१८ ) | शर्करा सप्तमी : चैत्र शुक्ल ७ पर प्रातःकाल तिलयुक्त जल से स्नान; एक वेदी पर कुंकुंम से कमल एवं बीज कोष बनाना और उस पर 'नमः सवित्रे' के साथ धूप एवं पुष्पों का अर्पण; एक घट का स्थापन जिसमें एक हिरण्य-खण्ड डाल दिया जाता है, जिसके ढक्कन पर गुड़ रखा रहता है; पौराणिक मन्त्र से पूजन; पंचगव्य ग्रहण; घट के पास पृथिवी पर लेटना और धीरे-धीरे सौर मन्त्र ( ऋ० १/५० ) का पाठ ; अष्टमी को सभी उपयुक्त पदार्थों का दान तथा शर्करा, घी, पायस से ब्रह्म-भोज और स्वयं बिना नमक एवं तेल का भोजन; एक वर्ष तक प्रत्येक मास में यही विधि; वर्ष के अन्त में उपकरण - युक्त पलंग, शर्करा, सोना, गाय एवं गृह ( यदि सम्भव हो सके ) तथा १ से १००० तक के निष्कों से बने एक स्वर्णिम कमल का दान होना चाहिए; जब सूर्य अमृत पीने लगे तो कुछ बूँदें चावल, मुद्ग एवं ईख पर गिर पड़ीं; तिथिव्रत देवता सूर्य इस व्रत से चिन्ता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002792
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1971
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size18 MB
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