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व्रत-सूची
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हृतियों (भूः भुवः स्वः, महः, जनः तपः एवं सत्यम् ) के साथ तिल से होम; एक वर्ष तक प्रतिमास; अन्त में दक्षिणा, नवीन वस्त्र, सोना, पीतल के पात्र, दुधारू गाय का दान कर्ता सम्राट् हो जाता है; विष्णुधर्मोत्तरपुराण ( ३।१६२।१-७) । व्याहृतियों एवं महाव्याहृतियों के लिए देखिए इस महाग्रन्थ का मूल खण्ड २, पृ० ३०१, टिप्पणी ७१३ ।
व्योमव्रत : श्वेत च दनलेप से अँगूठे भर का व्योम बनाकर सूर्य के समक्ष रख देना चाहिए ; करवीर पुष्पों से सूर्य पूजा, प्रतिमा के पूर्व, दक्षिण, पश्चिम एवं उत्तर क्रम से कुंकुम, अगुरु, श्वेत चन्दन एवं चतुःसम एवं मध्य में लाल चन्दन रखना चाहिए; मन्त्र यह है 'खखोल्काय नमः' ; देवता सूर्य; हेमाद्रि ( व्रत० २,९०४-५, भविष्यपुराण से उद्धरण) ।
व्योमषष्ठी : व्योम (आकाश) में सूर्य का ( प्रतिमा का नहीं) एवं व्योम का पूजन; एक प्रस्थ वाले पात्र में घी एवं मधु, एक प्रस्थ तिल एवं तीन प्रस्थ चावल का सूर्य को अर्पण; तिथि के सायं सूर्य-पूजा; सूर्यलोक प्राप्ति; हेमाद्रि ( व्रत० १, ६१६-६१७, भविष्यपुराण से उद्धरण) ।
व्रतराजतृतीयाव्रत : तृतीया तिथि को कपड़े के दो टुकड़ों पर रोचना, कर्पूर एवं नील से उमा एवं शिव की प्रतिमाएँ खींचकर स्वर्ण-कण्ठहार एवं रत्नों से दो पौराणिक मन्त्रों के साथ पृथक् रूप से सम्बोधित करके उनकी पूजा, होम, इस व्रत के सम्पादन से पति, पुत्र, भ्राता से वियोग नहीं होता; विशेषतः स्त्रियों के लिए; हेमाद्रि ( व्रत० १, ४८४-४८५, देवीपुराण से उद्धरण) ।
व्रतषष्टि : मत्स्यपुराण ( अध्याय १०१ ) एवं पद्मपुराण (५१२०।४३-१४४) ने ६० व्रतों का ( अधिकांश समान शब्दों में) उल्लेख किया है, जिनका कृत्यकल्पतरु ( व्रत० पृ० ४३९-४५१ ) में विवरण उपस्थित किया गया है ।
शक्रध्वज महोत्सव : देखिए ऊपर 'इन्द्रध्वजोत्थानोत्सव', विस्तृत विवरण के लिए देखिए विष्णुधर्मोत्तर पुराण (२।१५४ - १५७) । भोजकृत सरस्वतीकण्ठाभरण ( साहित्य-शास्त्र के ग्रन्थ) के ५।९५ में शकाच उत्सव का उल्लेख हुआ है।
शक्रव्रत : (१) आश्विन शुक्ल ५ से; हेमाद्रि ( व्रत० १, १२०४ ( २ ) आश्विन पूर्णिमा पर उपवास, इन्द्र, उनकी पत्नी शची, ऐरावत, वज्र, मातुलिंग ( मातलि ? ) की गन्ध आदि से पूजा ; एक वर्ष तक; अन्त में हिरण्य-दान; इन्द्र-लोक की प्राप्ति हेमाद्रि ( व्रत० २, २३७, विष्णुधर्मोत्तरपुराण ३।१९६।१-३ से उद्धरण ) ; (३) खुले अवकाश में भोजन; एक वर्ष तक; अन्त में गोदान शक्र - लोक की प्राप्ति हेमाद्रि ( व्रत० २,८६६, पद्मपुराण से उद्धरण) ।
शंकरनारायणव्रत : देखिए ऊपर 'विष्णु - शंकरव्रत'; कृत्यकल्पतरु ( व्रत० ४१६ ४१७ ) ; हेमाद्रि ( व्रत० २, ६९३-६९४, देवीपुराण से उद्धरण) ।
शंकरार्कव्रत : रविवार को पड़ने वाली अष्टमी पर; शंकर की दाहिनी आँख में स्थित सूर्य की पूजा; अर्ध-चन्द्र की आकृति में कुंकुम एवं लाल चन्दन से एक वृत्त बनाकर उसमें स्वर्ण से जड़ित एक माणिक रखना, जिसे शंकर की आँख कहा जायगा तिथिव्रत; देवता शंकर की आंख के रूप में अर्क (सूर्य) ; यदि माणिक न हो तो सोना ही प्रयुक्त होना चाहिए ।
शंकराचार्य जयन्ती : दक्षिण भारत मे चैत्र शुक्ल ५ पर, किन्तु महाराष्ट्र में वैशाख शुक्ल १० पर ।
शतभिषास्नान : धनिष्ठा नक्षत्र में कर्ता एवं पुरोहित दोनों का उपवास, भद्रासन पर बैठकर कर्ता द्वारा शंख एवं मोतियों से युक्त सी घड़ों से स्नान करना, उसके उपरान्त नवीन वस्त्र धारण करके केशव, वरुण,
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