________________
व्रत-सूची
२०७ मेरी मृत्यु के उपरान्त तुम्हें दस्यु लोग चुरा ले जायेंगे । यह भी कथा है कि नारद ने उन अप्सराओं को, जिन्होंने उनको प्रणाम नहीं किया था शाप दिया था कि वे नारायण की पत्नियाँ बनेगी और अन्त में डाकुओं द्वारा भगा ली जायेंगी और वेश्या हो जायेंगी । कथा का सारांश यह है कि उन्हें महलों एवं मन्दिरों में वेश्यावृत्ति करने की मति दी गयी और कहा गया कि वे धनहीन पुरुष को प्यार न करेंगी, उनका प्रमुख उद्देश्य होगा धनार्जन, चाहे उनके पास आने वाला व्यक्ति सुन्दर हो या असुन्दर । यह आगे कहा गया है कि वे गायों, भूमि एवं सोने का दान (ब्राह्मणों को) करेंगी, हस्त या पुष्य या पुनर्वसु नक्षत्र से युक्त रविवार को सर्वोषधि जल से स्नान करेंगी, कामदेव की पाद से सिर तक पूजा करेंगी काम की पूजा विष्णु के रूप में होती है; वेदज ब्राह्मण का सम्मान किया जाता है; उसे एक प्रस्थ ( पसर) चावल दिया जाता है; वेश्या अपने शरीर का दान ( उस ब्राह्मण को ) रविवार को करती है और यह वर्ष भर चलता है, १३वें मास में पलंग, स्वर्ण सिकड़ी ( हार ) एवं कामदेव की प्रतिमा का दान यह व्रत सभी वेश्याओं के लिए है; यह वारव्रत है; देवता अनंग (कामदेव) ; कृत्यकल्पतरु ( व्रत० २७-३१) में यह व्रत वर्णित है और इसे वेश्यादित्यवारानंगदान- व्रत कहा गया है ।
वैकुण्ठचतुर्दशी : (१) कार्तिक शुक्ल १४ को वैकुण्ठ १४ कहा गया है; यदि विष्णु-पूजा करनी हो तो रात में की जानी चाहिए; निर्णयसिन्धु (२०६ ) ; (२) कार्तिक शुक्ल १४ पर हेमलम्ब वर्ष में अरुणोदय काल में ब्राह्म मुहूर्त में स्वयं विश्वेश्वर भगवान् ने वाराणसी में मणिकणिकाघाट पर स्नान किया था, पाशुपतव्रत किया था तथा उमा के साथ विश्वेश्वर की पूजा की थी एवं विश्वेश्वर की स्थापना की थी; निर्णयसिन्धु (२०६ ); स्मृतिकौस्तुभ ( ३८८-३८९ ) ; पुरुषार्थचिन्तामणि ( २४६ - २४७ ) ।
वैतरणीव्रत : मार्गशीर्ष कृष्ण ११ को वैतरणी कहा जाता है; उस तिथि पर नियम संकल्प लिया जाता। है; रात्रि में एक काली गाय की, उसकी खुर से पूँछ तक पूजा की जाती है, उसके शरीर में चन्दन - लेप लगाया जाता है, चन्दन - लेप से सुगंधित जल से खुरों एवं सींगों को स्वच्छ किया जाता है और पौराणिक मन्त्रों से उसके अंगों की पूजा की जाती है; गाय द्वारा नरक की वैतरणी नदी पार की जाती है, अतः यह एकादशी, जिस दिन
का सम्मान होता है, इस नाम से पुकारी जाती है; यह व्रत चार मासों के ३-३ दलों में एक वर्ष तक चलता है, जिनमें पके चावल, पके जौ एवं पायस का नैवेद्य क्रम से मार्गशीर्ष से चार मासों, चैत्र से चार मासों तथा श्रावण से चार मासों में दिया जाता है; नैवेद्य का एक तिहाई भाग गाय, पुरोहित तथा कर्ता को दिया जाता है; वर्ष के अन्त में एक पलंग, एक गाय ( स्वर्णिम ), एक द्रोण लौह पुजारी को दिया जाता है; हेमाद्रि ( व्रत० १, १११०-१११२, भविष्योत्तरपुराण से उद्धरण) ; व्रतार्क ( पाण्डुलिपि, २३० ए-२३१ वी ) ; पद्मपुराण (६६८/२८) ने विवरण दिया है किन्तु कहा है कि मार्गशीर्ष कृष्ण १२ ही वैतरणी है ।
वैनायक--व्रत : प्रत्येक चतुर्थी पर एक वर्ष तक नक्त-विधि; अन्त में एक गज का दान ; तिथिव्रत; देवता गणेश; शिवलोक की प्राप्ति; कृत्यकल्पतरु ( व्रत, ४४८, मत्स्यपुराण १०१।६१ का उद्धरण) ; हेमाद्रि ( व्रत० (१,५३२, पद्मपुराण का उद्धरण) ।
वैशाख - कृत्य : देखिए हेमाद्रि ( व्रत०, २, ७४८- ७५० ) ; कृत्यरत्नाकर ( १४५ - १७९ ) ; वर्षक्रियाकौमुदी (२४०-२५९); कृत्यतत्त्व (४२३-४३० ) ; निर्णयसिन्धु ( ९०-९७ ) ; स्मृतिकौस्तुभ ( १०८ - ११७ ) ; गदाधरपद्धति (कालसार १५ -२३) । वैशाख के कुछ व्रत, यथा - अक्षय तृतीया, अलग से वर्णित हैं । कुछ छोटीमोटी बातें संक्षेप में यहाँ दी जा रही हैं। इस मास में प्रातः कालीन स्नान, उन स्नानों के साथ जो सूर्य की तुला एवं मकर राशियों में किये जाते हैं, बहुत महत्वपूर्ण है; राजमार्तण्ड कृत्यरत्नाकर ( १४९), कालविवेक (४२३
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org