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________________ धर्मशास्त्र का इतिहास २०६ शयों के तथा एक वृक्ष का रोपण दस पुत्रों के समान है । वराहपुराण ( १७२१३६-३७ ) में ऐसा कहा गया है। कि एक अच्छा पुत्र कुल की रक्षा करता है, उसी प्रकार पुष्पों एवं फलों से लदा एक वृक्ष स्वामी को नरक में गिरने से बचाता है, जो व्यक्ति ५ आम्र वृक्ष लगाता है वह नरक में नहीं जाता; विष्णुधर्मोत्तरपुराण ( ३।२९७१३) ने वृक्षों के विषय में कहा है- 'एक व्यक्ति द्वारा पालित वृक्ष वही कार्य करता है जो एक पुत्र करता वह अपने पुष्पों से देवों को प्रसन्न करता है, छाया से यात्रियों को, अपने फलों से मनुष्यों को सन्तुष्ट करता है; "वृक्ष के रोपने वाले को नरक में नहीं गिरना पड़ता ।' ६ मासों तक या ३ मासों तक वृन्ताक उपवास करना होता है; एक वेदी पर वृन्ताक त्याग विधि : इस व्रत द्वारा जीवन भर या एक वर्ष या फल का त्याग करना पड़ता है; एक रात्रि भर भरणी या मघा नक्षत्र में यम, काल, चित्रगुप्त, मृत्यु एवं प्रजापति का आवाहन किया जाता है और गंध आदि से पूजा की जाती है; तिल एवं घी से स्वाहा के साथ यम, नील, नीलकण्ठ, यमराज, चित्रगुप्त, वैवस्वत के लिए होम किया जाता है; १०८ आहुतियाँ सोने का बना एक वृन्ताक, काली गाय एवं बैल, अंगूठियाँ, कर्णफूल, छत्र, चप्पल, काले वस्त्र का जोड़ा एवं काले कम्बल का दान ; ब्राह्मणों को भोजन; जो वृन्ताक को जीवन भर छोड़ देता है वह विष्णुलोक जाता है; जो ऐसा वर्ष भर या केवल एक मास करता है, नरक में नहीं पड़ता; यह प्रकीर्णक व्रत है; हेमाद्रि ( व्रत० २,९०९ - ९१०, भविष्योत्तरपुराण से उद्धरण) । वृन्दावनद्वादशी : कार्तिक शुक्ल १२ पर; यह तमिल प्रदेशों में प्रसिद्ध है । वृषभवत : (१) शुक्ल ७ पर उपवास ; श्वेत वस्त्रों से आवृत तथा घण्टी आदि आभूषणों से अलंकृत बैल का दान ; तिथिव्रत; शिव देवता; शिव लोक की प्राप्ति और भविष्योत्तर पुराण से उद्धरण); (२) ज्येष्ठ अमावास्या पर बैलों की पूर्व ही ) घर में स्थापित करना और गंध आदि से पूजा धर्म बहुधा वृष कहा गया है (मनु ८।१६, शान्तिपर्व ९०।१५ ) । ; वृषव्रत : (१) विष्णुव्रत के समान ही ; (२) ऊपर वाला; कृत्यकल्पतरु ( व्रत० ४४८, मत्स्यपुराण १०१।६४ का उद्धरण ) ; कार्तिक पूर्णिमा पर साँड़ छोड़ना एवं नक्त-विधि; तिथिव्रत ; देवता शिव; शिवलोक की प्राप्ति हेमाद्रि ( व्रत० २ २४२ ) । वृषोत्सर्ग : ( साँड़ छोड़ना ) चैत्र या कार्तिक की पूर्णिमा पर रेवती नक्षत्र में, ३ वर्ष के उपरान्त एक बार बैल तीन वर्ष का होना चाहिए, उसके साथ तीन वर्ष वाली चार या आठ गायें; कृत्य रत्नाकर ( ४३२४३३, ब्रह्मपुराण से उद्धरण) । बहुधा किसी की मृत्यु के ११ दिनों के उपरान्त वृषोत्सर्ग होता है। देखिए इस महाग्रन्थ का मूल खण्ड २, पृ० ९८३-९९७ एवं खण्ड ४, पृ० ५३९-५४२, स्मृतिकौस्तुभ ( ३९०-४०५ )। dear : यह चतुर्मूतिव्रत है; चैत्र से ॠग्वेद - पूजा; नवविधि; वेद-श्रवण अन्त में ( ज्येष्ठपूर्णिमा) दो वस्त्रों, सोना, गाय, घृतपूर्ण पीतल के पात्र का दान ; आषाढ़, श्रावण एवं भाद्र में यजुर्वेद-व्रत; आश्विन, कार्तिक एवं मार्गशीर्ष में सामवेद- व्रत पौष, माघ एवं फाल्गुन में सभी वेदों का व्रत; वास्तव में यह वेदों के आत्मा वासुदेव की पूजा है; १२ वर्षों तक; सभी दुःखों से मुक्ति, विष्णुलोक की प्राप्ति; हेमाद्रि (व्रत० २, ८२७-८२८, विष्णुधर्मोत्तरपुराण ३।१४१।१-७ से उद्धरण) । राजा होना; हेमाद्रि ( व्रत० १, ८८२, पूजा; काठ के बने बैलों को (एक दिन कहकर उनकी प्रार्थना करना । धर्म को वेश्याव्रत : हेमाद्रि ( व्रत० २, पृ० ५४१-५४८, भविष्योत्तरपुराण से उद्धरण) ने इस व्रत का उल्लेख किया है । उसमें कृष्ण द्वारा युधिष्ठिर को सुनायी गयी विस्मयकारी घटना का वर्णन है। श्री कृष्ण ने जब अपने पुत्र साम्ब के रूप से अपनी १६००० पत्नियों को आकृष्ट देखा तो उन्होंने उन्हें शाप दे दिया कि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002792
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1971
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size18 MB
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