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________________ २०२ धर्मशास्त्र का इतिहास विशोकद्वादशी : आश्विन शुक्ल १० को संकल्प : 'मैं एकादशी को उपवास तथा केशव-पूजा करूँगा और दूसरे दिन (द्वादशी को) भोजन करूँगा'; पाद से शिर तक केशव-पूजा; एक भण्डल का निर्माण, जिस पर चार कोणों वाली एक वेदी ; वेदी पर एक सूप में विशोका (लक्ष्मी) की प्रतिमा-स्थापन और प्रार्थना 'दिशोका चिन्ता दूर करे, धन एवं सफलता दे'। सभी रातों में कुश से शुद्ध किये हुए जल का प्रयोग, नृत्य एवं संगीत ; ब्राह्मणों की जोड़ियों का सम्मान; प्रत्येक मास में यही विधि'; अन्त में पलंग, गुड़, धेनु एवं रूप्य के साथ लक्ष्मी-प्रतिमा का दान ; मत्स्यपुराण (८१) ने वर्णन किया है और (८२) गुडधेनु को इस व्रत का एक अंग माना है। देखिये यह ग्रन्थ (खण्ड २, पृ० ८८०-८८१) जहाँ गुड़धेनु का वर्णन है। यहाँ संक्षेप में धेनुओं के दान पर प्रकाश डाला जा रहा है। मत्स्यपुराण (अध्याय ८२।१७-२२) ने दस धेनुओं के नाम दिये हैं, यथागुड़, घृत, तिल, जल, क्षीर, मधु, शर्करा, दधि, रस (अन्य जलीय पदार्थ) एवं गोधेनु (स्वयं गाय का दान )। जलीय धेनु पात्र में तथा अन्य राशि (एकत्र) में। कहीं-कहीं सुवर्णधेनु, नवनीत-धेनु , रत्नधेनु के नाम भी आये हैं। वराहपुराण (अध्याय ९९-११० ) में बारह धेनुओं का उल्लेख है, जिनमें मत्स्यपुराण की घृत एवं गोधेनु छूटी हुई हैं और नवनीत, लवण, कापस (कपास) एवं धान्य जोड़ दी गयी हैं। विशोकषष्ठी : माघ शुक्ल ५ पर काले तिल से स्नान तथा तिल एवं चावल से बना भोजन ; षष्ठी पर स्वणिम कमल का निर्माण एवं सूर्य के रूप में करवीर पुष्पों तथा दो लाल वस्त्रों से पूजा तथा शोगा-मुक्ति के लिए प्रार्थना ; गोमूत्र पोना और शयन ; सप्तमी को गुरु एवं ब्राह्मणों को दान, बिना तेल एवं नमक का भोजन-ग्रहण, मौन-ग्रहण तथा पुराण-ग्रन्थों का श्रवण ; यह एक वर्ष तक दोनों पक्षों में किया जाता है; अन्त में माघ शुक्ल सप्तमी को स्वणिम कमल के साथ एक घट, उपकरणों से युक्त पलंग एवं एक कपिला गाय का दान ; हेमाद्रि (व्रत० १, ६००-६०२. भविष्योत्तरपुराण ३८।१-७ से उद्धरण) कृत्यकल्पतरु (व्रत०, २११-२१२)। विशोक-संक्रान्ति : जब अयन दिन या विषुव दिन पर व्यतिपातयोग हो तो कर्ता को तिलों से युक्त जल से स्नान करना चाहिये और एकभक्त रहना चाहिये ; उसे पंचगव्य से सूर्य की स्वणिमप्रतिमा को नहलाना चाहिये, गन्ध, पुष्प आदि अर्पित करना चाहिये, दो लाल वस्त्रों से आवृत करना चाहिये तथा उसे ताम्र पात्र में स्थापित करना चाहिये ; पाद से शिर तक विभिन्न नामों से सूर्य-प्रतिमा की पूजा करनी चाहिये; अध्यर्पण, एक वर्ष; अन्त में सूर्य-पूजा, सूर्य को सम्बोधित मन्त्रों से होम'; १२ कपिला गायों या दरिद्र होने पर एक गाय का दान ; दीर्घायु, स्वास्थ्य एवं समृद्धि की प्राप्ति; यह संक्रान्ति-व्रत है; हेमाद्रि (व्रत० २ ७४२-७४३, स्कन्दपुराण से उद्धरण)। विशोकसप्तमी : हेमाद्रि (व्रत० १, ७४६-७४७, भविष्यपुराण से उद्धरण, १३ श्लोक मत्स्यपुराण ७५।१-१२ पद्मपुराण ५।२११२३५-२४८ के हैं)। विश्वरूपवत : शुक्ल ८ या १४ पर जब यह रविवार एवं रेवती-नक्षत्र में पड़ती है ; शिव, देवता; लिंग का महास्नान ; कर्पूर, श्वेत कमल एवं अन्य आभूषण लिंग पर रखे जाते हैं, धूप के रूप में कर्पूर जलाया जाता है, धी एवं पायस का नैवेद्य ; आचार्य को घोड़ा या गज का दान ; कर्ता को पुत्र, राज्य, आनन्द, आदि की प्राप्ति, इसी से इस व्रत को विश्वरूप (अर्थात् सभी रूप वाला) कहा गया है ; रात्रि में कुश-युक्त जल-ग्रहण एवं जागरण ; हेमाद्रि (व्रत० १, ८६५-८६६, कालोत्तरपुराण से उद्धरण)। विश्वयत : (१) प्रत्येक मास की दशमी पर एकभक्त; तिथिव्रत; एक वर्ष तक ; अन्त में दस गायों तथा दस दिशाओं की स्वर्णिम या रजत प्रतिमाओं, एक दोना तिल के साथ, दान; कर्ता सम्राट हो जाता है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002792
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1971
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size18 MB
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