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धर्मशास्त्र का इतिहास ध्रुव, सोम, आपः, अनिल, अनल, प्रत्यूष एवं प्रभास। देखिये अनुशासनपर्व (१५०।१६-१७), मत्स्यपुराण (५।२१), ब्रह्माण्डपुराण (३।३।२१)। हेमाद्रि (व्रत० १, ८४८-८४९, विष्णुधर्मोत्तरपुराण से उद्धरण); (२) पर्याप्त सोने के साथ गोदान, उस दिन केवल दुग्ध-सेवन ; कर्ता सर्वोत्तम लक्ष्य की उपलब्धि करता है और पुनः जन्म नहीं लेता; हेमाद्रि (व्रत० २. ८८५, पद्मपुराण से उद्धरण)। इसमें गोदान की परमोच्च महत्ता है (इसे उभयतोमुखी कहा गया है। देखिये इस महाग्रन्थ का मूल (जिल्द २, पृ० ८७९)।
वस्तत्रिरात्र : देखिये 'बस्तत्रिरात्र' के अन्तर्गत ।
वह्निवत : (१) अग्नि-पूजा से अग्निष्टोम का फल; हेमाद्रि (व्रत० १, ७९१, विष्णुधर्मोत्तरपुराण से उद्धरण); (२) चैत्र की अमावास्या पर आरम्भ ; तिथिव्रत; प्रति वर्ष अमावास्या पर अग्नि-पूजा एवं तिल से होम ; अन्त में हिरण्य-दान ; हेमाद्रि (व्रत० २, २५५-२५६); विष्णुधर्मोत्तरपुराण (३।१९०११-३)।
वाणिज्यलापवत : मूल-नक्षत्र एवं पूर्वाषाढ़ा पर उपवास ; चार नवीन घड़ों के जल से, जिनमें शंख, मोती, लाल पौधों की जड़ें एवं सोना रखे गये हों; पूर्वाभिमुख हो स्नान किया जाता है, पुनः आँगन में विष्णु, वरुण एवं चन्द्र की पूजा की जाती है, इन देवों के सम्मान में घी का होम ; नीले वस्त्रों, चन्दन, मदिरा, श्वत पुष्पों का दान होता है; इससे वणिक सफलता प्राप्त करता है और समुद्र-व्यापार एवं कृषि में असफल नहीं होता; हेमाद्रि (व्रत० २, ६४८-६४९, विष्णुधर्मोत्तरपुराण से उद्धरण)।
वामनजयन्ती : भाद्रपद शुक्ल १२ पर; इस तिथि पर मध्याह्न में विष्णु का वामन अवतार हुआ था, उस समय श्रवण-नक्षत्र था; उस दिन उपवास; सर्वपापमोचन ; गदाधरपद्धति (कालसार, पृ० १४७-१४८); बतार्क (पाण्डुलिपि, २४४ ए से २४७ ए तक, भविष्योत्तरपुराण से उद्धरण)। देखिये भागवतपुराण (८, अध्याय१७-२३) । अध्याय १८ (श्लोक ५-६) में ऐसा आया है कि वामन श्रावण मास की द्वादशी पर प्रकट हुए थे, जब कि श्रवण-नक्षत्र था, मुहूर्त अभिजित था तथा यह तिथि विजयाद्वादशी कही जाती है; हेमाद्रि (व्रत० १, पृ० ११३८-११४५, भविष्योत्तरपुराण से उद्धरण) का अधिकांश व्रतार्क में उद्धृत है।
वामनद्वादशी : चैत्र शुक्ल १२ पर; तिथिव्रत ; विष्णु देवता; उस दिन उपवास; पाद से शिर तक पूजा; प्रत्येक अंग पर विभिन्न नाम (यथा-वामनायेति वै पादम्'); श्वेत यज्ञोपवीत, छत्र, चप्पल एवं माला से युक्त वामन की स्वर्णिम प्रतिमा; दूसरे दिन प्रातः 'विष्णु वामन के रूप में प्रसन्न हों' के साथ प्रतिमा-दान, जिसके साथ मार्गशीर्ष मास से आरम्भ कर क्रम से १२ नामों का (यथा-केशव, नारायण आदि) उच्चारण ; फल-पुत्रहीन को पुत्र, धन चाहने वाले को थन ; वराहपुराण (४३।१-१६); कृत्यकल्पतरु (व्रत० ३२३-३२५); हेमाद्रि (व्रत० १, १०३०-१०३२); वर्षक्रियाकौमुदी (३२०-३२१); निर्णयसिन्धु (१४०-१४१); स्मृतिकौस्तुभ (२४९-२५०)। कुछ ग्रन्थों के अनुसार वामन एकादशी को प्रकट हुए थे। इन मतों के लिए देखिये निर्णयसिन्धु (१४०) ।
वायुव्रत : (१) वायु-पूजा; परमोच्च पद-प्राप्ति; हेमाद्रि (व्रत० १, ७९१); (२)ज्येष्ठ शुक्ल १४ पर आरम्भ ; तिथिव्रत ; वाय देवता; एक वर्ष ; प्रत्येक शुक्ल १४ पर उपवास; अन्त में दो वस्त्रों का दान ; हेमाद्रि (व्रत० २, १५२, विष्णुधर्मोत्तरपुराण ३।१८५।१-३ से उद्धरण)।
वारवत : अग्निपुराण (अध्याय १९५); कृत्यकल्पतरु (व्रत' ८-३४); दान सागर (पृ ५६८-५७०); हेमाद्रि (व्रत० २,५२०-५९२); हेमाद्रि (काल० ५१७-५२०); कृत्यरत्नाकर (५९३-६१०); स्मृतिकौस्तुभ (५४९-५८८)। कुछ ग्रन्थ, यथा-व्रतार्क, रविवार, सोमवार एवं मंगलवार के व्रतों का ही उल्लेख करते हैं।
___वारलक्ष्मीव्रत : श्रावण-पूर्णिमा के निकटतम किसी शुक्रवार या श्रावण शुक्ल १४ पर; वारव्रत; लक्ष्मी देवी ; व्रतार्क (पाण्डुलिपि, ३५८ बी०-३६२ बी ; भविष्योत्तरपुराण से उद्धरण)।
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