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वत-सूची
रौद्रविनायकयाग : जब गुरुवार पर एकादशी एवं पुष्य नक्षत्र हो या जब शनिवार रोहिणी से युक्त एकादशी में हो तो यह याग करना चाहिए। इससे पुत्रों एवं कल्याण की प्राप्ति होती है; हेमाद्रि (व्रत० २,५९१)।
लक्षनमस्कारवत-संकल्प : आषाढ़ शुक्ल ११ पर विष्णु को एक सौ सहस्र नमस्कार देना; कार्तिक पूर्णिमा को समाप्त; 'अतोदेवा' (ऋ० १।२२।१६-२१) के साथ विष्णु-प्रतिमा की पूजा; स्मृतिकौस्तुभ (४०६-४०७)।
लक्षतिव्रत : कार्तिक, वैसाख एवं माघ में आरम्भ ; वैसाख सर्वोत्तम ; पूर्णिमा पर तीन मासों में समाप्त; प्रतिदिन एक सहस्र बातियों से विष्णु एवं लक्ष्मी, ब्रह्मा एवं सावित्री, शिव एवं उमा की आरती उतारना; स्मृतिकौस्तुभ (४१०-४११); व्रतार्क (पाण्डुलिपि ३९९-४०३ बी, वायुपुराण से उद्धरण)।
लक्षहोम : यह शान्ति है; देखिये शान्ति का प्रकरण; नृसिंहपुराण, अध्याय-३५; स्मृतिकौस्तुभ (४७५-४७९)।
लक्षणावत : भाद्रपद कृष्ण ८ पर आरम्भ, जब कि आर्द्रा नक्षत्र हो; पंचामृत से स्नान करा कर, गन्ध, पुष्पों आदि से तथा मन्त्रों द्वारा जिनमें दोनों के नाम आये हों; शिव एवं उमा की पूजा ; अर्घ्य, धूप, गेहूँ के बने खाद्यान्नों (जिन पर मत्स्य आदि की आकृतियाँ बनी रहती हैं) पाँच रसों (दही, दूध, घी, मधु एवं शक्कर) तथा मोदकों के नैवेद्य ; स्वणिम प्रतिमाएं एवं नैवेद्य की सामग्री किसी विद्वान् ब्राह्मण को दे दी जाती हैं; पापमोचन, सौन्दर्य, धन, दीर्घ आय, एवं यश की प्राप्ति; हेमाद्रि (व्रत० १, ८२६-८२९, मत्स्यपुराण से उद्धरण)।
लक्षेश्वरी-व्रत : देखिए कोटीश्वरीव्रत, ऊपर।
लक्ष्मीपूजन : दीवाली में; देखिए गत अध्याय-१०; वर्षक्रियाकौमुदी (४७२-४७६); तिथितत्त्व (१८६-१८७); निर्णयसिन्धु (२००)।
लक्ष्मीनारायणवत : फाल्गुन पूर्णिमा पर ; तिथि ; वर्ष भर प्रत्येक पूर्णिमा पर, वर्ष को ४ मासों के तीन भागों में बाँट कर; आषाढ़ से आगे चार मासों में श्रीधर एवं श्री के नामों का प्रयोग, कार्तिक को लेकर चार मासों में केशव एवं भूति के नामों का प्रयोग; रात्रि में प्रत्येक १५ पर चन्द्र को अर्घ्य ; देह-शुद्धि के लिए प्रत्येक अवधि में विभिन्न पदार्थों का प्रयोग, यथा-पंचगव्य, कुश-जल, सूर्य-किरण से तप्त जल ; हेमाद्रि (व्रत० २, ६६४-६६६, विष्णुधर्मोत्तरपुराण से उद्धरण)।
लक्ष्मीप्रदवत : हेमाद्रि (व्रत० २, ७६९-७७१) में यह कृच्छव्रतों में परिगणित है ; कार्तिक कृष्ण ७ से १० तक क्रम से दूध, बिल्व-दलों, कमलों एवं कमल के रेशों का सेवन तथा एकादशी पर उपवास ; इन दिनों में केशव-पूजा; विष्णुलोक की प्राप्ति; हेमाद्रि (व्रत० २, ७७०)।
लक्ष्मीवत : (१) प्रत्येक पंचमी पर उपवास एवं लक्ष्मी-पूजा; एक वर्ष ; अन्त में स्वर्णिम कमल एवं एक गाय का दान ; प्रत्येक जीवन में धन-लाभ एवं विष्णुलोक की प्राप्ति ; हेमाद्रि (व्रत० १, ५६८, यमपुराण से उद्धरण); कृत्यरत्नाकर (११८); (२) चैत्र शुक्ल ३ पर घी एवं भात खाना, ४ को घर के बाहर कमल वाले तालाब में स्नान तथा कमल में लक्ष्मी-पूजा; पंचमी को श्री के लिए लिखित स्तोत्र से कमलार्पण ; पंचमी को स्वर्ण-दान ; एक वर्ष तक ; विष्णुधर्मोत्तरपुराण (३।१५४।१-१५ से उद्धरण)।
ललितकान्तादेवी व्रत : यह मंगल-चण्डिका ही है, देखिए ऊपर ; तिथितत्त्व (४१) ने कालिकापुराण को उद्धृत करते हुए कहा है कि मंगल-चण्डिका ही ललितकान्तादेवी है, जिसके दो हाथ होते हैं, जो गोरी होतो है, लाल कमल पर विराजमान रहती है।
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