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धर्मशास्त्र का इतिहास रामनवमी या रामजयन्ती : देखिए गत अध्याय-४।
रामनामलेखनव्रत : इसका आरम्भ रामनवमी या और किसी दिन भी किया जा सकता है; एक लाख या एक कोटि बार रामनाम लिखना चाहिए; केवल एक रामनामलेखन से महापातक कट जाता है (एकैकमक्षरं पुंसां महापातकनाशनम्); १६ उपचारों से रामनाम-पूजा; व्रतराज (३३०-३३२) । रामनाम के साथ जादू-सा लग गया और राम के १०८ एवं एक सहस्र नाम विख्यात हो गये।
राशिवत : कार्तिक से आगे के मासों में प्रत्येक पौर्णमासी पर; कार्तिक-पूर्णिमा पर नक्त-विधि एवं स्वर्ण मेष (मेड़ा) का दान' ; मार्गशीर्ष पूर्णिमा पर राजा का दर्शन तथा एक जोड़ा (बैल) का दान तथा अन्त में एक दासी का दान ; इस व्रत से ग्रहों के दुष्ट प्रभाव कट जाते हैं, सभी कामनाओं की प्राप्ति तथा सोमलोक में पहुँच ; हेमाद्रि (व्रत० २, २३८-२३९, भविष्यपुराण से उद्धरण)।
रुक्मिण्यष्टमी : मार्गशीर्ष कृष्णाष्टमी पर; प्रथम वर्ष में कर्ता (स्त्री) को मिट्टी का एक द्वार वाला घर बना कर उसमें घर के सभी उपकरण,वान, घी आदि रख देना चाहिए और कृष्ण, रुक्मिणी, बलराम एवं उनकी पत्नी, प्रद्युम्न एवं उसकी पत्नी, अनिरुद्ध एवं उषा, देवकी एवं वसुदेव की प्रतिमाएं बनानी चाहिये ; इन प्रतिमाओं की पूजा; प्रातःकाल चन्द्र को अर्घ्य ; दूसरे दिन प्रातःकाल वह घर किसी कुमारी को दे देना चाहिए; दूसरे तीसरे एवं चौथे वर्ष उस घर में अन्य अंश जोड़ने चाहिये और उन्हें कुमारियों को दान करना चाहिये; पांचवें वर्ष में पाँच द्वार वाला घर, छठे वर्ष में ६ द्वार वाला घर किसी कुमारी को देना चाहिए; सातवें वर्ष में सात द्वारों का घर बना कर, उसे श्वेत रंग से रंग कर उसमें पलंग, खड़ाऊँ (पाद-त्राण), दर्पण, ओखली एवं मूसल, पात्र आदि रखना चाहिए तथा कृष्ण, रुक्मिणी एवं प्रद्युम्न की स्वर्ण-प्रतिमाओं की पूजा करनी चाहिए, उपवास एवं जागर करके दूसरे प्रातःकाल उस घर एवं एक गाय को ब्राह्मण को दान रूप में दे देना चाहिए, ब्राह्मण -पत्नी को भी दान देना चाहिए; इस व्रत के उपरान्त पुरुष कर्ता चिन्तामुक्त हो जाता है और स्त्री को कोई पुत्र-दुख नहीं होता; हेमाद्रि (व्रत० १, ८५३-८५५, स्कन्दपुराण से उद्धरण)।
बद्रलक्षवत्ति-व्रत : शिव-लिंग के समक्ष गाय के घी में डुबायी हुई रूई की वतियों (बातियों) से युक्त एक लाख दीपों का अर्पण : व्रत के पूर्व १६ उपचारों से लिग-पूजा: व्रत का आरम्भ कार्तिक या माघ में, वैसाख या श्रावण में होता है और उसी मास में समाप्त होता है; कर्ता को धन, पत्र एवं कामनापति प्राप्त होती है; स्मृतिकौस्तुभ (४११-४१४) ।
- स्वत : (१) ज्येष्ठ के दोनों पक्षों की अष्टमी एवं चतुर्दशी पर (अर्थात् चार दिनों में); पाँच अग्नियों से तपों का सम्पादन तथा चौथे दिन सायंकाल स्वर्ण गाय का दान ; देवता, रुद्र ; हेमाद्रि (व्रत० २, ३९४, पद्मपुराण से उद्धरण), कृत्यकल्पतरु (व्रत० ४५०, यहाँ षष्ठी एवं त्रयोदशी तिथि दी गयी है); मत्स्यपुराण (१०१।७६); (२) एक वर्ष तक एकभक्त-विधि ; अन्त में एक स्वर्ण बैल एवं तिलधेनु का दान; यह सश्वत्सर व्रत है; देवता, शंकर; इससे पापमोचन, चिन्ता-मुक्ति एवं शिव-लोक-प्राप्ति होती है; हेमाद्रि (व्रत० २, ८६६, पद्मपुराण से उद्धरण), कृत्यकल्पतरु (व्रत० ४३९); मत्स्य (१०१।४); (३) कार्तिक शुक्ल ३ से प्रारम्भ ; एक वर्ष तक गोमूत्र एवं नक्त-विधि से यावक का सेवन ; सम्वत्सर-व्रत ; गौरी एवं रुद्र ; वर्ष के अन्त में गोदान ; एक कल्प तक गौरी-लोक में वास ; कृत्यकल्पतरु (व्रत० ४४५); मत्स्यपुराण (१०१।४२-५३) ।
रामनवमी : मार्गशीर्ष ९ पर आरम्भ ; तिथिवत; चण्डिका देवी; नवमी को उपवास या नक्त या एकभक्त ; आटे का त्रिशूल बनाया जाता है, एक रजत कमल और स्वर्ण बीजकोष बना कर दुर्गा को समर्पित किया जाता है ; दुर्गा सभी पापों को काट देती हैं ; पौष एवं आगे के मासों में विभिन्न बनावटी पशुओं
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