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________________ १८९ बत-सूची राघव द्वादशी : ज्येष्ठ शुक्ल १२ पर; राम-लक्ष्मण की स्वर्ण-प्रतिमा का पूजन ; पद से शिर तक विभिन्न नामों से अंगों की पूजा (यथा-'ओं नमस्त्रिविक्रमायेति कटिम्'); प्रातःकाल राम-लक्ष्मण की पूजा के उपरान्त घृतपूर्ण घट का दान ; कर्ता के पाप कट जाते हैं और वह स्वर्गवास करता है, यदि उसे अन्य कामना की पूर्ति की अभिलाषा नहीं होती तो वह मोक्ष पद पा जाता है; कृत्यकल्पतरु (व्रत० १२७-१२९); हेमाद्रि (व्रत० १,१०३४-१०३५); कृत्यरत्नाकर (१९०-१९१); सभी ने वाराहपुराण (४५।१-१०) को उद्धृत किया है। राजराजेश्वरवत : जब स्वाति नक्षत्र हो और बुधवार हो तो उस अष्टमी पर उपवास ; पक्वान्नों एवं मिठाइयों के नैवेद्य से शिव-पूजा; शिव-प्रतिमा के समक्ष आचार्य को कण्ठहार, मुकुट, मेखला, कर्णफूल, दो अंगूठियाँ, एक हाथी या अश्व का दान; कर्ता अगणित वर्षों तक कुबेर की स्थिति प्राप्त कर लेता है, हेमाद्रि (व्रत० १,८६४, कालोत्तरपुराण से उद्धरण); 'राजराज' का अर्थ है 'कुबेर' एवं शिव का मित्र तथा राजराजेश्वर का अर्थ शिव या कुबेर (यक्षपति) हो सकता है। राज्ञोस्नापन : चैत्र शुक्ल ८ पर; चैत्र कृष्ण ५ से तीन दिनों तक कश्मीर की भूमि रजस्वला मानी जाती है ; प्रत्येक घर में सधवा स्त्रियों द्वारा पुष्पों एवं चन्दन से धोयी जाती है और तब पुरुषों द्वारा सवौषधियों से युक्त जल से धोयी जाती है ; तब लोग बाँसुरी-वादन सुनते हैं ; पृथिवी सूर्य की रानी है; अतः यह नाम विख्यात हुआ है ; कृत्यरत्नाकर (५३२-५३३, ब्रह्मपुराण से उद्धरण), नीलमतपुराण (पृ० ५४) ने इसे फाल्गुन कृष्ण ५ से ८ तक माना है (सम्भवतः अमान्त गणना से)। राज्यद्वादशीव्रत : मार्गशीर्ष शुक्ल १० पर संकल्प ; एकादशी को उपवास एवं विष्णु-पूजा; सर्वोत्तम भोजन से होम ; द्विजों के लिए मन्त्र 'तद् विष्णोः परमम्' (ऋ० १।२२।२०) तथा शूद्रों के लिए 'ओं नमो भगवते वासुदेवाय' नामक १२ अक्षरों का मन्त्र ; जागर, संगीत एवं नृत्य ; एक वर्ष तक; सभी द्वादशियों पर मौन व्रत का कठोरता से पालन ; कृष्ण द्वादशी पर भी ऐसी ही विधि केवल देव-पूजा लाल वस्त्र पहन कर तथा तेल के दीप (घृत के नहीं) के साथ ; इस व्रत से कर्ता पहाड़ी की घाटी का राजा हो जाता है; तीन वर्षों में कर्ता मण्डलेश्वर (प्रान्तपति) हो जाता है तथा १२ वर्षों में राजा; हेमाद्रि (व्रत० १, १०६०-१०६३, विष्णुधर्मोत्तरपुराण से उद्धरण)। ___ राज्यव्रत : ज्येष्ठ शुक्ल ३ पर वायु, सूर्य एवं चन्द्र की पूजा ; प्रातःकाल किसी पवित्र स्थान पर वायुपूजा, मध्याह्न में अग्नि में सूर्य-पूजा तथा सूर्यास्त' पर जल में चन्द्र-पूजा; एक वर्ष ; स्वर्ग-प्राप्ति ; तीन वर्षों तक करने से कर्ता ५ सहस्र वर्षों तक स्वर्ग में रहता है; यदि १२ वर्षों तक यह ब्रत किया जाय तो लाख वर्षों तक स्वर्ग की प्राप्ति; हेमाद्रि (व्रत० १, ४५७-५७९, विष्णुधर्मोत्तरपुराण से उद्धरण)। राज्याप्तिदशमी : कार्तिक शुक्ल १० से आरम्भ ; ऋतु, दक्ष आदि दस विश्वेदेवों के रूप में केशव-पूजा; पूजा कृत्य मण्डलों या सोने या चाँदी की प्रतिमाओं में होता है; वर्ष के अन्त में हिरण्य-दान; विष्णुलोक की प्राप्ति, उसके उपरान्त कर्ता एक राजा या ब्राह्मणों में श्रेष्ठ ब्राह्मण बनता है ; हेमाद्रि (व्रत०१,९६५-९६६,विष्णधर्मोत्तरपुराण से उद्धरण)। १० विश्वेदेवों के नाम हैं--वसु, सत्य, ऋतु, दक्ष, काल, काम, धृति, कुरु, पुरूरवा एवं माद्रव । राधाष्टमी : भाद्रपद की दोनों पक्षों की अष्टमियों पर; राधा का जन्म भाद्र शुक्ल ७ को हुआ था; अष्टमी पर राधा-पूजा से सभी महापातक कट जाते हैं ; पद्मपुराण (३।४।४३, ३।७।२१-२३)। रामचन्द्रदोलोत्सव : चैत्र शुक्ल ३ पर; इस दिन पालने (झूले) पर रामचन्द्र की प्रतिमा रखी जाती है और एक मास तक झुलायी जाती है, जो लोग यह झूला देखते हैं वे एक सहस्र पापों से मुक्त हो जाते हैं ; स्मृति कौस्तुभ (९१)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002792
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1971
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size18 MB
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