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व्रत-सूची
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यमव्रत : जो व्यक्ति ( १ ) शुक्ल ५, ६, ८ या १४ को उपवास करता है तथा ब्रह्म-भोज कराता है, वह रोगमुक्त हो जाता है और सुन्दर रूप पाता है; कृत्यकल्पतरु ( व्रत० ३८९ ) ; हेमाद्रि ( व्रत० २, ३७७, महाभारत से उद्धरण) ; (२) कृष्ण १४ को उपवास; यम के प्रत्येक नाम (यम, धर्मराज, मृत्यु, अन्तक, वैवस्वत, काल एवं सर्वभूतक्षय पर तिल जल की सात अञ्जलियों का अर्पण; सभी पापों से मुक्ति हेमाद्रि ( व्रत०२, १५१, कूर्मपुराण से उद्धरण); (३) कार्तिक कृष्ण १४ पर स्नान एवं यम को तर्पण; (२) में दिये गये नामों के अनुसार जलांजलि का अर्पण, (यहाँ कुछ और नाम जुट गये हैं, यथा - चित्र, चित्रगुप्त ) ; एक ब्राह्मण को तिलपूर्ण पात्र एवं सोने का दान ; कर्ता मृत्यु पर दुःख नहीं उठाता हेमाद्रि ( व्रत०२, १५१ ) ; (४) यदि राजा यम की पूजा दशमी को हो तो रोगों का निवारण हो जाता है; हेमाद्रि ( व्रत० १, ९८२, भविष्यपुराण से उद्धरण); (५) जब चतुर्थी रविवार को पड़ती है और वह भरणी नक्षत्र से युक्त होती है तो यम के अनुग्रह की प्राप्ति के लिए भैंसे एवं सोने का दान करना चाहिए; अहल्याकामधेनु ( ३५७, कूर्मपुराण से उद्धरण) ।
यमादर्शन- त्रयोदशी : मार्गशीर्ष की त्रयोदशी पर, जब कि यह रविवार एवं मंगलवार को छोड़ कर किसी भी शुभ दिन पर पड़ती है; पूर्वाह्न में १३ ब्राह्मण निमन्त्रित होते हैं, उन्हें देह में लगाने लिए तिल का तेल दिया
ता है, नहाने को पानी तथा खाने को भरपेट भोजन दिया जाता है; यह एक वर्ष तक प्रतिमास किया जाता है; ऐसा करने से कर्ता यम का मुख कभी भी नहीं देखता हेमाद्रि ( व्रत० २, ९ - १४, भविष्योत्तरपुराण से उद्धरण) ; अहल्या कामधेनु (८६४) ।
यमुनास्नान-तर्पण: यमुना के जल में खड़े हो कर विभिन्न नामों से यम का तिलयुक्त जल की तीन अंजलियों से तर्पण ; गदाधरपद्धति (कालसार, ६०१ ) ।
यात्रा : ( उत्सवपूर्ण जुलूस या उत्सव ) देखिए दोलयात्रा एवं रथयात्रा । अति प्राचीन कालों से ही देवों की यात्राएँ प्रसिद्ध रही हैं । कालप्रियानाथ की यात्रा के अवसर पर भवभूतिकृत महावीरचरित का अभिनय किया गया था । देखिए रघुनन्दन द्वारा प्रणीत माना गया 'यात्रातत्त्व', जिसमें विष्णु की १२ यात्राओं का उल्लेख है । पुरुषोत्तम की यात्रा के अवसर पर मुरारिकृत अनर्घ राघव का अभिनय किया गया था; देखिए एपि० इण्डिका ( जिल्द १०, पृ० ७०) जहाँ महादेव पृथ्वीश्वर की देवद्रोणी ( प्रतिमा यात्रा) का उल्लेख है; कृत्यकल्पतरु (राजधर्म० पृ० १७८ - १८१ ) में देवयात्रा - विधि वर्णित है; राजनीतिप्रकाश ( ४१६ ४१९ ) । प्रति वर्ष वैसाख से आगे ६ मासों तक पहली से १५ वीं तिथि तक विभिन्न देवों की पूजा होती है यथा--ब्रह्मा की, जो तिथियों के स्वामी कहे जाते हैं ।
युगादितिथियाँ: नारदपुराण ( ११५६।१४७ - १४८ ) ; हेमाद्रि ( काल० ६४९-६५५ ) ; तिथितत्त्व (१८७) निर्णयसिन्ध ( ९४-९५ ) ; पुरुषार्थचिन्तामणि (८६-८९ ) ; विष्णुपुराण (३ । १४११२-१३ ) ; भुजबल निबन्ध ( पृ० ४२ ) ।
युगादिव्रत: चारों युग, यथा— कृत, त्रेता, द्वापर एवं कलि क्रम से वैसाख शुक्ल ३, कार्तिक शुक्ल ९, भाद्रपद कृष्ण १३ एवं माघ अमावास्या पर आरम्भ हुए; इन तिथियों पर उपवास, दान, तप, जप एवं होम से साधारण फलों की अपेक्षा एक करोड़ गुना फल प्राप्ति होती है; वैसाख शुक्ल ३ पर नारायण - लक्ष्मी की पूजा एवं लवण- धेनु का दान ; कार्तिक शुक्ल ९ पर शिव-उमा की पूजा तथा तिल-धेनु का दान ; भाद्रपद कृष्ण १३ पर पितरों को सम्मान माघ अमावस्या पर ब्रह्मगायत्री की पूजा तथा नवनीत- धेनु का दान ; सभी मन, वचन एवं कर्म से किये गये पाप प्रभावहीन हो जाते हैं; हेमाद्रि ( व्रत० २,५१४-५१७, भविष्योत्तरपुराण से उद्धरण) ।
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