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१८.
धर्मशास्त्र का इतिहास महाष्टमी : नवरात्र की आश्विन शुक्ल ८ को यह संज्ञा प्राप्त है; वर्षक्रियाकौमुदी (४२८); निर्णयसिन्धु (१७८); समयमयूख (५९)।
- महासप्तमी : माघ शुक्ल ५ को एक भक्त ; षष्ठी को नक्त, सप्तमी को उपवास; करवीर पुष्पों एवं लाल चन्दन-लंप से सूर्य-पूजा; एक वर्ष तक; माघ से आरम्भ कर वर्ष को चार मासों के तीन दलों में बांटना, प्रत्येक दल में विभिन्न नैवेद्य, पुष्प एवं घूप ; अन्त में एक रथ का दान ; हेमाद्रि (वत० १, ६५९-६६०, भविष्यपुराण ११५१।१-१६ से उद्धरण)। - महिषघ्नीपूजा : आषाढ़ शुक्ल ८ पर; तिथि ; देवता, दुर्गा; महिषासुर को मारने वाली दुर्गा को हल्दी चूर्ण से युक्त जल से स्नान कराना; प्रतिमा पर चन्दन-लेप एवं कर्पूर लगाना; कुमारियों एवं ब्राह्मणों को भोजन एवं दक्षिणा देना; दोप-प्रकाश; सभी कामनाओं की पूर्ति; पुरुषार्थ-चिन्तामणि (१०९-११०); स्मृतिकौस्तुभ (१३८)।
महेन्द्र-कृच्छ : कार्तिक शुक्ल ६ से प्रारम्भ; केवल दूध का सेवन ; दामोदर-पूजा; हेमाद्रि (वत. २, ७६९-७७०)।
महेश्वरव्रत : (१) फाल्गुन शुक्ल १४ से प्रारम्भ; उस दिन उपवास एवं शिव-पूजा; अन्त में गोदान ; यदि वर्ष भर किया जाये तो पौण्डरीक यज्ञ की फल प्राप्ति ; यदि वर्ष भर प्रत्येक मास की दोनों चतुर्दशियों पर किया जाय तो सभी कामनाओं की पूर्ति; हेमाद्रि (व्रत० २, १५२); (२) दक्षिणा-मूर्ति को वर्ष भर प्रति दिन पायस एवं घी का अर्पण; अन्त में उपवास; भूमि, गाय एवं पलंग का दान ; नन्दी (शिव-वाहन) की स्थिति की प्राप्ति; हेमाद्रि (व्रत० १, ८६७, स्कन्दपुराण से उद्धरण); दक्षिणामूर्ति शिव का एक रूप है; शंकराचार्य लिखित दक्षिणामूर्तिस्तोत्र (१९ श्लोकों में) की बात कही जाती है। - महेश्वराष्टमी : मार्गशीर्ष शुक्ल ९ से प्रारम्भ ; शिव की पूजा, लिंग या प्रतिमा के रूप में या कमल पर; घी एवं दूध से स्नान कराना; अन्त में गोदान ; यदि वर्ष भर किया जाय तो अश्वमेध-यज्ञ का लाभ एवं शिवलोक की प्राप्ति ; हेमाद्रि (व्रत० १, ७४७-७४८, विष्णुधर्मोत्तरपुराण से उद्धरण)। · महोत्सववत : चैत्र शुक्ल १४ पर; प्रति वर्ष शिव-प्रतिमा को दूध आदि से स्नान करा कर अंजन, दमनक, बिल्व-दल का अर्पण ; चावल के चूर्ण से बने दीपों से प्रतिमा की आरती; विभिन्न खाद्य पदार्थों का नैवेद्य ; ढोल बजाना; शिव-रथयात्रा: 'शिव प्रसन्न हों' कहना; नक्त-विधि; हेमाद्रि (व्रत० २,१४८-१४९, स्कन्दपुराण से उद्धरण)। . महोदषि-अमावास्या : चतुर्दशी से युक्त माघ अमावास्या को किसी समुद्र में स्नान ; अश्वमेघ का फल ; गदाधरपद्धति (कालसार, ६०३) ।
माकरी-सप्तमी : मकर-राशि में जब सूर्य हो तो सप्तमी तिथि पर; वर्षक्रिया कौमुदी (५००-५०१); व्रतकोश (पृ० २०३, संख्या ९०२)।
___ माघकृत्य : कृत्यरत्नाकर (४८७-५१४); वर्षक्रियाकौमुदी (४९०-५१४); निर्णयसिन्धु (२१३२२१); स्मृतिकौस्तुभ (४३९-५१३); गदाधरपद्धति (कालसार, ३७-४१) । माघ में कई महत्त्वपूर्ण व्रत होते हैं, यथा-तिलचतुर्थी, रथसप्तमी, भीष्माष्टमी, जो पृथक रूप से वणित हुई हैं। कुछ बातें यहाँ दी जा रही हैं। माघ शुक्ल ४ को उमाचतुर्थी कहते हैं, क्योंकि लोगों (विशेषतः नारियों) द्वारा कुन्द एवं अन्य पुष्पों से, गुड़अर्पण, नमक, यवक से गौरी-पूजा की जाती है; सघवा नारियों, ब्राह्मणों एवं गाय का सम्मान किया जाता है; कृत्यकल्पतरु (नयत्कालिक काण्ड, ४३७-४३८); कृत्यरत्नाकर (५०३); माघकृष्ण १२ को यम ने तिल उत्पन्न
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