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अपने शरीर को भांति-भांति ढंगों से मोड़ती हैं। पुरुषाार्थ-चिन्तामणि (१२९-१३२) में इसके विषय में एक लम्बा विवेचन है। इसके मत से यह व्रत नारियों एवं पुरुषों दोनों का है।
महालक्ष्मीवत : भाद्रपद शुक्ल ८ को जब सूर्य कन्या राशि में होता है महालक्ष्मी की पूजा का आरम्भ होता है और जब सूर्य कन्या राशि के अर्ध भाग में होता है तो आगे की अष्टमी को समाप्ति होती है, इस प्रकार १६ दिन लगते हैं; यदि सम्भव हो तो ज्येष्ठा-नक्षत्र में चन्द्र की स्थिति में व्रत करना चाहिए; १६ वर्षों के लिए; नारियों एवं पुरुषों के लिए यहाँ १६ की संख्या (पुष्पों एवं फलों आदि के विषय में) महत्त्वपूर्ण है; कर्ता को दाहिने हाथ में १६ धागों एवं १६ गाँठों का एक डोरक (गण्डा) बाँधना चाहिए; लक्ष्मी कर्ता को तीन जीवनों तक नहीं त्यागतीं, वह दीर्घायु, स्वास्थ्य आदि पाता है; हेमाद्रि (व्रत० २, ४९५-४९९); निर्णय-सिन्धु (१५३-१५४); स्मृतिकौस्तुभ (२३१-२३९); पुरुषार्थ-चिन्तामणि (१२९-१३२); व्रतराज (३००-३१५)।
महालय : भाद्रपद का कृष्ण पक्ष इस नाम से विख्यात है तथा पार्वण श्राद्ध इन सभी या एक तिथि पर किया जाता है; तिथितत्त्व (१६६); वर्षक्रित्यदीपक (८०)।
महावैसाखी : देखिए 'महा' उपाधि के लिए कार्तिक । माधववर्मन के खानपुर दान पत्र में सतारा जिले में कई ग्रामों का दान महावैसाखी पर किया गया उल्लिखित है; देखिए एपि० इण्डिका (जिल्द २७, पृ० ३१२) । प्रो. भिराशी ने इस दानपत्र की तिथि ५१०-५६० के बीच में रखी है।
महाव्रत : (१) माघ या चैत्र में कोई गुड़धेनु दे सकता है और स्वयं तृतीया पर केवल गुड़ का सेवन करता है ; वह गोलोक जाता है ; मत्स्यपुराण (१०१।३३); कृत्यकल्पतरु (प्रत० ४४६); कृत्यरत्नाकर (११८); गुड़धेन के लिए देखिए मत्स्यपुराण (८२); (२) शुक्ल चतुर्दशी या अष्टमी पर उपवास, जब कि श्रवण-नक्षत्र का योग हो; तिथिव्रत ; देवता, शिव; राजाओं द्वारा सम्पादित; हेमाद्रि (वत० १, ८६४-८६५, कालोत्तर से उद्धरण); (३) कार्तिक अमावास्या या पूर्णिमा पर नियमों का पालन ; घृत के साथ पायस का प्रयोग नक्तविधि से ; चन्दन एवं ईख का रस ; आगे की प्रतिपदा पर उपवास; ८ या १६ शैव ब्राह्मणों को भोज; देवता, शिव ; पंचगव्य, घी, मधु आदि तथा अन्त में गर्म जल से शिव-प्रतिमाओं को स्नान ; नैवेद्य ; सपत्नीक आचार्य को सोना, वस्त्रों आदि का दान; १६ वर्षों तक विभिन्न तिथियों पर (वर्ष के आधार पर) नक्त एवं उपवास का प्रबन्ध ; इससे दीर्घायु, सौन्दर्य, सौभाग्य की प्राप्ति होती है; हेमाद्रि (व्रत० २, ३७७-३९१, कालिकापुराण से उद्धरण); (४) प्रत्येक पौर्णमासी पर उपवास एवं सकल ब्रह्म के रूप में हरि की पूजा तथा प्रत्येक अमावास्या पर निष्कल (भागहीन) ब्रह्म की पूजा; एक वर्ष तक; सभी पापों से मुक्ति एवं स्वर्ग-प्राप्ति; १२ वर्षों तक करने से विष्णुलोक की प्राप्ति; विष्णुधर्मोत्तरपुराण (३३१९८।१-७); हेमाद्रि (व्रत० २, ४६१); 'सकल' का अर्थ है 'सावयव' (अवयवयुक्त), यथा--चारों हस्तों से युक्त विष्णु, 'निष्कल' का अर्थ है बिना अन्य भागों के (मुण्डकोपनिषद् २।२।९ में इसका उल्लेख है); (५) दोनों पक्षों में अष्टमी या चतुर्दशी पर नक्त-विधि एवं शिव-पूजा; एक वर्ष तक ; परम लक्ष्य की प्राप्ति; हेमाद्रि (व्रत० २, ३९८, लिंगपुराण से उद्धरण)।
महाश्वेताप्रियविधि : सूर्य-ग्रहण के अवसर पर जब रविवार हो; महाश्वेता (तथा सूर्य) की पूजा; नक्त-विधि या उपवास ; परम पद की प्राप्ति; कृत्यकल्पतरु (व्रत०, २१-२३); हेमाद्रि (व्रत० २, ५२७-५२८)। महाश्वेता नाम मन्त्र का है, यथा-'ह्रींस'; कृत्यरकल्पतरु (९), एवं हेमाद्रि (क्त० २, ५२१)।
___ महाषष्ठी : जब कार्तिक शुक्ल ६ को सूर्य वृश्चिक राशि में हो और मंगल हो तो उसे महाषष्ठी कहते हैं ; पूर्व दिन को उपवास ; षष्ठी को अग्नि-पूजा, अग्नि का महोत्सव, ब्रह्म-भोज; सभी पाप कट जाते हैं; स्मृतिकौस्तुभ (३७८); पुरुषार्थ-चिन्तामणि (१०२)।
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