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________________ बत-सूची १८१ किया, दशरथ उसे पृथिवी पर ले आये और बो दिया, विष्णु कोदेवों ने तिल का स्वामी बनाया, अतः उस दिन उपवास कर तिल से हरि-पूजा करनी चाहिए, तिल से होम करना चाहिए, तिल-दान करना चाहिए और उसे खाना चाहिए; विष्णुधर्मसूत्र (९०।१९); कृत्यकल्पतरु (नैत्यकालिक काण्ड ४३५-४३६); कृत्यरत्नाकर (४९५-४९६); माघ अमावास्या पर जब कि वह सोमवार को प्रातःकाल उपस्थित हो, लोगों को (विशेषतः नारियों को) अश्वत्थ वृक्ष की परिक्रमा करनी चाहिए और दान देना चाहिए। यह कृत्य तमिल देश में प्रचलित है। माघसप्तमी : माघ शुक्ल ७ पर; अरुणोदय के समय किसी नदी या बहते हुए जल में अपने सर पर बदर वृक्ष एवं अर्क पौधे की सात-सात पत्तियाँ रख कर स्नान करना; सात बदर फलों, सात अर्क-दलों, चावल, तिल, दुर्वा, अक्षतों एवं चन्दन के साथ मिश्रित जल से सूर्य को अर्घ्य देना; सप्तमी को देवी समझ कर तथा सूर्य को प्रणाम करना; कुछ लोगों के मत से यह स्नान तथा माघस्नान अलग-अलग नहीं हैं, किन्तु कुछ लोग दोनों को दो मानते हैं ; कृत्यरत्नाकर (५०९); वर्षक्रियाकौमुदी (४९९-५०२); कृत्यतत्त्व (४५९); राजमार्तण्ड (ए. बी० ओ० आर०.आई०, जिल्द ३६, पृ० ३३२)। माघस्नान : आरम्भिक कालों से ही गंगा या किसी बहते जल में प्रातः काल माघ मास में स्नान करना प्रशंसित रहा है। सर्वोत्तम काल वह है जब नक्षत्र अब भी दीख पड़ रहे हों, उसके उपरान्त वह काल अच्छा है जब तारे दिखाई पड़ रहे हों किन्तु सूर्य अभी वास्तव में दिखाई नहीं पड़ा हो, जब सूर्योदय हो जाता है तो वह काल स्नान के लिए अच्छा काल नहीं कहा जाता। मास के स्नान का आरम्भ पौष शुक्ल ११ या पौष पूर्णिमा (पूर्णिमान्त गणना के अनुसार) से हो जाना चाहिए और व्रत (एक मास का) माघ शुक्ल १२ या पूर्णिमा को समाप्त हो जाना चाहिए : कुछ लोग इसे सौर गणना से संयज्य कर देते हैं और व्यवस्था देते हैं कि वह स्नान जो माघ में प्रातःकाल उस समय किया जाता है, जब कि सूर्य मकर राशि में हो, पापियों को स्वर्गलोक भेजता है; वर्षक्रिया कौमुदी (४९१, पद्मपुराण का उद्धरण); सभी नर-नारियों के लिए यह व्यवस्थित है ; सब से अत्यन्त पुण्यकारी माघस्नान गंगा एवं यमुना के संगम पर है; पद्मपुराण (६, जहाँ अध्याय २१९ से २५० तक २८०० श्लोकों में माघस्नान के माहात्म्य का उल्लेख है); हेमाद्रि (व्रत० २, ७८९-७९४); वर्षक्रियाकौमुदी (४९०-४९१); राजमार्तण्ड (१३९८); निर्णयसिन्धु (२१३-२१६); स्मृतिकौस्तुभ (४३९-४४१); पद्मपुराण (६।२३७। ४९-५०; एवं कृत्यतत्त्व (४५५-४५७) ने दानों एवं नियमों की विधि का वर्णन किया है। विष्णुधर्मसूत्र (९०) के अन्तिम श्लोक में माघ एवं फाल्गुन में प्रातः स्नान की प्रशंसा गायी गयी है। देखिए इण्डियन एण्टीक्वेरी (जिल्द ११, पृ० ८८, माघ मेला)। . मातृव्रत : (१) अष्टमी पर; तिथि ; देवता, माताएँ; उपवास ; माताओं से भक्तिपूर्वक क्षमा करना; माताएँ कल्याण एवं स्वास्थ्य देती हैं; हेमाद्रि (व्रत० १, ८७६); (२) आश्विन नवमी पर राजा तथा उनकी जाति के लोगों को माताओं (नाम दिये गये हैं) की पूजा करनी चाहिए और सफलता प्राप्त करनी चाहिए; वह नारी, जिसके पुत्र मृत हो जाते हैं अथवा जिसकी केवल एक सन्तान हो, इस व्रत के सम्पादन से सन्ततिवती होती है। हेमाद्रि (व्रत० १, ९५१-९५२)। मार्गपाली-बन्धन : कार्तिक क्ल १पर; देखिए : अध्याय-१०।। मार्गशीर्षकृत्य : देखिए कृत्यरत्नाकर (४४२-४७४); वर्षक्रियाकौमुदी (४८२-४८७); निर्णयसिन्धु (२०९-२११); स्मृतिकौस्तुभ (४२७-४३२) । तमिल देश में पूरे मास भर पवित्र माना जाता है और भजनमण्डलियाँ प्रातःकाल घूमती रहती हैं। गीता (१०।३५) के अनुसार मासों में मार्गशीर्ष सर्वोत्तम है और वह भगवान् कृष्ण के समान माना गया है। कुछ बातें यहाँ दी जा रही हैं। कृतयुग (सत्ययुग) में देवों ने वर्ष का आरम्भ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002792
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1971
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size18 MB
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