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व्रत-सूची
को पड़े और वह श्रवण नक्षत्र में हो तो अत्यन्त महन्ती ( महान् से महान् ) की संज्ञा प्राप्त होती है। विष्णुधर्मो तर पुराण ( १।१६२।१-७१ ) ने श्रवण - द्वादशी के महात्म्य पर विस्तार से चर्चा की है। अन्य ८ द्वादशियों के लिए देखिए गत अध्याय ५ ।
महानन्दानवमी : माघ शुक्ल ९ को महानन्दा कहा गया है; तिथि व्रत; एक वर्ष तक; देवता, दुर्गा; चार मासों की अवधि में वर्ष को ३ भागों में बाँटा जाता है; प्रत्येक अवधि में धूप, नैवेद्य एवं देवी - नाम विभिन्न हैं; कर्ता की सभी कामनाएँ पूर्ण होती हैं, उसे ब्रह्मलोक की प्राप्ति होती है; कृत्यकल्पतरु ( व्रत० ३०६-३०७ ) ; हेमाद्रि ( व्रत० १९५५-९५६, भविष्यपुराण से उद्धरण) ।
महानवमी : ( १ ) यह दुर्गापूजा उत्सव ही है, देखिए गत अध्याय - ९, कृत्यकल्पतरु (राजधर्म०, पृ० १९१-१९५), राजनीतिप्रकाश ( पृ० ४३९-४४४ ) ; हेमाद्रि ( व्रत० १, ९०३ - ९२० ) ; निर्णयसिन्धु ( १६१-१८५ ) ; कृत्यरत्नाकर (३४९-३६४ ) ; ( २ ) आश्विन शुक्ल ९ या कार्तिक शुक्ल या मार्गशीर्ष शुक्ल की ९ पर; तिथिव्रत; देवता, दुर्गा; एक वर्ष तक पुष्प, धूप एवं स्नान - सामग्री कतिपय मासों में विभिन्न ; कुमारियों को भोजन; कर्ता देवी-लोक को जाता है; कृत्यकल्पतरु ( व्रत० २९६ - २९९ ) ; हेमाद्रि ( व्रत० १, ९३७ - ९३९, यहाँ दुर्गानवमी नाम है); पुरुषार्थ - चिन्तामणि ( १३४ ) ; हेमाद्रि ( काल, १०७) | देखिए गरुड़पुराण ( १।१३३।३ - १८ तथा अध्याय १३४ ) ; कालिकापुराण (अध्याय ६२ ) । एपि० इण्डिका ( जिल्द १, पृ० २६० ) में पुलकेशि महाराज द्वारा कार्तिक महानवमी गुरुवार को दी गयी ८०० निवर्तन भूमि का उल्लेख है ।
महानिशा : देखिए गत अध्याय - ५, जहाँ इसका अर्थ बताया गया है; एकादशी एवं द्वादशी पर के निषेध । महापौर्णमासीत : 'महा' के साथ सभी पौर्णमासियों पर एक वर्ष तक हरि-पूजा; इस दिन का अल्प दान भी महान् पुण्यकारक होता है; हेमाद्रि ( व्रत० २ १९६-१९७, भविष्यपुराण से उद्धरण) ।
महापौषी : गदाधरपद्धति (कालसार, ६०० ) ; देखिए कार्तिक के अन्तर्गत महाकार्तिकी ।
महाफलद्वादशी : विशाखा नक्षत्र के साथ पौष कृष्ण ११ पर; देवता, विष्णु; एक वर्ष तक; मासों में शरीर पवित्रता (शुद्धि) के लिए कई वस्तुओं का प्रयोग तथा द्वादशी पर उन वस्तुओं का एक क्रम में दान, यथा--- घी, तिल, चावल; मृत्यु के उपरान्त विष्णुलोक की प्राप्ति हेमाद्रि ( व्रत० १, १०९५-१०९६, विष्णु रहस्य उद्धरण) ।
महाफलव्रत : एक पक्ष के लिए, चार मासों या एक वर्ष के लिए; कर्ता को पहली से पन्द्रहवीं तिथि तक कुछ वस्तुओं को ही खाना पड़ता है, वस्तुओं का क्रम यों है - दूध, पुष्प, सभी प्रकार का भोजन, किन्तु नमक नहीं, तिल, दूध, पुष्प, तरकारियाँ, बेल, आटा, अपक्व भोजन, उपवास, घी, दूध में चावल एवं गुड़ ( उबाला हुआ), जौ, गोमूत्र एवं कुश से पवित्र किया हुआ जल । इन सभी दिनों तक एक निश्चित तिथि का प्रयोग; व्रत के एक दिन पूर्व तीन बार स्नान, उपवास, वैदिक मन्त्रों, गायत्री आदि का पाठ; बहुत से पुण्य, अन्त में सूर्यलोक ; (२,३९२- ३९४, भविष्यपुराण से उद्धरण) ।
महाफल - सप्तमी : जब रविवार को सप्तमी एवं रेवती नक्षत्र होता है अशोक की कलियों से दुर्गा पूजा की है और कलियाँ खायी जाती हैं; पुरुषार्थ - चिन्तामणि ( १०५ ) ।
महाफाल्गुनी : देखिए कार्तिक के अन्तर्गत; गदाधरपद्धति ( कालसार, ५९९ ) ; पुरुषार्थ - चिन्तामणि (३१४) । महाभाष्टमी : बुधवार को पड़ने वाली पौष शुक्ल अष्टमी महाभद्रा कही जाती है और पवित्र मानी जाती है; देवता, शिव स्मृतिकौस्तुभ ( ४३८ ) ; गदाधरपद्धति ( कालसार, ६०५- ६०६ ) ; पुरुषार्थचिन्तामणि
( १३८) ।
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