SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 192
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ व्रत-सूची १७५ मन्थानषष्ठी : भाद्र शुक्ल ६ पर; देखिये व्रतार्क (सं० ३९७) । मन्दारषष्ठी : माघ शुक्ल ६ पर; पंचमी पर कर्ता हलका भोजन करता है; षष्ठी पर उपवास और मन्दार वृक्ष की पूजा; दूसरे दिन मन्दार में कुंकुम लगाना; एक ताम्रपत्र पर काले तिल से अष्ट दल कमल बनाना; मन्दार पुष्पों से आठ दिशाओं में पूर्व से आरम्भ कर विभिन्न नामों से सूर्य की पूजा; बीजकोष में हरि-पूजा; एक वर्ष तक प्रत्येक मास को ७ पर, वही विधि ; अन्त में स्वर्णिम प्रतिमा के साथ एक घट का दान। हेमाद्रि (व्रत० १, ६०६-६०८, भविष्योत्तरपुराण ४०।१-१५ से उद्धरण)। मन्दार स्वर्ग के पाँच वृक्षों में परिगणित है, अन्य चार हैं-पारिजात, सन्तान, कल्पवृक्ष एवं हरिचन्दन। मन्दारसप्तमी : माघ शुक्ल ७ पर ; पंचमी पर हलका भोजन ; षष्ठी पर उपवास; रात्रि में मन्दार पुष्प को खाना; दूसरे दिन ब्राह्मणों को आठ मन्दार पुष्प खिलाना; देवता, सूर्य ; अन्य बातें गत व्रत की भांति ; हेमाद्रि (व्रत० १, ६५०-६५२, पद्मपुराण ५।२१।२९२-३०६ से उद्धरण); कृत्यकल्पतरु (व्रत० २१९-२२१); मत्स्यपुराण (७९।१-१५)। मन्वादि : १४ मन्वन्तर होते हैं ; चार युगों से एक महायुग होता है जिसकी अवधि ४३२०००० वर्षों की होती है; एक सहस्र महायुग एक कल्प के बराबर होते हैं ; कल्प को ब्रह्मा का एक दिन कहा जाता है, ब्रह्मा की रात्रि भी एक कल्प के बराबर होती है। एक कल्प में १४ मन्वन्तर होते हैं, प्रत्येक मन्वन्तर में ७१ महायुग से थोड़ा अधिक होता है; विष्णुपुराण (३।२।५०-५१); मत्स्यपुराण (१४४।१०२-३, १४५।१); ब्रह्मपुराण (अध्याय-५); नारदपुराण (११५६।१४९-१५२); इन पुराणों में उन तिथियों का उल्लेख है जिनमें प्रत्येक मन्वन्तर का आरम्भ हुआ, इसी से उन्हें मन्वादि-तिथि कहा जाता है ; ये तिथियाँ पवित्र हैं और उनके लिए श्राद्ध किया जाता है। देखिये इस ग्रन्थ का (मूल), जिल्द ४, पृ० ३७५ एवं विष्णुधर्मोत्तरपुराण (१।१७६-१८९) जहाँ १४ मन्वन्तरों के नाम एवं विवरण दिये गये हैं। मरिचसप्तमी : चैत्र शुक्ल सप्तमी पर ; सूर्य-पूजा; ब्राह्मण-भोजन, प्रत्येक ब्राह्मण को 'ओं खखोल्काय' नामक मन्त्र के साथ १०० मरिच खाने होते हैं। इस व्रत के करने से कर्ता को अपने प्रियजनों का वियोग-दुख नहीं प्राप्त होता; राम एवं सीता तथा नल एवं दमयन्ती ने यह व्रत किया था; हेमाद्रि (व्रत० १, ६९६, भविष्योतरपुराण ११२१४।४०-४७ से उद्धरण)। ___ मरुद्-व्रत : चैत्र शुक्ल ७ पर; षष्ठी पर उपवास; सप्तमी पर ऋतुओं की पूजा; कर्ता को सात पंक्तियाँ बनानी होती हैं ; प्रत्येक पंक्ति में सात मण्डल होते हैं जो चन्दन-लेप से बनाये जाते हैं। प्रत्येक पंक्ति में 'एक ज्योतिः' से 'सप्तज्योतिः' तक के सात नाम लिखे जाते हैं। प्रत्येक पंक्ति में विभिन्न नाम; ४९ दीप जलाये जाते हैं; घी का होम एवं वर्ष भर ब्रह्म-भोज; अन्त में नवीन वस्त्र एवं गाय का दान; इस व्रत से पुत्रों, विद्या एवं स्वर्ग की प्राप्ति; हेमाद्रि (व्रत० १, ११७७५-७७७, विष्णुधर्मोत्तरपुराण ३।१६६।१-२२) । मरुत ७ या ७ के सात गुने हैं। देखिये ऋ० (५.५२।१७, सप्त में सप्त शाकिन), ते ० सं० (२।२।११।१, सप्तगणा व मरुत.)। मलमासकृत्य : अधिकमास या मलमास में किये जाने एवं न किये जाने वाले कर्मों के विषय में देखिये अधिमास आदि। मल्लद्वादशी : मार्ग शुक्ल १२ पर ; गोवर्धन पर्वत पर भाण्डीरवट के नीचे, यमुना के तटों पर श्रीकृष्ण ने गोपों (जो पहलवान या मल्ल थे) एवं गोपियों के साथ लीला (रास-लीला) की; मल्ल लोग पुष्पों, दूध, दही एवं खाद्य पदार्थों से पूजा करते हैं। प्रत्येक द्वादशी पर एक वर्ष तक ; मन्त्र यह है : 'कृष्ण मुझसे प्रसन्न रहें', इसे अरण्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002792
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1971
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy