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धर्मशास्त्र का इतिहास
मदनभञ्जी : यह दमनभञ्जी ही है। देखिये यथास्थान ।
मदनमहोत्सव : चैत्र शुक्ल १३ पर; तिथिव्रत; 'नमः कामाय देवाय देवदेवाय मूर्तये । ब्रह्म-विष्णु-सुशानां मनः क्षोभ कराय वै ।।' नामक मन्त्र के साथ मध्याह्न में कामदेव की प्रतिमा या चित्र की पूजा; काम के समक्ष मिष्ठान्न रखे जाते हैं; दो गायों का दान; पत्नी को अपने पति की पूजा यह समझ कर करनी चाहिये कि 'ये (मेरे पति ) स्वयं काम हैं; रात्रि में जागर, नृत्योत्सव, प्रकाश एवं नाटकाभिनय; प्रतिवर्ष किया जाना चाहिये; कर्ता चिन्ता रोग से मुक्त हो जाता है, यश एवं धन पाता है; हेमाद्रि ( व्रत० २, २१-२४, भविष्योत्तरपुराण से उद्धरण) शिव द्वारा मदन का जलाना एवं इस तिथि पर उसके पुनर्जन्म की गाथा दी हुई है ।
मदनोत्सव : कामसूत्र ( ११४१४२ ) में इसे सुवसन्तक कहा गया है।
मधुलवा : श्रावण शुक्ल ३, निर्णयसिन्धु ( १११ ) ; व्रतराज ' ( ९६ ) ; इन दोनों के मत से यह गुर्जर देश में
ख्यात है।
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मधुश्रावणी : कृत्यसारसमुच्चय ( पृ० १० ); श्रावण शुक्ल ३ को यह व्रत किया जाता है।
मधुसूदन पूजा : वैसाख शुक्ल १२ पर; विष्णु-पूजा; कर्ता को अग्निष्टोम का फल मिलता है और वह चन्द्रलोक जाता है; स्मृतिकौस्तुभ ( ११४ ) ।
मधुरत्रय: देखिये ऊपर त्रिमधुर; व्रतराज (१६) के मत से घी, दूध एवं मधु 'मधुरत्रय' है । मधूकव्रत : फाल्गुन शुक्ल ३ पर; स्त्रियों द्वारा उस दिन उपवास और दूसरे दिन मधूक पेड़ पर गौरी की पूजा और सौभाग्य, पुत्रों एवं सधवापन के लिये प्रार्थना; सधवा ब्राह्मणनारियों का पुष्पों, सुगंधित द्रव्यों, वस्त्रों एवं भोज्य पदार्थों से सम्मान; इससे स्वास्थ्य एवं सौन्दर्य की प्राप्ति हेमाद्रि ( व्रत० १ ४१३ - ४१५, भविष्योत्तरपुराण से उद्धरण) । मधूक को हिन्दी में महुआ कहते हैं ।
मनसाव्रत : ज्येष्ठ शुक्ल ९ पर जब हस्त नक्षत्र हो या दशमी पर जब हस्त नक्षत्र न भी हो; मनसादेवी की पूजा स्नूही पौधे की टहनी पर की जाती है; देखिये गत अध्याय - ७ जहाँ श्रावण मास में मनसा देवी की पूजा का उल्लेख है ( कृत्यरत्नाकर २३३ एवं कृत्यतत्त्व ४३७ ) ; हेमाद्रि (काल, ६२१, भविष्यपुराण से उद्धरण) का कथन है कि मनसा की पूजा आकाशकृष्ण ५ को होनी चाहिये । देखिये श्री ए० सी० सेन कृत 'बंगाली लेंग्वेज एण्ड लिटरेचर'; पु० २५७-२७६, जहाँ मनसादेवी एवं मनसा-मंगला की गाथा दी हुई है; श्रावण कृष्ण ११ को मनसा-पूजा का उल्लेख है। मनोरथतृतीया : चैत्र शुक्ल ३ पर; २० हाथों वाली गौरी की पूजा; एक वर्ष तक ; कर्ता 'जम्बू, अपामार्ग खदिर ऐसे वृक्षों की टहनियों से ही दाँत स्वच्छ करता है, वह कुछ विशेष अंजन हो प्रयोग, या केवल यक्षकर्दम, कुछ विशिष्ट पुष्पों (यथा-- मल्लिका, करवीर, केतकी) एवं नैवेद्य का प्रयोग; अन्त में आचार्य को तकिया, दर्पण आदि के साथ पलंग का दान ; ४ बच्चों एवं १२ कुमारियों को सम्मान एवं भोजन; सभी इच्छाओं की पूर्ति, स्कन्द (काशीखण्ड, ८०1१-७३ ) ; व्रतराज ( ८४-८८ ) ।
मनोरथद्वादशी : फाल्गुन शुक्ल ११ पर उपवास १२ को हरि-पूजा, होम तथा 'वासुदेव मेरी कामनाओं की पूर्ति करें" की प्रार्थना; वर्ष को ४ मासों के तीन दलों में विभाजित कर दिया जाता है; प्रत्येक अवधि में विभिन्न पुष्प, विभिन्न धूप, विभिन्न नैवेद्य, प्रत्येक मास में दक्षिणा देना; अन्त में विष्णु की स्वर्ण- प्रतिमा का दान १२ ब्राह्मणों को भोज; १२ घटों का दान हेमाद्रि ( व्रत० २. २३३ - २३५, विष्णुधर्मोत्तरपुराण से उद्धरण) ।
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मनोरथ- संक्रान्ति : वर्ष भर प्रत्येक संक्रान्ति दिन पर जलपूर्ण घट का गुड़ एवं वस्त्र के साथ किसी गृहस्थ को दान, देवता, सूर्य; कर्ता की कामनाओं की पूर्ति, पाप मुक्ति एवं सूर्यलोक की प्राप्ति हेमाद्रि ( व्रत० २, ७३१ स्कन्दपुराण से उद्धरण) ।
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