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बत-सूची
१७३ लिए, पुत्र प्राप्ति एवं सभी कामनाओं की पूर्ति के लिए मंगला से प्रार्थना; दूसरे दिन प्रातः गौरी विसर्जन ; व्रतराज (७८७-७९५ भविष्यपुराण से उद्धरण)।
. मंगलाष्टक : सौभाग्यसुन्दरी ऐसे व्रतों में आमन्त्रित नारियों में वितरित किये जाने वाले आठ द्रव्य ये हैं :--कुंकुम, नमक, गुड़, नारियल, ताम्बूल (पान का पत्ता), दूर्वा, सिन्दूर एवं अंजन; व्रतराज (पृ० ११९)।
मांगल्यसप्तमी या मांगल्यव्रत : सप्तमी पर; एक वर्गाकार मण्डप पर हरि एवं लक्ष्मी का आवाहन तथा पुष्पों आदि से पूजा; मिट्टी, ताम्र, चाँदी एवं सोने के चार पात्र ; मिट्टी के चार घटों को वस्त्र से ढंक कर उनमें नमक, तिल, एवं हल्दी का चूर्ण रखना चाहिये ; आठ सधवा, चरित्रवती तथा पुत्रवती नारियों को सम्मानित कर उन्हें दक्षिणा देना और उनकी उपस्थिति में मांगल्य (शुभ जीवन) के लिये हरि से प्रार्थना तथा उन्हें विदा करना; अष्टमी पर पुनः हरि-पूजा तथा आठ युवतियों एवं ब्राह्मणों को भोजन देना तथा पारण; सभी की, पुरुष या नारी, राजकुमार हो या कृषक, कामनाएं पूर्ण होती हैं ; हेमाद्रि (व्रत० १,७६८-७७०)।
मत्स्यजयन्ती : चैत्र शुक्ल ५ पर; मत्स्य अवतार में विष्णु-पूजा; अहल्याकामधेनु (३६० बी)। इसे हयपंचमी भी कहा जाता है।
मस्त्य-मांस-भक्षण-निषेध : देखिये कार्तिक एवं बकपंचक के अन्तर्गत ; तिथितत्त्व (१४६); गदाधरपद्धति (कालसार ३२)।
___ मत्स्यद्वादशी : मार्गशीर्ष शुक्ल १० पर नियमों का पालन; एकादशी पर उपवास ; द्वादशी को मन्त्र के साथ मिट्टी लाना और उसे आदित्य को अर्पित करना, शरीर में लगाना एवं स्नान करना; तिथिवत; नारायण-पूजा; चार घटों को पुष्पों के साथ जल से भरना, उन्हें तिल की खली से ढंकना तथा उन्हें चार समुद्र के रूप में जानना; विष्णु की मछली के रूप में स्वर्ण-प्रतिमा का निर्माण तथा पूजा; जागर ; चारों घटों का दान ; महापातक भी नष्ट हो जाते हैं; कृत्यकल्पतरु (व्रत० ३११-३१७); हेमाद्रि (व्रत० १, १०२२-२६, वराहपुराण ३९।२६-७७); कृत्यरत्नाकर (४६२-४६६, ब्रह्मपुराण स वे ही श्लोक उद्धृत हैं)।
मथुरा-प्रदक्षिणा : भारत के सात पवित्र तीर्थों में से एक तीर्थ मथुरा की प्रदक्षिणा; कार्तिक शुक्ल ९ पर स्मृतिकौस्तुभ (३७८, वराहपुराण से उद्धरण)।
मदनचतुर्दशी : इसे मदनमंजरी भी कहा जाता है; चैत्र शुक्ल १४ पर; तिथि; गानों एवं ललित शब्दों से मदन (कामदेव) की पूजा; कृत्यतत्त्व (४६६); तिथितत्त्व (१३३)।
- मदनत्रयोदशी : देखिये ऊपर अनंगत्रयोदशी एवं कामदेवत्रयोदशी। कृत्यरत्नाकर (१३७) ने ब्रह्मपुराण को उद्धृत करते हुए कहा है कि सभी त्रयोदशियों पर लोगों को काम पूजा करनी चाहिये।
मदनद्वादशी : चैत्र शुक्ल १२ पर; तिथिव्रत; ताम्र पात्र में काम एवं रति का चित्र खींचना; पात्र में गुड़ एवं अन्य खाद्यपदार्थ तथा एक घट पर सोना; घट में चावल एवं फलों के साथ जल; चित्र के समक्ष भोजन; गीत एवं प्रेम संगीत'; हरि की प्रतिमा को काम माम कर उसकी पूजा; दूसरे दिन घट का दान एवं ब्रह्म-भोज; कर्ता 'काम के रूप में भगवान् जनार्दन, जो सब के हृदय के आनन्द हैं, प्रसन्न होवें' नामक मन्त्र के साथ दक्षिणा दे कर स्वयं लवणहीन भोजन करता है ; त्रयोदशी को उपवास ; विष्णु-पूजा; द्वादशी को केवल एक फल खाकर भूमि पर शयन ; एक वर्ष तक ; अन्त में गोदान एवं वस्त्र-दान; तिल-होम ; कर्ता सभी पापों से मुक्त हो जाता है, पुत्र एवं धन पाता है और हरि से तादात्म्य स्थापित कर लेता है; कृत्यकल्पतरु (व्रत० ३६७-३६८); हेमाद्रि (व्रत० १, ११९४-११९८ मत्स्यपुराण से उद्धरण); कृत्यरत्नाकर (१३५-१३६) ।
मदन-पूजा : देखिये अनंगत्रयोदशी।
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