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________________ व्रत-सूची १७१ भुवनेश्वरयात्रा : भुवनेश्वर की १४ यात्राओं का वर्णन किया गया है (यथा -- प्रथमाष्टमी, प्रावारषष्टी, पुष्यस्नान, आज्यकम्बल), गदाधरपद्धति ( कालसार, १९०-१९४ ) । भूतचतुर्दशी : यह प्रेतचतुर्दशी ही है; देखिये ऊपर ; कृत्यतत्त्व ( ४५०-४५१) । भूतमभ्युत्सव : ज्येष्ठ की प्रथमा से पूर्णिमा तक भोजकृत सरस्वतीकण्ठाभरण ( एक काव्य - शास्त्र ) भूतमाता एवं उदसेविका एक ही उत्सव के तीन नाम भूत महोत्सव : यह उदसेविका ही है, देखिये ऊपर हेमाद्रि ( व्रत० २, ३५९-३६५, स्कन्दपुराण से उद्धरण) । हेमाद्रि ( व्रत० २, ३६५ - ३७० ) । यह उदसेविका ही है । ने इसे क्रीडाओं के अन्तर्गत परिगणित किया है। भातृभाण्डा, ; हेमाद्रि ( व्रत० २,३६७ ) । भूभाजन व्रत: यह संवत्सरव्रत है; जो व्यक्ति एक वर्ष तक खाली भूमि पर ( थाली या केले के पात पर नहीं ) भोज्यपदार्थ रख कर पितरों को अर्पित कर खाता है वह पृथिवी का स्वामी हो जाता है; हेमाद्रि ( व्रत० २,६८७, पद्मपुराण से उद्धरण) । भूमिव्रत : शुक्ल १४ पर लिंगव्रत विधि के अनुसार सूर्य-पूजा शिव के सम्मान में उपवास; कुंकुम पुष्प घृत के साथ पायस का अर्पण एवं किसी भक्त को भूमि दान कर्ता राजा की स्थिति पाता है; यह व्रत राजा द्वारा किया जाना चाहिये; हेमाद्रि ( व्रत २, ६३-६४, कालोत्तरपुराण से उद्धरण) । भृगुव्रत : मार्गशीर्ष कृष्ण १२ पर आरम्भ; तिथि ; भृगु नामक बारह देवों की पूजा ( इन देवों के नाम असाधारण एवं विलक्षण प्रतीत होते हैं); एक वर्ष तक ( प्रत्येक कृष्ण १२ पर); अन्त में गोदान हेमाद्रि ( व्रत १, ११७२, विष्णुधर्मोत्तरपुराण ३।१८०११-५ से उद्धरण) । ; भैमी एकादशी : जब माघ शुक्ल ११ को चन्द्र मृगशिरा नक्षत्र में हो तो उपवास करना चाहिये और द्वादशी को षप्तिली होना चाहिये, अर्थात् कर्ता को तिलयुक्त जल से स्नान करना चाहिये, शरीर पर तिल -लेप ( उबटन ) लगाना चाहिये, अग्नि में तिल डालना चाहिये, तिलयुक्त जल पीना चाहिये, तिल का दान करना चाहिये तथा खाना चाहिये; जो इस एकादशी पर उपवास करता है, वह विष्णुलोक जाता है; एकादशीतत्त्व ( पृ० १०१ ) ; तिथितत्त्व ( ११३ - ११४), वर्षक्रियाकौमुदी ( ५०४ ) । भैरव जयन्ती : कार्तिक कृष्ण ८ को कालाष्टमी कहा जाता है; उपवास; जागर; रात्रि के ४ प्रहरों तक भैरव पूजा तथा शिव के विषय की गाथाओं को सुनता हुआ जागर (जागरण); पापों से मुक्ति एवं उत्तम शिव भक्ति की प्राप्ति; काशी में रहने वालों के लिए यह अपरिहार्य है; समयमयूख ( ६०-६१ ) ; स्मृतिकौस्तुभ (४२७- ४२९); पुरुषार्थ - चिन्तामणि ( १३८ ) । भोगसंक्रान्तिव्रत : संक्रान्ति दिन पर नारियों को बुला कर उन्हें कुंकुम, अंजन, सिदूर, पुष्प, इत्र, ताम्बूल, कर्पूर एवं फल देना चाहिये; उनके पतियों को भी; भोजन देना तथा वस्त्रों का जोड़ा देना; एक वर्ष तक प्रत्येक क्रान्ति पर; अन्त में सूर्य-पूजा, पत्नी वाले ब्राह्मण को गोदान; कर्ता को सुख प्राप्त होता है; हेमाद्रि ( व्रत० २,७३३, स्कन्दपुराण से उद्धरण) । भोगावाप्तिवत: ज्येष्ठ पूर्णिमा के उपरान्त प्रथम तिथि से तीन दिनों तक हरि-पूजा; पलंग-दान ; आनन्दोपलब्धि स्वर्ग की प्राप्ति; विष्णुधर्मोत्तरपुराण ( ३।२१२1१-३ ) ; हेमाद्रि (व्रत० २,७५२) । भौमवारव्रत : मंगल पृथिवी का पुत्र एवं देखने में सुन्दर होता है; एक वर्ष तक प्रति मंगलवार को गुड़ से पूर्ण ताम्र पत्र देने से तथा अन्त में गोदान करने से सौन्दर्य एव धन की प्राप्ति होती है; हेमाद्रि ( व्रत० २,५६७ ) । भौमव्रत : (१) स्वाती नक्षत्र वाले मंगलवार को नक्त विधि से भोजन; सात बार ऐसा किया जाता है; एक ताम्र पत्र में लाल वस्त्र से आवृत कर के मंगल की स्वर्ण-प्रतिमा रखी जाती पुष्पों एवं नैवेद्य का अर्पण तथा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002792
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1971
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size18 MB
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