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________________ व्रत-सूची १६९ भवानीयात्रा : चैत्र शुक्ल ३ पर; १०८ प्रदक्षिणाएँ; जागर (जागरण); दूसरे दिन भवानी - पूजा; स्मृतिकौस्तुभ ( ९४ ) ; पुरुषार्थ चिन्तामणि ( १०९ ); वर्षकृत्यदीपक (४३) o भवानीव्रत : (१) तृतीया को पार्वती मन्दिर में पार्वती - प्रतिमा को अंजन लगाना; एक वर्ष तक; अन्त गोदान हेमाद्रि ( व्रत० १, ४८३, पद्मपुराण से उद्धरण); (२) जो व्यक्ति (स्त्री या पुरुष ) एक वर्ष तक प्रत्येक पौर्णमासी एवं अमावास्या को उपवास करके एक पार्वती प्रतिमा का सुगन्धित वस्तुओं के साथ दान करता है वह भवानी-लोक को जाता है; हेमाद्रि ( व्रत० २, ३९७, लिंगपुराण से उद्धरण); (३) तृतीया को पार्वती - मन्दिर में नक्त; एक वर्ष के लिये; अन्त में गो-दान; कृत्यकल्पतरु ( व्रत० ४५० मत्स्य० १०१।७७ से उद्धरण) । भाग्यऋक्षद्वादशी : पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र के साथ द्वादशी पर हरिहर - प्रतिमा की पूजा; प्रतिमा का एक आधा हर (शिव) एवं दूसरा आधा हरि का सूचक होता है; तिथि द्वादशी हो या सप्तमी हो और नक्षत्र पूर्वाफाल्गुनी, रेवती या घनिष्ठा हो, फल एक ही होता है; कर्ता को पुत्र, राज्य आदि प्राप्त होते हैं; कृत्यकल्पतरु ( व्रत०: ३५३ - ३५४ ) ; हेमाद्रि (व्रत० १, ११७५-७६, देवीपुराण से उद्धरण) ; पूर्वा फाल्गुनी को 'भाग्य' कहा जाता जाता है, क्योंकि 'भग' अधिष्ठाता देवता है; 'ऋक्ष' का अर्थ है 'नक्षत्र' । भाद्रपदकृत्य : नीलमतपुराण (७१, श्लोक ८६८-८७४, केवल शुक्ल के विषय में ) ; कृत्यरत्नाकर (२५४-३०१); वर्षक्रियाकौमुदी ( २९८-३४३ ) ; निर्णयसिन्धु ( १२३-१४४ ) ; कृत्यतत्त्व (४३८-४४४ ) ; स्मृतिकौस्तुभ ( २०१-२८७ ) ; गदाघरपद्धति (कालसार अंश २४) । भानुवत : सप्तमी को आरम्भ; उस दिन नक्त-विधि; देवता, सूर्य; एक वर्ष तक; अन्त में गो एवं सोने का दान ; सूर्यलोक की प्राप्ति; कृत्यकल्पतरु (४४८, मत्स्य० १०१६० से उद्धरण) ; हेमाद्रि (१, ७८६, पद्मपुराण से उद्धरण) । भानु सप्तमी : जब सप्तमी रविवार को पड़ती है तो इसे इस नाम से पुकारा जाता है; गदाधरपद्धति(कालसार अंश ६१० ) । भारभूतेश्वरयात्रा : आषाढ़ पूर्णिमा पर ; काशी में भारभूतेश्वर की पूजा ; पुरुषार्थचिन्तामणि ( २८४) । भास्करपूजा : ऐसा कहा गया है कि सूर्य को विष्णु के रूप में पूजना चाहिये, सूर्य विष्णु की दाहिनी आँख हैं, सूर्य की पूजा रम चक्र के समान मण्डल में होनी चाहिये तथा सूर्य पर चढ़ाये गये पुष्पों को उतार लिये जाने पर पूजक द्वारा अपनी देह पर नहीं धारण करना चाहिये; तिथितत्त्व ( ३६ ) ; पुरुषार्थचिन्तामणि ( १०४ ) ; बृहत्संहिता (५७।३१-५७) में देवों की प्रतिमा बनाने की विधि दी हुई है; इसके श्लोक ४६-४८ में वर्णन है कि सूर्य का पाँव से वक्ष तक का शरीर एक अंग रक्षा से ढँका रहना चाहिये । भास्कर - प्रिया - सप्तमी : जब शुक्ल सप्तमी पर सूर्य एक राशि से दूसरी राशि में जाता है तो उसे महाजया कहा जाता है, और वह सूर्य को अति प्रिय है तथा उस तिथि पर स्नान, दान, तप, होम, देवों एवं पितरों की पूजा से करोड़ गुना फल प्राप्ति होती है; कालविवेक ( ४१६), वर्षक्रियाकौमुदी (३५, भविष्यपुराण से उद्धरण ) ; तिथितत्त्व (१४५, ब्रह्मपुराण से उद्धरण) । भास्करव्रत : षष्ठी (कृष्ण १) पर उपवास, सप्तमी पर 'सूर्य प्रसन्न हो' शब्दों के साथ श्राद्ध; तिथिव्रत ; देवता, सूर्य; कर्ता रोग मुक्त हो जाता है और स्वर्ग जाता है; हेमाद्रि (व्रत० १, ७८८, भविष्यपुराण से उद्धरण) । भीमद्वादशी : (१) यह सर्वप्रथम वासुदेव द्वारा पाण्डव भीम को बतायी गयी थी, अतः यह नाम पड़ा; पह पहले कल्याणिनी के नाम से विख्यात थी; मत्स्यपुराण (६९।१९ - ६५ ) में विस्तृत विवेचन है; कृत्यकल्पतरु ( व्रत० ३५४-३५९), हेमाद्रि ( व्रत० १, १०४४-१०४९, पद्मपुराण से उद्धरण) ; माघ शुक्ल १० पर शरीर में घी २२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002792
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1971
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size18 MB
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