________________
११८
धर्मशास्त्र का इतिहास पुत्रों एवं यश की प्राप्ति; हेमाद्रि (व्रत० १, ९६०, विष्णुधर्मोत्तरपुराण ३।१७५।१-५ से उद्धरण); (२) आश्विन शुक्ल ९ पर; दीवार या वस्त्र पर भद्रकाली का चित्र ; उनके आयुधों एवं ढाल की पूजा; नवमी को उपवास एवं भद्रकाली की पूजा; समृद्धि एवं सफलता की प्राप्ति; हेमाद्रि (व्रत० १, ९६० ६२, विष्णुधर्मोत्तरपुराण, २। १५८।१८ से उद्धरण, कृत्यरत्नाकर (३५०); व्रतराज (३३७-३३८)। देखिये ब्रह्मपुराण (१८१४४६-५३) जहाँ भद्रकाली को मदिरा एवं मांस दिये जाने का उल्लेख है।
भद्रचतुष्टयव्रत : चार भद्र हैं, यथा-फाल्गुन शुक्ल २ से तीन मास (त्रिपुष्कर या त्रिपुष्प) ज्यष्ठ शुक्ल २ से तीन मास (त्रिपुष्पक), भाद्रपद शुक्ल २ से तीन मास (त्रिरामा) एवं मार्गशीर्ष शुक्ल १ से (विष्णुपद); प्रथम तिथि पर नक्त-विधि, दूसरी तिथि पर स्नानोपरान्त देवों, पितरों एवं मानवों को तर्पण, चन्द्रोदय के पूर्व हँसना एवं बोलना वर्जित तथा कृष्ण, अच्युत, अनन्त, हृषीकेश का नाम २ से ५ तक की तिथियों में लेना, सायं चन्द्र को अर्घ्य, पृथिवी पर या पत्थर पर रखा भोजन करना; एक वर्ष तक सभी वर्गों एवं स्त्रियों के लिए; कर्ता को यश एवं सफलता की प्राप्ति और वह अपने पूर्व जन्मों का स्मरण कर लेता है (जातिस्मर); हेमाद्रि (व्रत० २, ३८३-३९२, भविष्योत्तरपुराण १३।१-१००)।
भद्र-विधि : भाद्र शुक्ल ६ को जब रविवार पड़ता है तो भद्र कहलाता है; उस दिन उपवास या नक्त; मध्याह्न में सूर्य की मालती पुष्पों, चन्दन, विजय धूप एवं पायस नेवेद्य से पूजा; वारव्रत है; ब्राह्मण दक्षिणा; कर्ता भानु-लोक जाता है; कृत्यकल्पतरु (व्रत० १२-१३); हेमाद्रि (व्रत० २, ५२३-५२४, भविष्यपुराण से उद्धरण, इसे भद्राविधि कहा गया है); कृत्यरत्नाकर (२७८)।
भद्रावत' : कार्तिक शुक्ल तृतीया पर; गोमूत्र एवं यावक लेने के उपरान्त नक्त-विधि; प्रति मास एक वर्ष तक ; अन्त में गो दान ; एक कल्प तक गौरी-लोक में वास ; हेमाद्रि (व्रत० १, ४८३, पद्मपुराण से उद्धरण); कालनिर्णय (३३०)।
भद्राष्टमी : गदाधरपद्धति (कालसार अंश, ११६)।
भद्रासप्तमी : जब शुक्ल ७ को हस्त-नक्षत्र हो तो वह तिथि भद्रा कहलाती है; तिथिव्रत; देवता सूर्य ; कर्ता को ४ से ७ की तिथियों तक क्रम से एकभक्त, नक्त, अयाचित एवं उपवास.की विधि करनी पड़ती है; प्रतिमा को घी, दूध, ईख के रस से स्नान कराया जाता है, उपचार किये जाते हैं, विभिन्न दिशाओं में विभिन्न प्रकार के बहुमूल्य प्रस्तर प्रतिमा के पास सजाये जाते हैं; कर्ता सूर्यलोक जाकर ब्रह्मलोक चला जाता है; कृत्यकल्पतरु (व्रत० १३८-१४१); हेमाद्रि (व्रत० १, ६७१-६७३, भविष्यपुराण से उद्धरण); हेमाद्रि (काल, ६२५); पुरुषार्थचिन्तामणि (१०५)।
भद्रोपवासवत : यह भद्र-चतुष्टयव्रत ही है।
भर्तृ द्वादशीव्रत : चैत्र शुक्ल १२ को, एकादशी को उपवास एवं द्वादशी को विष्णु-पूजा; केशव से दामोदर तक के बारह नाम ; प्रति मास; एक वर्ष ; कृत्यरत्नाकर (१३१-१३४, वराहपुराण से उद्धरण); कृत्यकल्पतरु (व्रत० ३३९-३४०)।
भर्तृ प्राप्ति-व्रत : नारद ने यह उन अप्सराओं के गण को सुनाया था जो नारायण को पति बनाना चाहती थीं; वसन्त शुक्ल १२ को; उपवास; हरि एवं लक्ष्मी की पूजा; दोनों की प्रतिमाएं तथा उनके विभिन्न अंगों पर विभिन्न नामों से कामदेव का न्यास ; दूसरे दिन ब्राह्मण को प्रतिमाओं का दान ; हेमाद्रि (व्रत० १, ११९८-१२००, भविष्यपुराण से उद्धरण)।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org