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व्रत-सूची ब्रह्मपुत्रस्नान : चैत्र शुक्ल ८ को ब्रह्मपुत्र (इसे लौहित्य भी कहा जाता है) नदी में स्नान; सभी पाप कट जाते हैं, क्योंकि उस दिन उस नदी में सभी पवित्र नदियाँ एवं समुद्र उपस्थित माने जाते हैं ; वर्षक्रियाकौमुदी (५२२, कालिकापुराण एवं भविष्योत्तरपुराण ७७।५८-५९ से उद्धरण)।
ब्रह्मवत : (१) किसी भी शुभ दिन ; यह प्रकीर्णक है ; ब्रह्माण्ड की एक स्वर्ण-प्रतिमा; तीन दिनों तक तिल का दान; अग्नि की पूजा तथा किसी गृहस्थ एवं उसकी पत्नी को प्रतिमा एवं तिल का दान; कर्ता ब्रह्मलोक पहुँच जाता है और पुनः जन्म नहीं लेता; कृत्यकल्पतरु (क्त०, ४४५-४४६, २७ वाँ षष्टिवत) हेमाद्रि (व्रत० २,८८६, पपपुराण से उद्धरण)। मत्स्यपुराण (१०१-४६-४८); (२) द्वितीया को ब्रह्मचारी (वैदिक छात्र) का भोजन से सम्मान ; ब्रह्मा-प्रतिमा का निर्माण, उसे कमल-दल पर रख कर गन्ध आदि से पूजा; घी एवं समिधा से होम ; हेमाद्रि (व्रत० १, ३७७, भविष्यपुराण से उद्धरण)।।
ब्रह्म-सावित्री-व्रत : भाद्र शुक्ल १३ को तीन दिनों का उपवास करने का संकल्प; यदि असमर्थ हो तो १३ को नक्त, १४ को याचित तथा पौर्णमासी को उपवास; ब्रह्मा एवं सावित्री की स्वर्ण, चाँदी या मिट्टी की प्रतिमाओं की पूजा; पूर्णिमा पर जागर एवं उत्सव ; दूसरे दिन प्रातः सोने की दक्षिणा; हेमाद्रि (व्रत० २, २५८२७२, भविष्योत्तरपुराण से उद्धरण); यह वटसावित्री व्रत के समान ही है, केवल यहाँ हेमाद्रि में तिथि दूसरी है और सावित्री की गाथा विस्तार से कही गयी है।
ब्रह्मवाप्ति : किसी भी मास में शुक्ल १० से प्रारम्भ ; तिथिव्रत ; उपवास और 'अंगिरसः' नामक दस देवों की पूजा; एक वर्ष के लिए; हेमाद्रि (व्रत० १, ९६६, विष्णुधर्मोत्तरपुराण से उद्धरण)।
ब्राह्मण्याप्राप्ति : चैत्र शुक्ल को प्रथमा से चौथ तक आरम्भ ; तिथि-क्रम में वासुदेव के चार रूपों, यथा---इन्द्र, यम, वरुण एवं कुबेर की चार प्रतिमाओं की गन्ध आदि से पूजा ; होम ; चार दिनों में दिये जाने वाले वस्त्रों का रंग लाल, पीला, काला एवं श्वेत होता है; एक वर्ष तक ; कर्ता प्रलय तक स्वर्ग की प्राप्ति करता है; हेमाद्रि (व्रत० २, ५००-५०१, विष्णुधर्मोत्तरपुराण से उद्धरण )। यह एक चतुमूर्ति व्रत है।
ब्राह्मण्याबाप्ति : ज्येष्ठ पौर्णमासी को; सपत्नीक ब्राह्मण का भोजन, वस्त्र दान तथा पुष्पों आदि से सम्मान; कर्ता सात जन्मों तक ब्राह्मण-वर्ण में जन्मता है; हेमाद्रि (व्रत० २, २४५, प्रभासखण्ड से उद्धरण); कृत्यरत्नाकर (२७८-२७९)।
ब्राह्मीप्रतिपद-लाभ-व्रत : चैत्र शुक्ल १ से आरम्भ ; उपवास ; रंगीन चूर्णों से अष्ट-दल कमल का निर्माण; बीज कोष पर ब्रह्मा-प्रतिमा का पूजन ; चारों दिशाओं में पूर्व से आरम्भ कर क्रम से ऋग्वेद, यजुर्वेद एवं अथर्ववेद की प्रतिमाएं; दक्षिण-पूर्व कोण से आरम्भ कर क्रम से अंगों, धर्मशास्त्रों, पुराणों एवं न्यायविस्तर को रखा जाता है; एक वर्ष तक प्रत्येक मास की प्रथम तिथि से पूजा का आरम्भ और अन्त में गोदान; इस व्रत से कर्ता वेदज्ञ हो जाता है और १२ वर्षों में ब्रह्मलोक पहुँच जाता है; विष्णुधर्मोत्तरपुराण (३।१२६।१-१२); हेमाद्रि (व्रत० १, ३४३) । प्रन्थों की सज्जा से याज्ञ० (१।३) का स्मरण हो जाता है।
भद्रकाली नवमी : चैत्र शुक्ल ९ पर उपवास तथा पुष्पों आदि से भद्रकाली की पूजा, या सभी नवमियों पर भद्रकाली की पूजा; नीलमतिपुराण (श्लोक ७६२-६३)।
भद्रकाली-पूजा : राजनीतिप्रकाश (पृ० ४३८) में राजा के लिए व्यवस्थित; यह भद्रकालीव्रत ही है देखिये नीचे (२)।
भद्रकालीवत : (१) कार्तिक शुक्ल ९ पर प्रारम्भ ; उस दिन उपवास ; देवता, भद्रकाली (भवानी); एक वर्ष तक प्रति मास नवमी पर पूजा; अन्त में किसी ब्राह्मण को दो वस्त्रों का दान; रोग-मुक्ति,
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