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________________ व्रत-सूची १६५ बहुला : भाद्रपद कृष्ण ४ को मध्य भारत में इसी नाम से पुकारा जाता है; गायों को सम्मानित किया जाता है और उस दिन पकाया जो खाया जाता है; निर्णयसिन्धु (१२३); वर्षकृत्यदीपक (६७) । बालव्रत : बैल, कूष्माण्ड, सौना एवं वस्त्र का दान पद्मपुराण ( ३।५।१४ एवं ३१-३२) जिसने ( पुरुष या स्त्री) पूर्व जीवन में किसी शिशु को मार डाला हो या समर्थ होने पर भी किसी बच्चे को बचा न सका और संतान रहित हो गया हो, उसे यह व्रत करना चाहिये । बालेन्दुव्रत या बालेन्दुद्वितीयाव्रत : चैत्र शुक्ल २ पर; सन्ध्या को नदी में स्नान, द्वितीया के चन्द्र का चित्र बना कर उसकी पुष्पों एवं सर्वोत्तम नैवेद्य से पूजा पूजा के उपरान्त भोजन; एक वर्ष तक तेल से बना भोजन त्याज्य; इससे कल्याण एवं स्वर्ग की प्राप्ति; हेमाद्रि ( व्रत० १ ३८०-३८२, विष्णुधर्मोत्तरपुराण से उद्धरण ) ; स्मृतिकौस्तुभ (९० ) । बिल्वत्रिरात्रव्रत : ज्येष्ठा नक्षत्र से युक्त ज्येष्ठ पूर्णिमा पर सरसों से युक्त जल से स्नान, बिल्व वृक्ष पर जल छिड़कना और उसे गन्ध आदि से पूजना; एक वर्ष तक एक नक्त-विधि; वर्ष के अन्त में बिल्व वृक्ष के पास, बाँस के पात्र में बालू जौ, चावल, तिल आदि भर कर पहुँचना तथा पुष्पों आदि से उमा एवं महेश्वर की पूजा वैधव्याभाव, सम्पत्ति, स्वास्थ्य, पुत्रादि के लिए मन्त्र के साथ बिल्व को सम्बोधित करना; सहस्रों बिल्व-दल से होम, सोने के फलों के साथ चाँदी का एक बिल्व वृक्ष बनाना; उपवास के साथ १३ से पूर्णिमा तक तीन दिन तक जागर; दूसरे दिन प्रातः स्नान; वस्त्रों, आभूषणों आदि से आचार्य को सम्मान १६, ८ या ४ सपत्नीक ब्राह्मणों को भोजन; इस व्रत से उमा, लक्ष्मी, शची, सावित्री एवं सीता को क्रम से शिव, कृष्ण, इन्द्र, ब्रह्मा एवं राम ऐसे पतियों की प्राप्ति हुई; हेमाद्रि ( व्रत० २, ३०८-३१२, स्कन्दपुराण से उद्धरण); स्मृतिकोस्तुभ ( १२३-१२४) । बिल्वरोटक व्रत : देखिये रोटकव्रत । बिल्वलक्षव्रत : पुरुष या स्त्री द्वारा श्रावण, वैसाख, माघ या कार्तिक में प्रतिदिन तीस सहस्र बिल्व बत्तियाँ ( बत्तियाँ रूई से स्त्री द्वारा बटी जाती हैं और घी या तिल के तेल में डुबोयी रहती हैं) जलायी जाती हैं, ये बत्तियाँ ताम्र पात्र में रख दी जाती हैं और शिव मन्दिर में या गंगा तट पर या गोशाला में या किसी ब्राह्मण के समक्ष यह कृत्य होता है; एक लाख या एक करोड़ बत्तियाँ बनायी जाती हैं; यदि सम्भव हो तो सभी बत्तियाँ एक ही दिन जलायी जा सकती हैं; पूर्णिमा पर उद्यापन; वर्षक्रियादीपक ( ३९८-४०३ ) । बिल्वशाखापूजा : आश्विन शुक्ल ७ पर; समममयूख ( २३ ) ; व्रतराज ( २४८ ) ; देखिये गत अध्याय -- ९ ( दुर्गोत्सव) । बुद्धजन्म महोत्सव : वैसाख शुक्ल में जब कि चन्द्र पुष्य नक्षत्र में हो । शाक्य द्वारा कहे गए वचनों के साथ प्रतिमा स्थापन और मन्दिर को स्वच्छ कर के श्वेत रंग पोत दिया जाता है; तीन दिनों तक नैवेद्य एवं दाम दरिद्र लोगों को दिया जाता है; नीलमतपुराण ( पृ० ६६-६७, श्लोक ८०९ ८१६ ) । यह द्रष्टव्य है कि नीलमतपुराण में बुद्ध को भी कलियुग में विष्णु का अवतार माना गया है । सर्वास्तिवादियों के मत से बुद्ध का परिनिर्वाण कार्तिक में तथा सिंहली परम्परा के अनुसार वैसाख में हुआ था। देखिये मिलिन्दकाल का बजौर मंजूषा अभिलेख (एपि० इं०, जिल्द २४ ) । बुद्ध द्वावशो : श्रावण शुक्ल १२; तिथि; गन्ध आदि से बुद्ध की स्वर्णिम प्रतिमा का पूजन; ब्राह्मण को दान; शुद्धोदन ने यह व्रत किया था, अतः स्वयं विष्णु उन्हें पुत्र रूप में प्राप्त हुए; कृत्यकल्पतरु ( व्रत० ३३१-३३२ ) ; हेमाद्रि ( व्रत० १ १०३७-१०३८, वराहपुराण से धरणी व्रत के रूप में उद्धृत); कृत्यरत्नाकर ( २४७ - २४८ ) । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002792
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1971
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size18 MB
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