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व्रत-सूची १५७ चाहिए, वेदी पर पहले होम हो गया रहना चाहिए; देवी को भाँति-भाँति के फूल - फल चढ़ाने चाहिए; हेमाद्रि ( व्रत० २, २३२) में विद्यामन्त्र दिये हुए हैं; हेमाद्रि ( व्रत २, २३० - २३३, देवीपुराण से उद्धरण) ।
पुत्रव्रत : (१) यह 'पुत्र - कामव्रत' ही है; हेमाद्रि ( व्रत० २ १७१ - १७२ ); (२) प्रातः सूर्योदय के पूर्व स्नान करके पिप्पल (पीपल) वृक्ष को स्पर्श करना, तिलपूर्ण घट का दान ; सभी पाप कट जाते हैं; हेमाद्रि ( व्रत० २, ८८३, भविष्योत्तरपुराण से उद्धरण) ।
पुत्र सप्तमी : (१) माघ शुक्ल एवं कृष्ण ७ पर; षष्ठी को उपवास एवं होम करके दोनों सप्तमियों पर सूर्य-पूजा; एक वर्ष; पुत्र, धन, यश एवं स्वास्थ्य की प्राप्ति; कृत्यकल्पतरु ( व्रत० १६६-१६७ ) ; हेमाद्रि ( व्रत० १, ७३८-७३९, आदित्यपुराण से उद्धरण) ; व्रतराज ( २५५ ) ; ( २ ) भाद्रपद शुक्ल एवं कृष्ण ७ पर; षष्ठी को संकल्प एवं सप्तमी को उपवास; विष्णु नाम वाले मन्त्रों के साथ विष्णु - पूजा; गोपाल- मन्त्रों के साथ अष्टमी को विष्णु - पूजा तथा तिल से होम; एक वर्ष; वर्ष के अन्त में २ काली गायों का दान, पुत्र-प्राप्ति एवं सभी पापों से मुक्ति; कृत्यकल्पतरु ( व्रत० २२४- २२५ ) ; हेमाद्रि ( व्रत० १, ७२४ - २५, वराहपुराण ६३।१ ७ से उद्धरण) ।
पुत्रीयव्रत भाद्रपद पूर्णिमा के उपरान्त कृष्ण ८ पर; उस दिन उपवास; गोविन्द प्रतिमा को सर्वप्रथम एक प्रस्थ घी तथा क्रम से मधु, दही तथा दूध में नहलाना और तब सर्वोषधि से युक्त जल में नहलाना, इसके उपरान्त उस पर चन्दन-लेप, कुंकुम एवं कर्पूर लगाना; पुष्पों एवं अन्य उपचारों से प्रतिमा पूजन; पुरुषसूक्त (ऋ०१०-९० ) के साथ होम ; तब पुत्र या पुत्री चाहने वाला ऐसे फलों का दान करता है जो क्रम से पुंल्लिंग या स्त्रीलिंग के सूचक हों; एक वर्ष तक ; सभी इच्छाओं की पूर्ति हेमाद्रि ( व्रत० १, ८४४-४५, विष्णुधर्मोत्तर पुराण २।५५।१-१२ से उद्धरण) ।
पुत्रीय- सप्तमी : मार्गशीर्ष शुक्ल ७ पर; सूर्य पूजा; उस दिन केवल हविष्य - भोजन; दूसरे दिन गन्ध से आरम्भ कर अन्य उपचारों से सूर्य पूजा तथा नक्त भोजन ( दिन भर कुछ नहीं केवल रात्रि में भोजन ) ; एक वर्ष तक, हेमाद्रि ( व्रत० १, ७८९-९०, विष्णुधर्मोत्तर पुराण से उद्धरण) । "पुत्रीय" का अर्थ है 'जो पुत्र-लाभ कराता है' ।
पुत्रीयानन्तव्रत : मार्गशीर्ष में आरम्भ; एक वर्ष; प्रत्येक मास में उस नक्षत्र पर जिससे उस मास का नाम पड़ता है; कर्ता उपवास करता है और विष्णु-पूजा करता है; वारह मासों में विष्णु के बारह अंगों की पूजा, यथामार्गशीर्ष में बायाँ घुटना, पौष में कटि का वाम पक्ष आदि; चार मासों के प्रत्येक दल में विभिन्न रंगों के पुष्प तथा मार्गशीर्ष से आरम्भ कर तीनों अवधियों में गाय के मूत्र, दूध एवं दही से स्नान कराना होता है; सभी मासों में अनन्त - नाम का जप एवं होम; अन्त में ब्रह्म-भोज एवं दान; इच्छाओं की पूर्ति, यथा--पुत्र, धन, जीविका आदि की प्राप्ति; विष्णुधर्मोत्तरपुराण (१।१७३) ।
पुत्रोत्पत्तिव्रत: यह नक्षत्र व्रत है; एक वर्ष तक प्रत्येक श्रवण नक्षत्र पर यमुना में स्नान; इससे वैसा ही पुत्र प्राप्त होता है जैसा कि शक्ति के पुत्र एवं वसिष्ठ के पौत्र पराशर को प्राप्त हुआ था; कृत्यकल्पतरु ( व्रत० ४०९, वराहपुराण से उद्धरण); हेमाद्रि ( व्रत० २६४९-५०, आदित्यपुराण से श्लोकों का उद्धरण) ।
पुरश्चरण- सप्तमी : माघ शुक्ल ७ को जब रविवार हो और सूर्य मकर राशि में हो; लाल पुष्पों, अर्घ्य, आदि से सूर्य - प्रतिमा की पूजा; पञ्चगव्य-पान; एक वर्ष तक; विभिन्न पुष्पों, धूप एवं नैवेद्य प्रति मास में; सभी पापों के प्रभाव से मुक्ति हेमाद्रि ( व्रत० १, ८०५-८१०, स्कन्द, नागरखण्ड से उद्धरण) । पुरश्चरण में पाँच तत्त्व होते हैं, यथा--- जप, पूजा एवं होम, तर्पण, अभिषेक तथा ब्राह्मण-सम्मान स्मृतिकौस्तुभ (७४) ।
पुराणश्रवणविधि : हेमाद्रि ( व्रत० २,९९७ - १००२) ।
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