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बत-सूची
१५५ क्रम से हीरा, मरकत, मोती, इन्द्रनील, माणिक्य, गोमेद (एक ऐसी मणि जो हिमालय एवं सिन्धु से लायी जाती थी), प्रवाल (कार्तिक एवं मार्गशीर्ष में), सूर्यकान्त, स्फटिक से बनाया जाता है; वर्ष के अन्त में गोदान एवं साह छोड़ना; या यह केवल एक मास तक ही सम्पादित किया जाय, विशेषत: यदि कर्ता दरिद्र है; शिव के स्कन्द आदि विभिन्न रूपों को सम्बोधित बहुत से श्लोक, यथा--जिनके अन्त में है-'पापमाश व्यपोहतु' (वह मेरा पाप दूर करे), 'स मे पापं व्यपोहतु' या 'व्यपोहन्तु मलं मम'; हेमाद्रि (व्रत० २, १९७-२१२, लिंगपुर।ण); (२) चैत्र पूर्णिमा पर; त्रयोदशी को सुपात्र अथवा सुयोग्य आचार्य का सम्मान ; जीवन भर, १२ वर्षों, ६ या ३ या १ वर्ष या १ मास या १२दिनों के लिए व्रत करने का संकल्प ; होम, घी एवं समिधा के साथ ; चतुर्दशी को उपवास ; पूर्णिमा को होम ; 'अग्निरिति भस्म' आदि ६ मन्त्रों के साथ शरीर में भस्म लगाना (अथर्वशिरस् उप०५); हेमाद्रि (व्रत० २, २१२-२२२, वायुसंहिता); (३) कृष्ण १२ को एकभक्त विधि से भोजन, त्रयोदशी को अयाचित विधि से तथा चतुर्दशी को नक्त-विधि से तथा अमावास्या को उपवास, अमावास्या के उपरान्त स्वर्ण-बैल का दान ; हेमाद्रि (व्रत० २, ४५५-४५७, अग्निपुराण से उद्धरण)।
पाषाणचतुर्दशी : शुक्ल १४ को जब सूर्य वृश्चिक राशि में हो; सूर्यास्त के उपरान्त पत्थर के गोलों के रूप में आटे के चार गोले खाकर गौरी को प्रसन्न करना ; कालविवेक (४७०); वर्षक्रियाकौमुदी (४८३); तिथितत्त्व (१२४)।
पिठोरी अमावास्या : श्रावण कृष्ण ३०।
पितृवत : (१) एक वर्ष तक प्रत्येक अमावास्या पर; कर्ता केवल दूध पर रहता है, वर्ष के अन्त में श्राद्ध करता है तथा ५ गायें या वस्त्र जलपूर्ण पात्रों के साथ दान करता है; १०० पूर्वजों की रक्षा करता है (तारता है) और विष्णुलोक जाता है; कृत्यकल्पतरु (४४३, १६वाँ षष्टिव्रत, मत्स्य० १०१।२९-३० से); (२) चैत्र कृष्ण प्रतिपदा से ; अग्निष्वात्त, बहिषद आदि सात पितृ-दलों की सात दिनों तक पूजा; एक या बारह वर्षों तक ; हेमाद्रि (त० २, ५०५-५०६, विष्णुधर्मोत्तरपुराण ३३१५७१-७ से, सप्तमूर्तिव्रत कहा गया है); (३) विष्णुधर्मोत्तरपुराण (३।१८९।१-५); (४) चैत्र कृष्ण ३० से; पितरों के सात दलों का श्राद्ध एवं उपवास ; एक वर्ष तक; हेमाद्रि (वत० २।२५५, विष्णुपुराण से); (५) अमावास्या पर पितरों को तिल एवं जल जिसमें कुश रखे रहते हैं, उस दिन उपवास; हेमाद्रि (क्त० २।२५३, वराहपुराण से उद्धरण); (६) पिण्डों से पितृ-पूजा; घृत की धारा, समिधा, दही, दूध, भोजन आदि से होम ; पितर लोग संतति प्रदान करते हैं, धन, दीर्घायु आदि देते हैं; हेमाद्रि (व्रत० २, २५४, भविष्यपुराण से उद्धरण)।
पिपीतक-द्वादशी : वैशाख शुक्ल १२ पर; केशव की प्रतिमा को शीतल जल से नहलाना तथा गंध, पुष्प आदि उपचारों से पूजा ; प्रथम वर्ष में चार जलपूर्ण घड़ों का दान ; दूसरे वर्ष में इसी प्रकार ८ घड़ों, तीसरे में १२ घड़ों, चौथे में १६ घड़ों का दान ; सोने की दक्षिणा; पिपीतक नामक ब्राह्मण के नाम से विख्यात ; व्रतकालविवेक (१९-२०); वर्षक्रियाकौमुदी (२५२-२५८); तिथितत्त्व (११४) ।
पिशाचचतुर्दशी : चैत्र कृष्ण १४ पर; शंकर-पूजा और रात्रि में उत्सव ; उस दिन निकुम्भ शंकर की पूजा करता है, अतः निकुम्भ को सम्मानित करनी चाहिए और गोशालाओं, नदियों, मार्गों, शिखरों आदि पर पिशाचों को बलि देनी चाहिए; निर्णयामृत (५५-५६, श्लोक ६७४-६८१)।
पिशाच-मोचन : (१) मार्गशीर्ष शुक्ल १४ पर; काशी में कपर्दीश्वर के पास स्नान एवं पूजा; वहाँ भोजन-वितरण ; प्रति वर्ष ; कर्ता पिशाच होने से बच जाता है; पुरुषार्थचिन्तामणि (२४७-२४८), (२) स्मृतिकौस्तुभ
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