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________________ व्रत-सूची १५३ का दान ; हेमाद्रि (वत० २, २५४, पद्मपुराण से उद्धरण); (३) फाल्गुन शुक्ल १ से १२ तक, गोविन्द को प्रसन्न करने के लिए केवल दूध का सेवन ; स्मृतिकौस्तुभ (५१३-५१४, भागवतपुराण ८।१६।२२-६२ का उद्धरण)। परशुराम जयन्ती : देखिए ऊपर 'अक्षय तृतीया'; पुरुषार्थचिन्तामणि (८९)। परशुरामीवाष्टमी : आश्विन शुक्ल ८ पर; पुरुषोत्तम-क्षेत्र की १४ यात्राओं में एक ; गदाधरपद्धति (कालसार, १९३)। पर्वताष्टमी-व्रत : नवमी पर हिमवान्, हेमफूट, निषध, नील, श्वेत, शृंगवान्, मेरु, माल्यवान्, गन्धमादन नामक पर्वतों तथा फिम्पुरुष, उत्तर कुरु नामक वर्षों (देशों) की पूजा; चैत्र शुक्ल ९ को उपवास; एक वर्ष तक; अन्त में चांदी का दान ; विष्णुधर्मोत्तर (३।१७४।१-७)। पर्वनक्तवत: एक वर्ष तक प्रत्येक मास की १५वीं तिथि पर नक्त-विधि का प्रयोग ; प्रकीर्णक व्रत'; देवता शिव ; वर्ष के अन्त में शिव-भक्तों को स्वामी प्रसन्न हों' के साथ भोजन देना; शिवलोक की प्राप्ति, पुनः मनुष्य-योनि में नहीं आना पड़ता ; हेमाद्रि (व्रत० २, पृ० ९०५-६, भविष्यपुराण से उद्धरण)। पर्वभभाजन-व्रत : पर्व के दिनों में खाली ममि पर दिया गया (परोसा गया) भोजन ग्रहण करना; देवता शिव ; अतिरात्र यज्ञ का फल प्राप्त होता है; हेमाद्रि (वत० २, ९०६, पद्मपुराण का एक श्लोक)। पल्लव : पाँच शुभ पल्लव हैं-~आम्र, अश्वत्थ, वट, प्लक्ष एवं उदुम्बर; (दुर्गाभक्तितरंगिणी, पृ० २७); हेमाद्रि (व्रत०१,४७, भविष्यपुराण का उद्धरण) के अनुसार इन्हें “पञ्चमंग" भी कहा जाता है। पवनव्रत : (षष्टिवतों में एक); माघ की अष्टमी पर; दिन मर गीला वस्त्र धारण किये रहना चाहिए और गोदान करना चाहिए; एक कल्प के लिए स्वर्ग-लाभ होता है और उसके उपरान्त राजा का पद मिलता है। कृत्यकल्पतरु (व्रत० ४५०)। माघ अति ठण्डा मास है। पवित्रारोपण-व्रत : (किसी देवता को पवित्र धागे से युक्त करना); हेमाद्रि (व्रत० २, ४४०-४५३); हेमाद्रि (काल० ८८१-८९०); ईशानशिवगुरुदेवपद्धति, २१वां पटल; समयमयूख (८१-९०); पु० चिन्तामणि (२३५-२३९) आदि ने इस पर विस्तार से लिखा है। पवित्रारोपण से सभी पूजाओं में किये गये दोषों का मार्जन हो जाता है और जो इसे प्रति वर्ष नहीं करता है उसे वांछित फलों की प्राप्ति नहीं होती और वह विघ्नों से घिर जाता है। विभिन्न देवों को पवित्रारोपण विभिन्न तिथियों में होता है। वासुदेव के लिए श्रावण शुक्ल १२ को किया जाता है, जब कि सूर्य सिंह या कन्या राशि में होता है, किन्तु उस समय नहीं जब कि सूर्य तुला राशि में हो; देवों के लिए कुछ तिथियाँ ये हैं--प्रथमा (कुबेर के लिए), द्वितीया (त्रिदेवों के लिए), तृतीया (भवानी के लिए), चतुर्थी (गणेश के लिए), पंचमी (चन्द्र के लिए), षष्ठी (कातिकेय के लिए), सप्तमी (सूर्य के लिए), अष्टमी (दुर्गा के लिए), नवमी (माताओं के लिए) तथा दशमी, एकादशी, द्वादशी, त्रयोदशी, चतुर्दशी एवं पूर्णिमा क्रम से वासुकि, ऋषियों, विष्णु, कामदेव, शिव एवं ब्रह्मा के लिए; देखिए हेमाद्रि (व्रत० २, पृ० ४४२); पुरुषार्थचिन्तामणि (पृ० २३८)। यदि कोई शिव को पवित्र का आरोपण प्रतिदिन करता है तो वैसा किन्हीं वृक्षों या पुष्पों की पत्तियाँ या कुशाओं से किया जाना चाहिए, किन्तु वार्षिक पवित्रारोपण की रिथर तिथि है आषाढ़ (सर्वोत्तम),श्रावण (मध्यम) या भाद्रपद (निकृष्ट,तीसरी कोटि) की अष्टमी या चतुर्दशी; किन्तु जो लोग मोक्ष के आकांक्षी हैं उन्हें इसे कृष्ण पक्ष में तथा अन्य लोगों को शुक्ल पक्ष में करना चाहिए। पवित्र सोने, चाँदी, पीतल या रेशम या कमल के धागों से बन सकता है या कुश या रुई का बन सकता है; धागों को बुनना एवं काटना ब्राह्मण कुमारियों (सर्वोत्तम) या क्षत्रिय या वैश्य कुमारियों (मध्यम) या शूद्र कुमारियों (निकृष्ट) द्वारा हो सकता है। पवित्र में १०० गाँठे (उत्तम) २० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002792
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1971
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size18 MB
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