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व्रत-सूची
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का गोबर एवं मूत्र तथा श्वेत गाय का दूध मिलाया गया हो; हेमाद्रि (व्रत० २, ६८८-६९१)। यह द्रष्टव्य है कि इस विषय में कि जनन के उपरान्त किन नक्षत्रों से उपर्युक्त नाम सम्बन्धित हैं, वैखानसगृह्य सूत्र (४।१४), विष्णुधर्मोत्तरपुराण (२११६६), नारदपुराण (११५६।३५८-५९), वराहमिहिर रचित योगयात्रा (९।१-२) ने विभिन्न मत दिये हैं।
नवनीतधेनुदान : कार्तिक अमावास्या पर ; ब्रह्मा एवं सावित्री की पूजा; विभिन्न फलों, सोने एवं वस्त्रों के साथ नवनीत की धेन का दान ; पुरुषार्थचिन्तामणि (३१५)। देखिए मूल ग्रन्थ, खण्ड २, पृ० ८८३।।
नवमीरथवत : आश्विन कृष्ण ९ पर उपवास एवं दुर्गा-पूजा; वस्त्र, झंडों, छत्र, दर्पणों, मालाओं, सिंहों, चित्रों से अलंकृत देवी-रथ की पूजा ; रथ में महिष पर त्रिशूल रखने वाली दुर्गा की स्वर्ण-प्रतिमा को रख दिया जाता है ; जन-मार्ग से रथ को ले जाकर दुर्गा-मन्दिर के पास लाया जाता है, मशालों, नाटक, नृत्यों आदि से रात्रि भर जागरण (जागर); दूसरे दिन प्रातः प्रतिमा-स्नान ; देवी के भक्तों को भोजन ; शय्या, बैल, गाय आदि के दान से पुण्य ; कृत्य रत्नाकर (३१४-३१५)।
नवमीवत : कृत्यकल्पतरु (वत० २७३-३०८); हेमाद्रि (व्रत० १, ८८७-९६२); कालनिर्णय (२२९२३०); तिथितत्त्व (५९,१०३); पुरुषार्थचिन्तामणि (१३९-१४२); व्रतराज (३१९-३५२); अष्टमी से युक्त नवमी को अच्छा माना जाता है ; तिथितत्त्व (५९); धर्मसिन्धु (१५); चैत्र शुक्ल ९पर मद्रकाली को सभी योगिनियों की रानी बनाया गया, अतः सभी नवमियों पर उपवास करना चाहिए और उसकी पूजा करनी चाहिए। कृत्यकल्पतरु (नयतकालिक काण्ड, ३८३); कृत्यरत्नाकर (१२७-१२८)।
नवम्यादि-उपवासवत : अष्टमी, नवमी, चतुर्दशी एवं पूर्णिमा पर उपवास; व्यक्ति शिव के गणों का अधिपति हो जाता है ; हेमाद्रि (व्रत० २, ५०९, मत्स्यपुराण से उद्धरण)।
नवरात्रवत : देखिए दुर्गापूजा के अन्तर्गत, गत अध्याय ९।
नवव्यूहारोचन : किसी भी शुक्ल की या आषाढ़ या फाल्गुन की एकादशी पर या संक्रान्ति पर या ग पर पूर्वोत्तर दिशा में झुके हुए भूमिखण्ड पर बने मण्डप में विष्णु की पूजा, यज्ञ आदि; मण्डप में द्वार रहते हैं, उसके मध्य में कमल होता है ; आठों दिशाओं के स्वामियों (दिक्पालों) के आठ आयुधों, यथा-वज्र, शक्ति, गदा (यम की), असि, पाश (वरुण का), झण्डा, मुंगरी (कुबेर की), शूल (शिव का) के चित्र बनाये जाते हैं; वासुदेव, संकर्षण, नारायण, वामन की, जो विष्णु के व्यूह कहे जाते हैं, चित्राकृतियां बनायी जाती हैं ; होम ; हेमाद्रि (प्रत० १।११२५ ११३१, विष्णुधर्मोत्तरपुराण से उद्धरण)।
नवान्नभक्षण : मार्गशीर्ष में जब तक सूर्य वृश्चिक राशि में १४ अंश न पहुँच जाय ; कृत्यसारसमुच्चय (२७); निर्णयामृत (पृ०७२, ८८०-९८८) ने इसका वर्णन किया है, गीत, संगीत का प्रयोग, वैदिक मन्त्रों का उच्च स्वर से पाठ; ब्रह्मा, अनन्त एवं दिक्पालों की पूजा की जाती है।
नागचतुर्थी : कार्तिक शुक्ल ४, पुरुषार्थचिन्तामणि (९५) । नागदष्टोद्धरणवत: यह 'दष्टोदरणवत' ही है। देखिए ऊपर। नागपञ्चमी : देखिए गत अध्याय ७। नागपूजा : मार्गशीर्ष शुक्ल ५, स्मृतिकौस्तुभ (४२९) के मत से यह दाक्षिणात्यों में अति प्रसिद्ध है।
नागमैत्रीपञ्चमी : कटु अर्थात् तीक्ष्ण एवं खट्टे पदार्थों के सेवन का वर्जन ; दूध से नागप्रतिमाओं को स्नान कराना; इस प्रकार नागों से मित्रता स्थापित होती है। पद्मपुराण (५।२६।५६ ५७); कृत्यकल्पतरु (व्रत० ९६); हेमाद्रि (व्रत० १, ५६६, भविष्यपुराण से उद्धरण)।
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