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धर्मशास्त्र का इतिहास कृत्यकल्पतरू (बत० १३६-१३७); हेमाद्रि (व्रत० १, ६६७-६७१, भविष्यपुराण के ब्राह्मपर्व, १००।१-१६ से उद्धरण)।
नन्दिनीनवमीव्रत : मार्गशीर्ष शुक्ल ९ पर; तिथि ; दुर्गा-पूजा; वर्ष को दो भागों में बाँटकर; तीन दिनों का उपवास; ६ मासों की अवधि में विभिन्न पुष्प एवं विभिन्न नाम ; कर्ता स्वर्ग जाता है और शक्तिशाली राजा के रूप में लौटता है ; कृत्यकल्पतरु (व्रत०, ३०२-३०३)।. देखिए ऊपर 'त्रितयप्रदानसप्तमी'।
नरकचतुर्दशी : देखिए गत अध्याय १०।
नरक-पूर्णिमा : प्रत्येक पूर्णिमा या मार्गशीर्ष की पूर्णिमा पर आरम्भ ; एक वर्ष ; उस दिन उपवास एवं विष्णु-पूजा तथा उनके नाम का जप या केशव से दामोदर तक १२ नामों का जप १२ मासों में (मार्गशीर्ष से प्रारम्भ कर); प्रत्येक मास में दक्षिणा के साथ एक जलपात्र एवं वस्त्रों का जोड़ा, यदि असमर्थ हो तो वर्ष के अन्त में होए सादान ; इस व्रत से सुख मिलता है ; यदि मृत्यु के समय हरि का नाम लिया जाता है तो स्वर्ग मिलता है ; हेमाद्रि (व्रत० २, १६६-१६७, विष्णुधर्मोत्तरपुराण से उद्धरण)।
नरसिंहचतुर्दशी : वैशाख शुक्ल १४; तिथि ; यदि स्वाति नक्षत्र हो, शनिवार हो, सिद्धि योग एवं वणिज-करण हो तो करोड़ गुना पुण्य होता है; नरसिंह (अवतार) देवता हैं ; हेमाद्रि (वत० २१४१-४९, नरसिंह-पुराण से उद्धरण); पुरुषार्थचिन्तामणि (२३७-२३८); समयमयूख (९८), पुरुषार्थचिन्तामणि आदि ने इसे नृसिंहजयन्ती कहा है ; स्मृतिकौस्तुभ (११४) । यदि यह १३ या १५वीं से युक्त हो तब वह दिन जब १४ वों तिथि सूर्यास्त के समय उपस्थित हो तो उसे स्वीकार कर लेना चाहिए। वर्षक्रियादीपक (पृ० १४५१५२) ने पूजा की एक लम्बी विधि दी है; यह तमिल पञ्चांगों में मी पायी जाती है। नृसिंह भगवान् वैशाख शुक्ल १४ को स्वाति नक्षत्र में प्रकट हुए थे।।
नरसिंहप्रयोदशी : फाल्गुन कृष्ण १२ पर; उस दिन उपवास एवं नरसिंह-प्रतिमा की पूजा; श्वेत वस्त्र से आच्छादित एक घट प्रतिष्ठापित किया जाता है और उस पर एक स्वणिम या काष्ठ की या बाँस की प्रतिमा रखी जाती है; उसी दिन किसी ब्राह्मण को वह प्रतिमा दे दी जाती है; हेमाद्रि (व्रत०१, १०२९. ३०, वराहपुराण ४२।१-७ एवं १३-१६ का उद्धरण)। प्रकाशित वराहपुराण में ऐसी व्यवस्था है कि व्रत को शुक्ल पक्ष में किया जाय, किन्तु हेमाद्रि (वत० १, १०२९) में कृष्ण पक्ष का उल्लेख है।
नरसिंहाष्टमी या नसिहवत : राजा या राजकुमार या कोई भी व्यक्ति शत्रु का नाश करने के लिए इसका सम्पादन करता है; अष्टमी पर उसे चावल या पुष्पों से आठ दलों का एक कमल खींचना चाहिए और उस पर नरसिंह की प्रतिमा रखनी चाहिए और उसकी तथा श्रीवृक्ष (बिल्व या अश्वत्थ ? ) की पूजा करनी चाहिए; हेमाद्रि (व्रत० १, ८७६-८८०, गरुडपुराण से उद्धरण)।
नवनक्षत्रशान्ति : एक शान्ति कृत्य एवं नौ नक्षत्रों की पूजा; मनुष्य के जन्म के नक्षत्र को जनन-नक्षत्र कहा जाता है, चौथे, दसवें, सोलहवें, बीसवें, तेईसवें को कम से मानस, कर्म, सांघातिक, समुदय एवं वैनाशिक कहा जाता है। साधारण जन छ: नक्षत्रों तक सीमित रहते हैं, किन्तु राजा तीन अन्य नक्षत्रों को सम्मिलित कर लेता है, यथा--राज्याभिषेक नक्षत्र, देश-नक्षत्र (वह नक्षत्र जो उसके देश पर स्वामित्व करता है) तथा उसके वर्ण का नक्षत्र। यदि इन नक्षत्रों पर ग्रहों के बुरे प्रभाव पड़ जाते हैं तो इनके (इन छः या नौ नक्षत्रों के ) द्वारा अभिव्यक्त विषयों में गड़बड़ी हो जाती है, यथा--यदि जनन-नक्षत्र प्रभावित हो तो वह जीवन एवं सम्पत्ति खो सकता है, यदि अभिषेक-नक्षत्र प्रभावित हो तो राज्य-हानि हो सकती है । उचित कृत्यों एवं पूजा से बुरे प्रभाव रोके जा सकते हैं, यथा--जनन-नक्षत्र के लिए ऐसे जल से स्नान करना चाहिए जिसमें कुश डुबाया गया हो, जिसमें श्वेत बैस
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