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________________ व्रत-सूची १४५ चाहिए, नदी एवं वरुण का नाम लेना चाहिए, अर्घ्य, फल, नैवेद्य आदि देना चाहिए, गोविन्द की प्रार्थना करनी चाहिए, यह व्रत तीन वर्षों तक चलेगा; अन्त में गोदान करना चाहिए। इससे सन्तान एवं सौभाग्य मिलता है; पद्मपुराण (६।७१) । नदी व्रत : (१) चैत्र शुक्ल से प्रारम्भ; सात दिनो तक नक्त-विधि; सात नदियों, यथा-- ह्रा दिनी ( या नलिनी), ह्लादिनी, पावनी, सीता, इक्षु, सिन्धु, भागीरथी की पूजा, यह वर्ष भर प्रति मास ७ दिनों तक चलता रहना चाहिए; जल में दूध चढ़ाया जाता है दूध से पूर्ण घटों का दान किया जाता है, वर्ष के अन्त में फाल्गुन में ब्राह्मणों को एक पल चाँदी का दान किया जाता है; हेमाद्रि (व्रत०, २, ४६२ ) ; मत्स्यपुराण ( १२१।४० - ४१ ) ; वायुपुराण (४७।३८-३९, यहाँ गंगा की सात धाराओं का उल्लेख है ) ; (२) हेमाद्रि ( व्रत० १, ७९२ ) ; सरस्वती की पूजा करने से सात प्रकार के ज्ञान की उपलब्धि होती है । नवी स्नान : देखिए ऊपर 'दशहरा', गत अध्याय ४; तिथितत्त्व (६२-६४ ) ; पुरुषार्थचिन्तामणि ( १४४-१४५ ) ; गदाधरपद्धति ( ६०९ ) । नन्दव्रत : विष्णुधर्मोत्तरपुराण (३।१८४११-३ ) ; हेमाद्रि ( व्रत०२, पृ० १८-१९ ) । देखिए ऊपर धनव्रत' । नन्दा : ( तिथियाँ ) प्रथमा, षष्ठी एवं एकादशी तिथियाँ इस उपनाम से पुकारी जाती हैं । नन्दादिविधि : रविवार के बारह नाम हैं, यथा--नन्द, भद्र आदि; माघ शुक्ल षष्ठी वाला रविवार नन्द कहलाता है; उस दिन नक्त होता है, घी से सूर्य प्रतिभा को स्नान कराया जाता तथा अगस्त्य के 'पुष्प चढ़ाये जाते हैं, गेहूँ के पूओं से ब्राह्मणों को तृप्त किया जाता है; कृत्यकल्पतरु ( व्रत, १० -१२), हेमाद्रि ( व्रत०२, ५२२-२३) । नन्दादितविधि : सदा रविवार को ही सूर्य-पूजा सूर्य ग्रहण के दिन उपवास करना चाहिए तथा महाश्वेता मन्त्र जपना चाहिए और ब्राह्मणों को भोजन देना चाहिए, उस दिन के स्नान, दान एवं जप से अनन्त फल मिलते हैं; हेमाद्रि ( व्रत०२, ५२७-२८ ) ; कृत्यकल्पतरु ( व्रत० २१ - २३ ) । नन्दानवमीव्रत : माद्र० कृष्ण ९ ( कृत्यकल्पतरु के मत से), शुक्ल ९ (हेमाद्रि के मत से ) को नन्दा कहा जाता है । वर्ष भर तीन अवधियों में दुर्गा पूजा की जाती है; सप्तमी को एक भक्त, अष्टमी को उपवास, जाती एवं कदम्ब के पुष्पों से शिव पूजा, दुर्गा प्रतिमा को दूर्वाओं पर रखा जाता है; जागरण, नाटकाभिनय तथा नन्दा मन्त्र (ओं नन्दाय नमः ) का जप ; नवमी के प्रातःकाल चण्डिका- पूजा, कुमारियों को भोजन; कृत्यकल्पतरु ( व्रत० ३०३३०५ ) ; हेमाद्रि ( व्रत० २ ९५२ - ९५४, भविष्यपुराण से उद्धरण) । नन्दापदद्वयव्रत : आम्रदलों, दूर्वा, अक्षतों, बिल्वदलों से दुर्गा की स्वर्ण पादुकाओं की पूजा एक मास तक ; दुर्गामत या कुमारियों को पादुकाओं का दान ; सभी पापों से मुक्ति ; कृत्यकल्पतरु ( व्रत०, ४२९ ) ; हेमाद्रि ( व्रत०२, ८८५-८८६. पद्मपुराण से उद्धरण) । नन्दाव्रत : श्रावण में ३, ४, ५, ६, ८, ९, ११ या पूर्णिमा की तिथियों में आरम्भ; एक वर्ष तक ; नक्त - विधि से भोजन; १२ मासों में १२ विभिन्न नामों से विभिन्न पुष्पों एवं नैवेद्य से देवी पूजा ; १०० या १००० बार 'ओं नन्दे नन्दिनि सर्वार्थ साधिनि नमः' नामक मन्त्र का जप कर्ता पापमुक्त हो जाता है और राजा हो जाता है; कृत्यकल्पतरु ( ४२४-४२९ ) ; हेमाद्रि (व्रत० २,८३२८३६, देवीपुराण से उद्धरण) ; कृत्यरत्नाकर (२८८-२९३) । नन्दा सप्तमी मार्गशीर्ष शुक्ल ७ पर आरम्भ ; तिथिव्रत; एक वर्ष तक; विभिन्न पुष्पों, नैवेद्य, धूप एवं नामों से ४-४ मासों की तीन अवधियों में सूर्य-पूजा ; पंचमी पर एकभक्त, षष्ठी पर नक्त तथा सप्तमी पर उपवास; १९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002792
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1971
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size18 MB
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