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व्रत-सूची
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धन्यव्रत या धन्यप्रतिपदा व्रत : मार्गशीर्ष शुक्ल १; उस दिन नक्त (केवल एक बार रात्रि में भोजन ) और रात्रि में विष्णुमूर्ति (अग्नि के अनुरूप ) की पूजा; इसके सामने बने कुण्ड में होम ; घृत के साथ यावक एवं भोजन का ग्रहण; यही कृत्य कृष्ण पक्ष में भी किया जाता है; चैत्र से लेकर आठ मासों तक; व्रत के अन्त में अग्नि की स्वर्णिम प्रतिमा का दान ; यहाँ तक कि अभागा व्यक्ति मी सुख, सम्पत्ति एवं भोजन से युक्त एवं पापमुक्त हो जाता है; कृत्यकल्पतरु (व्रत० ३८-४० ) ने इसे धन्यप्रतिपदा कहा है; हेमाद्रि ( व्रत० १, ३५५-३५६ ) ; दोनों ने वराहपुराण (५६।१-१६) को उद्धृत किया है।
धरणीव्रत : कार्तिक शुक्ल ११ पर आरम्भ; नारायण की मूर्ति की पूजा; मूर्ति के समक्ष चार घड़े रखे जाते हैं, जिनमें रत्न रखे जाते हैं, जिनके ताम्र ढक्कनों पर स्वर्ण एवं तिल रख दिये जाते हैं; ये चारों घड़े समुद्र समझे जाते हैं; स्वर्ण प्रतिमा इनके बीच में प्रतिष्ठापित की जाती है; उस रात्रि जागर (जागरण), दूसरे दिन प्रातः पाँच ब्राह्मण बुलाये जाते हैं, उन्हें भोजन एवं दक्षिणा से सम्मानित किया जाता है; इस व्रत को प्रजापति, बहुत-से प्रसिद्ध राजाओं तथा स्वयं धरती ( पृथिवी ) ने किया था इससे इसका ऐसा नाम पड़ा हेमाद्रि ( व्रत० १, १०४१-४४ वराहपुराण ५०।१-२९ से उद्धरण ) ; कृत्य रत्नाकर (४२६-४३०) ने इसे योगीश्वरद्वादशी कहा है ।
धराव्रत : उत्तरायण भर; केवल दूध का सेवन ; पृथिवी ( धरा) की एक स्वर्णिम प्रतिमा; जिसकी तोल २२ पल होती है; रुद्र देवता; कर्ता रुद्रलोक को जाता है; मत्स्यपुराण ( १०१।५२ ) ; कृत्यकल्पतरु ( व्रत० ४४६ ) ; हेमाद्रि ( व्रत० २,९०६ ) ; कृत्यकल्पतरु के मत से यह संवत्सरव्रत है और हेमाद्रि ने इसे प्रकीर्णक माना है ।
धर्मघट - दान : चैत्र शुक्ल १ से प्रारम्भ; ४ मासों तक ; पुण्य एकत्र करने वाले व्यक्ति को प्रतिदिन वस्त्र से ढँककर एक ऐसे घड़े का दान करना चाहिए जिसमें शुद्ध शीतल जल रखा गया हो; पुरुषार्थचिन्तामणि (५७ - ५८ ) : स्मृति कौस्तुभ ( ८९-९० ) ।
धर्मप्राप्तिव्रत : आषाढ़ पूर्णिमा के उपरान्त प्रथम तिथि से आरम्भ; धर्म के रूप में विष्णु की पूजा; एक मास तक तीन दिनों तक उपवास, जिनमें पूर्णिमा भी सम्मिलित है; मास के अन्त में स्वर्णदान; विष्णुधर्मोत्तरपुराण ( ३।२०९।१-३) ।
धर्मराजपूजा : दमनक के साथ धर्म की पूजा । देखिए दमनकपूजाविधि; स्मृतिकौस्तुभ ( १०१ ) ।
धर्मव्रत : मार्गशीर्ष शुक्ल १० पर आरम्भ; उस दिन उपवास एवं धर्म-पूजा; घृत से होम; कृष्ण पक्ष में भी ; एक वर्ष तक; अन्त में एक दुधारू गाय का दान ; व्रत से स्वास्थ्य, लम्बी आयु, यश की प्राप्ति होती है और पाप कट जाते हैं; हेमाद्रि ( व्रत० १,९६७-६८, विष्णुधर्मोत्तरपुराण ३।१७८।१-८ का उद्धरण है ) । धर्मषष्ठी : आश्विन कृष्ण षष्ठी पर धर्मराज की पूजा; अहल्याकामधेनु ( ४१९ ए ) । धर्मावाप्तिव्रत: आषाढ़ पूर्णिमा के उपरान्त प्रथम तिथि से प्रारम्भ; एक मास तक ; धर्म के रूप में विष्णु की पूजा; इससे सभी उद्देश्यों की पूर्ति होती है; हेमाद्रि (व्रत०२, ७५८, विष्णुधर्मोत्तरपुराण से उद्धरण) ।
धात्रीव्रत : धात्री (आमलक ) के फल के साथ दोनों पक्षों की एकादशी को स्नान; पद्मपुराण (५/५टा १-११) । धात्री फल वासुदेव को प्यारा लगता है । इसे खाने से व्यक्ति सभी पापों से मुक्त हो जाता है ।
धान्य : ( ग्राम्य अर्थात् किसी ग्राम में उत्पन्न किया हुआ) । बृहदारण्यकोपनिषद् ( ६।३।१३ ) में धान्य के दस प्रकार तथा अन्य पश्चात्कालीन ग्रन्थों में १७ या १८ प्रकार कहे गये हैं ।
धान्यसंक्रान्तिव्रत : इसका आरम्भ अयन या विषुव दिन पर होता है; एक वर्ष तक; कुंकुम से आठ दलों वाला कमल खींचा जाता है; प्रत्येक दल पर पूर्व से आरम्भ कर आठ विभिन्न नामों से सूर्य की पूजा की जाती
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