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________________ व्रत-सूची दशाफलव्रत : श्रावण कृष्ण अष्टमी पर ( अमान्त गणना के अनुसार ) ; दस वर्षो के लिए; गोपालकृष्ण देवता; कृष्ण की मूर्ति के समक्ष दस सूत्रों के डोरे को रखा जाता है और उसे हाथ में बाँधा जाता है; तुलसी की दस पत्तियों (दलों ) के साथ हरि के नामों की पूजा; दस ब्राह्मणों में प्रत्येक को दस-दस पूरियाँ दी जाती हैं; व्रतार्क; व्रतराज ( २६५-२६९) । दशावतारदिन : (१) मार्गशीर्ष शुक्ल १२ पर आरम्भ ; उस दिन विष्णु मत्स्य के रूप में प्रकट हुए; प्रत्येक शुक्ल द्वादशी से भाद्रपद तक प्रत्येक मास में क्रम से दशावतारों के रूप में विष्णु की पूजा हेमाद्रि ( व्रत १ ११५८११६१, विष्णुपुराण से उद्धरण); (२) भाद्रपद शुक्ल १० से आरम्भ; वर्ष के उसी मास एवं तिथि पर दस वर्षो तक; प्रति वर्ष विभिन्न भोजन का अर्पण ( यथा -- प्रथम वर्ष में पूप अर्थात् पूआ, दूसरे में घृतपूरक... आदि ) ; भोजन के दस भाग देवों के लिए, दस भाग ब्राह्मणों तथा दस भाग अपने लिए; भार्गव, राम, कृष्ण, बौद्ध एवं कल्कि सहित अवतारों की बहुमूल्य दस मूर्तियाँ; व्रतराज ( ३५८- ३५९, मविष्यपुराण से उद्धरण ) ; स्मृतिकौस्तुभ ( २३९) । १३५ दष्टोद्धरण- पञ्चमी या नागदष्ट : माद्र शुक्ल ५ पर; सर्प दंश से मृत किसी सम्बन्धी ( यथा -- पुत्र, भाई, पुत्री ) के लिए सम्पादित; स्वर्ण, रजत, काष्ठ या मिट्टी से निर्मित पाँच फणों वाले सर्प की मूर्ति की धूप, पुष्प, गंध आदि से पूजा ; प्रत्येक मास में १२ में से एक का नाम लिया जाता है; सर्प दंश से मृत व्यक्ति पाताल लोकों से मुक्त होता है और स्वर्गारोहण करता है; कृत्यकल्पतरु ( व्रत० ९०-९३ ) ; हेमाद्रि ( व्रत० १, ५६०-५६२ ) ; कृत्यरत्नाकर ( २७३ - २७५ ) । १२ सर्पों के नाम के लिए देखिए इस खण्ड का अध्याय - ७, । गरुड़पुराण (१।१२९) । दान : देखिए इस महाग्रन्थ का खण्ड २ । कृत्तिका से भरणी तक के कतिपय नक्षत्रों में दिये जाने वाले दानों का उल्लेख अनुशासनपर्व ( ६४ ) में हुआ है; दानसागर ( ६२८- ६३८ ) ; कृत्यरत्नाकर (५४९-५५५) । कृत्यरत्नाकर (९५-१०२ ) ने विभिन्न तिथियों में दिये जाने वाले दानों का उल्लेख किया है। विष्णुधर्मोत्तरपुराण ( ३।३१७) ने विभिन्न ऋतुओं, मासों, सप्ताहों एवं नक्षत्रों में दिये जाने वाले पुरस्कारों (फलो या पुण्यों ) का वर्णन किया है। दाना फलव्रत : आश्विन शुक्ल के अन्तिम दिन से माघ शुक्ल सप्तमी तक; नारायण-पूजा; ५ वर्षों त; प्रत्येक वर्ष में निर्धारित ढंग से पाँच प्रस्थ चावल, गेहूँ, नमक, तिल, माष का दान किया जाता है। व्रतार्क ( पाण्डुलिपि ३६२ बी - ३६५९ ) । दाम्पत्याष्टमी : कार्तिक कृष्ण ८ पर; तिथि ; चार अवधियों में विभाजित एक वर्ष भर; दर्भों से निर्मित उमा एवं महादेव की पूजा; प्रत्येक मास में पुष्पों, नैवेद्य, धूप एवं देव - नामों में अन्तर रखा जाता है; वर्ष के अन्त एक ब्राह्मण एवं उसकी ब्राह्मणी को भोजन दिया जाता है, दो सोने की गायें दो जाती हैं; पुत्र की प्राप्ति होती है; शिवलोक अथवा मोक्ष की उपलब्धि होती है । कृत्यकल्पतरु ( व्रत० २४५ - २५८ ) ; हेमाद्रि ( व्रत० ११८४१ -८४४, भविष्यपुराण से उद्धरण ) । दारिद्रयहरणषष्ठी : एक वर्ष तक सभी मासों की षष्ठी पर ; गुह ( स्कन्द ) की पूजा; स्कन्दपुराण; अहल्याकामधेनु (४२९-४३०) । दिनक्षय : जब एक ही बार में दो तिथियाँ पड़ जाती हैं तो दिनक्षय होता है; हेमाद्रि ( काल, ६७६, पद्मपुराण से उद्धरण) । माधव के कालनिर्णय ( २६०, वसिष्ठ से उद्धरण) के अनुसार जब एक ही दिन में तीन तिथियों का स्पर्श हो जाता है तो दिनक्षय होता है, उस दिन उपवास वर्जित होता है, किन्तु दानों से सहस्र गुना पुण्य मिलता है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002792
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1971
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size18 MB
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