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________________ व्रत-सूची १३१ तिलद्वादशी : (१) श्रवण नक्षत्र से युक्त माघपूर्णिमा के उपरान्त कृष्णद्वादशी को तिल से स्नान, होम, मिठाइयों के साथ तिल का नैवेद्य, तिल के तेल का दीपक, ब्राह्मणों को तिलयुक्त जल एवं दान देना; ऋ० १।२२।२० एवं पुरुषसूक्त (१०।९०) या १२ अक्षरों के दो मन्त्रों से वासुदेव की पूजा हेमाद्रि ( व्रत० १, ११४९-५०, विष्णुधर्मोनर० १।१६३।१-१३ के उद्धरण); कालविवेक ( ४६६ - ४६७ ) ; ( २ ) माघ कृष्ण १२ पर, जब कि आश्लेषा या मूल नक्षत्र का योग हो ; तिथि; कृष्ण देवता; नयतकालिक (४३६ ) ; हेमाद्रि ( काल, ६३५-३६ ) ; हेमाद्रि ( व्रत० १, ११०८-१० ) ; कृ० र० (४९६ ) । तिष्यव्रत : शुक्ल पक्ष एवं उदगयन में तिष्य ( पुष्य) नक्षत्र पर आरम्भ; एक वर्ष तक प्रतिमास प्रति तिष्य पर; उपवास केवल प्रथम तिष्य पर ही ; वैश्रवण ( कुबेर) की पूजा; पुष्टि ( समृद्धि ) के लिए; आपस्तम्बधर्मसूत्र ( २८|२०१३ - ९ ) । तीव्रव्रत: अपने पाँवों को चूर करके ( पाँव तोड़कर) काशी में निवास करना, जिससे कि अन्यत्र जाना न हो सके । हेमाद्रि ( व्रत० २,९१७ ) 1 , तुरग सप्तमी : चैत्र शु० सप्तमी पर; तिथि उपवास, सूर्य, अरुण, निकुम्भ, यम, यमुना, शनि, सूर्य की पत्नी छाया, सातों छन्दों, धाता, अर्यमा एवं अन्य देवताओं की पूजा; व्रत के अन्त में एक अश्व ( तुरंग या घोड़ा) का दान ; हेमाद्रि ( व्रतखण्ड १, ७७७ ७७८, विष्णुधर्मोत्तर से । तुरायण : अनुशासन ० ( १०३ ३४ ) से ऐसा प्रकट होता है कि भगीरथ ने इसे ३० वर्षों तक किया था। पाणिनि (५/१/७२ ) में आया है--' पारायण तुरायण चान्द्रायणम् ' ; स्कन्द० ने तुरायण को कोई यज्ञ माना है । आपस्तम्ब श्रौतसूत्र (२।१४ ) ने तुरायणेष्टि की व्याख्या की है और मनु ( ६ । १० ) ने इसे चातुर्मास्य एवं आग्रयण के साथ वैदिक इष्टि ठहराया है। तुलसोत्रिरात्र : कार्तिक शु० ९ को प्रारम्भ; तीन दिनों तक व्रत; इसके उपरान्त तुलसी के पौधों की वाटिका में विष्णु एवं लक्ष्मी की पूजा; पद्म० (६।२६) । तुलसीमाहात्म्य, देखिए पद्म० ( पाताल० ९४।४-११ ) । तुलसी-लक्ष-पूजा : किसी एक पूजा में १,००,००० तुलसी दल का अर्पण; कार्तिक या माघ में प्रतिदिन १००० तुलसी दल अर्पित होते हैं; वैशाख या माघ या कार्तिक में उद्यापन; स्मृतिकौस्तुभ (४०८), वर्षक्रियादीपक (४०४-४०८ ); बिल्व- दल, दूर्वा, चम्पक फूल भी अर्पित किये जाते हैं । तुलसी विवाह : कार्तिक शु० १२ पर; कर्ता नवमी को हरि एवं तुलसी की स्वर्ण- प्रतिमा बनाता है, उसे तक पूजित करके उनका विवाह रचाता है; इससे कन्यादान का पुण्य प्राप्त होता है; नि० सि० (२०४ ) ; व्रतराज (३४७ ३५२) ; स्मृतिकौ ० ( ३६६ ) । प्रत्येक हिन्दू के घर के प्रांगण में एक वृन्दावन ( ईंटों या पत्थर का बना थांवला) होता है जिसमें तुलसी का पौधा लगा रहता है, स्त्रियाँ प्रतिदिन उसे जल, दीप आदि से पूजती हैं । जालन्धर की पत्नी वृन्दा तुलसी बन गयी थी । पद्मपुराण में (लगभग १०५० श्लोकों में) जालन्धर एवं वृन्दा की कथा है। तुष्टिप्राप्तिव्रत: श्रवण नक्षत्र के योग में श्रावण कृष्ण (पूर्णिमान्त गणना) की तृतीया पर; 'ओम्' से प्रारम्भ किये हुए तथा 'नमः' से अन्त होते हुए मन्त्रों से गोविन्द-पूजा; फल - सर्वोत्तम सन्तोष; हेमाद्रि ( व्रत० १, ४९९, विष्णुधर्मोत्तर ० से उद्धरण) । तृतीयाव्रत : अग्नि० ( १७८ ) ; हे० ( व्रत० १, ३९४.५००, लगभग ३० के नाम दिये गये हैं ) ; कृ० क०, व्र० (४८-७७, केवल ८ के नाम ) ; कृ० २० ( १५३-१५७); वर्षक्रियाको ० ( २-३० ) ; तिथितत्त्व (३०-३१) ; व्रतराज ( ८२-१२० ); पु० चि० (८५) ; यदि तृतीया का द्वितीया एवं चतुर्थी से योग हो जाय तो नियम यह है कि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002792
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1971
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size18 MB
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