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________________ १२४ धर्मशास्त्र का इतिहास (व्रत १,४५०-४५२); मत्स्य० (१०१-१०८); व्रतप्रकाश (५६); (४) नारियों के लिए तृतीया पर; भविष्यपुराण (१।२१।१); उस दिन उपवास किया जाता है और नमक का परित्याग किया जाता है; वैशाख, भाद्र०, माघ में विशेषतः पवित्र ; जीवन भर के लिए; धर्मसिन्धु (१३); (५) ज्येष्ठ की चतुर्थी पर; उमा की पूजा, क्योंकि वे उसी दिन उत्पन्न हुई थीं, पुरुषार्थचिन्तामणि (९१)। ग्रहयाग : शान्ति के प्रकरण में देखिए नवग्रहयोग, अध्याय २१; हेमाद्रि (बत० २, ५९०-५९२) ने तिथियों एवं नक्षत्रों के साथ ग्रहों के विभिन्न योगों का संग्रह किया है और विभिन्न ग्रहों एवं देवों के सम्मान में यागों की व्यवस्था दी है, जिनके द्वारा थोड़ा व्यय करके अधिक पुण्य लूटा जाता है। उदाहरणार्थ ; जब किसी रविवार को पुष्य नक्षत्र के योग में षष्ठी पड़ती है, तब स्कन्दयोग किया जाता है, जिससे समी आकांक्षाओं की पूर्ति होती है। हेमाद्रि (वत०) ने लगभग १२ यागों का उल्लेख किया है। देखिए स्मृतिकौस्तुभ (४५५-४७९) । घटस्थापनविधि : देखिए गत अध्याय ९, दुर्गापूजा ; व्रतरत्नाकर (६२-६७)। घृतकम्बल : माघ शु० १४ को उपवास तथा १५ को शिवलिंग पर वेदिका तक कम्बल के समान घृत का लेप तथा काले बैलों के एक जोड़े का दान । कर्ता अनन्त काल तक शिवलोक में निवास करता है। हेमाद्रि (व्रत० २, २३९-२४०), व्रतार्क (३९०)। यह भी एक शान्ति है, जहाँ कर्ता को कम्बल से ढंका जाता है और उस पर घृत छिड़का जाता है। देखिए आथर्वण-परिशिष्ट ३३ (पृ० २०४-२१२) एवं राजनीतिप्रकाश (४५९-४६४)। घृतभाजनव्रत : पूर्णिमा के दिन ; शिवलिंगपूजा ; घृत एवं मधु के साथ ब्राह्मणों को रात्रि में भोजन; एक प्रस्थ ( आढक) तिल या दो प्रस्थ कुटा चावल ; हेमाद्रि (व्रत० २, २४०-२४१)। धृतस्नापनविधि : विषुव पर, ग्रहण या किन्हीं पवित्र दिनों में या पौष में; शिव-पूजा; रात दिन शिवलिंग पर घृत की धारा ; संगीत एवं नृत्य के साथ जागरण; हेमाद्रि (वत० १, ९११-९१२) । घृतावेक्षणविधि : प्रकीर्णक । हेमाद्रि (व्रत० २, १९२-१९३, गोपथब्राह्मण से उद्धरण)। यह राजा की विजय के लिए एक शान्ति कर्म है। देखिए आथर्वण-परिशिष्ट संख्या ८ घोटकपञ्चमी : आश्विन कृ० ५ पर; तिथि; यह राजाओं के लिए व्यवस्थित है। यह अश्वों के सुन्दर स्वास्थ्य की वृद्धि के लिए है ; गदाधरपद्धति (कालसार, ५०, देवीपुराण से उद्धग्ण)। चक्षुर्वत : यह 'नेत्रव्रत' ही है ; चैत्र शु० २ पर; अश्विनीकुमारों (दिव्य चिकित्सक जो सूर्य एवं चन्द्र के अनुरूप कहे गये हैं) की पूजा; एक या बारह वर्षों के लिए ; उस दिन कर्ता केवल दही या घी खाता है; ऐसा करने से कर्ता को अच्छी आँखें प्राप्त होती हैं और यदि वह १२ वर्षों तक इसे करे तो राजा हो जाता है। विष्णुधर्मोत्तरपुराण (३।१३०।१-७); हेमाद्रि (व्रत० १, ३९२-३९३, भविष्योत्तर० से उद्धरण)। चण्डिकाव्रत : दोनों पक्षों की अष्टमी एवं नवमी तिथियों पर; तिथि; एक वर्ष; चण्डिका-पूजा; उपवास; कृत्यकल्पतरु (व्रत० ३९८); हेमाद्रि (व्रत० २, ५१०, भविष्योत्तरपुराण से उद्धरण)। चण्डीपाठ : देखिए दुर्गोत्सव, गत अध्याय ९। चतुर्थीव्रत : देखिए कृत्यकल्पतरु (व्रत० ७७-८७); हे० (व्रत० १, ५०१-५३६); कालनिर्णय (१७७१८६); वर्षक्रियाकौमुदी (३०-३४); पु० चि० (९१-९५); वृत्तरत्नाकर (१२०-१९१)। गणेशचौथ, गौरीचौथ, नागचौथ, कुन्दचौथ एवं बहुलाचौथ को छोड़कर पंचमी से युक्त तिथि को स्वीकार किया जाता है; चतुर्थी (चौथ) के लगभग २५ व्रत होते हैं; यम का कथन है कि यदि शनिवार को भरणी-नक्षत्र में चौथ पड़े तो स्नान एवं दोनों से अक्षय फल प्राप्त होते हैं (हेमाद्रि, चतुर्वर्गचिन्तामणि, काल, ६२०); अग्नि० (१७९) ने भी कुछ का Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002792
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1971
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size18 MB
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