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________________ व्रत-सूची १२३ हे० (व्रत० १, १०८३-१०८४); वर्षक्रियादीपक (२७८-२७९); (२) दूसरा प्रकार, हे• (व्रत० १, १०८० -१०९०)। गोवर्धनपूजा : देखिए गत अध्याय १० एवं हरिवंश (२।१७) । गोविन्दद्वादशी : फाल्गुन शु० १२ पर; एक वर्ष ; प्रत्येक मास की द्वादशी पर गायों को खिलाया जाता है और दूध, दही या घी से मिश्रित भोजन मिट्टी के पात्र में किया जाता है, क्षार एवं लवण का प्रयोग नहीं किया जाता ; हे ० (व्रत० १, १०९६-९७); कालविवेक (४६८, इसके अनुसार द्वादशी को पुष्य नक्षत्र होना चाहिए); गदाधरपद्धति (कालसार, ६०७); वर्षक्रियाकौमुदी (५१४); तिथितत्त्व (११७)। गोविन्दप्रबोध : कार्तिक शु० एकादशी; कहीं-कहीं तिथि द्वादशी कही गयी है; हे० (व्रत० २, ८१४८१७) ने पौराणिक मन्त्रों एवं ऋ० ११२२।१७ के मन्त्र का उल्लेख किया है। गोविन्दशयनवत : आषाढ़ शु० ११ पर; एक शय्या पर विष्णुप्रतिमा रखी जाती है; चार मासों तक कुछ नियमों का पालन किया जाता है ; इस दिन चातुर्मास्य व्रत किये जाते हैं ; इसके उपरान्त चार मासों तक सभी शुभ कृत्य, यथा-उपनयन, विवाह, चूड़ा, गृह-प्रवेश आदि बन्द कर दिये जाते हैं। देखिए अध्याय ५ एवं हेमाद्रि (व्रत० २, ८०१-८१३)। गोष्पदत्रिरात्र : देखिए ऊपर 'गोपदत्रिरात्र'। गोष्ठाष्टमी : का० शुक्ल ८; गायों की पूजा; उन्हें घास देना, उनकी प्रदक्षिणा करना तथा उनका अनुगमन करना ; तिथितत्त्व (५५); वर्षक्रियाकौमुदी (४७८-४७९); ग०.५० (११५)। गौरीगणेशचतुर्थी : किसी चतुर्थी पर; गौरी एवं गणेश की पूजा; सौभाग्य एवं सफलता की प्राप्ति गदाधरपद्धति (कालसार ७३)। . गौरीचतुर्थी : माघ शु० चतुर्थी पर; सभी द्वारा, विशेषतः नारियों द्वारा कुन्द पुष्पों से गौरी की पूजा की जाती है। उस दिन विद्वान् ब्राह्मणों, नारियों एवं विधवाओं का सम्मान किया जाता है । हेमाद्रि (व्रत० १,५३१); कालनिर्णय (१८४); व्रतरत्नाकर (१७५)। ___गौरीतपोवत : केवल नारियों के लिए; मार्गशीर्ष अमावास्या पर; किसी शिवालय में शिव एवं पार्वती की पूजा मध्याह्न में की जाती है ; १६ वर्षों के लिए; मार्ग० पूर्णिमा पर उद्यापन ; व्रतार्क (३४४-३४६)। इसे महाव्रत भी कहा जाता है। गौरी-तृतीयावत : चैत्र शु०, भाद्र शु० या माघ शु० तृतीया पर; गौरी एवं शिव की पूजा; गौरी के आठ नाम ये हैं--पार्वती, ललिता, गौरी, गायत्री, शंकरी, शिवा, उमा, सती। समयमयूख (३६), पुरुषार्थचिन्तामणि (८५); इसे केवल दक्षिण में किया जाता है। गौरीविवाह : चैत्र की तृतीया, चतुर्थी या पञ्चमी को; गौरी एवं शिव की प्रतिमाएँ सोने, चांदी या महानील की बनायी जाती हैं। ऐसा केवल धनिक लोग ही कर सकते हैं, किन्तु मध्यम वर्ग या धनहीन लोग चन्दन, अर्क पौधे या अशोक या मधूक की प्रतिमाएँ बना सकते हैं। दोनों का विवाह कराया जाता है। कृत्यर नाकर (१०८-११०)। गौरीवत : (१) आषाढ़ से चार मास; दूध, घी एवं गन्ना का सेवन वजित है, इन वस्तुओं से पूर्ण पात्रों का दान 'गौरी मुझसे प्रसन्न रहें' के साथ किया जाता है; कृत्यरत्नाकर (२१९); (२) दूसरा प्रकार देखिए कृत्यरत्नाकर (८५); कृत्यकल्पतरु (व्रत० ४४०); (३) नारियों के लिए; चैत्र शुक्ल या कृष्ण ३ से, एक वर्ष तक; गौरी के विभिन्न नाम (कुल २४) प्रत्येक तृतीया पर; भोजन भी विविध प्रकार के; हेमाद्रि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002792
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1971
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size18 MB
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