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धर्मशास्त्र का इतिहास गो-उपचार : युगादि एवं युगान्त्य, षडशीति-मुख, उत्तरायण, दक्षिणायन (विषुव के प्रथम दिन, जब कि रात एवं दिन बराबर होते हैं), सभी संक्रान्तियों, पूर्णिमा, मास की १४, ५ एवं ९ तिथियों पर, सूर्य एवं चन्द्र-ग्रहणों पर एक गाय की पूजा की जाती है; कृत्यरत्नाकर (४३३३-४३४); स्मृतिकौ० (२७५-२७६) ।
गोत्रिरात्रवत : (१) कार्तिक कृ०१३ पर; तीन दिनों के लिए ; गोविन्द देवता; गोशाला या घर में वेदी पर एक मण्डल में कृष्ण-प्रतिमा रखी जाती है जिसके दोनों ओर चार-चार रानियाँ रहती हैं; चौथे दिन होम ; गायों को अर्घ्य एवं पूजा; हे. (व्रत० २, २८८-२९३)। इससे सन्तान-वृद्धि होती है। (२) भाद्र शु० १२ या का० शु०१३; तीन दिनों तक उपवास; लक्ष्मी, नारायण एवं कामधेनु की पूजा; सौभाग्य एवं धन के लिए; हे. (व्रत०२,२९३-३०३); व्रतप्रकाश (१५८-१६०); (३) भाद्र २०१३; तीन दिन; कामधन एवं लक्ष्मीनारायण की पूजा; हे० (व्रत० २, ३०३-३०८), व्रतप्रकाश (१६१)।
गोधूम : इसकी उत्पत्ति--कृतयुग में नवमी को जनार्दन (विष्ण), दुर्गा, कुबेर, वरुण एवं वनस्पति द्वारा; गेहूँ से बने भोजन से इन पाँचों की पूजा; कृत्यरत्नाकर (२८५-२८६)। . गोपद-त्रिरात्र या गोष्पद-त्रिरात्र : भाद्र० शु० ३ या ४ या कार्तिक में प्रारम्भ, तीन दिनों तक गाय एवं लक्ष्मीनारायण की पूजा; सूर्योदय से व्रत, दिन भर उपवास ; दही एवं घी से गायो के सींग एवं पूंछ का लेप ; बिना पकाया अन्न खाना, तैल एवं नमक का त्याग; हे० (व्रत० २, ३२३-३२६) ।
गोपद्मवत : आषाढ़ की पूर्णिमा या ८, ११ या १२ पर प्रारम्भ ; चार मासों तक, कार्तिक की उस तिथि को अन्त जिस तिथि को आषाढ़ में प्रारम्भ किया गया था; सब के लिए, किन्तु विशेषतः नवविवाहित युवतियों के लिए; घर के सामने या गोशाला में या विष्णु या शिव के मन्दिर में या तुलसी के पौधे के पास ; प्रति दिन ३३ आकृतियाँ खींची जाती हैं; ५ वर्षों तक; विष्णु देवता ; इसके उपरान्त उद्यापन; अन्त में गोदान'; स्मृतिको० (४१८-४२४); ७० र० (६०४-६०८)।
गोप-पूजा : स्मृतिकौस्तुम (३८६)।
गोपालनवमी : नवमी पर; समुद्र में गिरने वाली नदी में स्नान ; कृष्ण-पूजा; हे० (व्रत० १, ९३९-९४१); स्मृतिकौस्तुम (४१८-४२३)।
गोपाष्टमी : कार्तिक शुक्ल ८ पर; गायों की पूजा; निर्णयामृत' (७७, कूर्मपुराण से उद्धरण)।
गो-पूजा : इसके मन्त्र हेमाद्रि (व्रत० १, ५९३-५९४ एवं २, ३२४) में पाये जाते हैं।
गोमयादिसप्तमी : चै० शु० सप्तमी पर; तिथि ; एक वर्ष ; सूर्य ; प्रत्येक मास में सूर्य के विभिन्न नामों से पूजा ; कर्ता केवल गोमय, यावक या गिरी पत्तियों या दूध आदि को खाता है ; कृत्यकल्पतरु (व्रत० १३५१३६); हे० (व्रत० १, ७२४-७२५) एव भविष्यपुराण (ब्राह्मपर्व २०९।१-१४) ।
गोयुग्मव्रत : रोहिणी या मृगशीर्ष नक्षत्र पर; एक बैल या गाय' सजायी जाती है और शिव एवं उमा की पूजा के उपरान्त दान की जाती है; कृत्य'० (व्रत० ४१०); हे० (व्रत० २, ६९४-६९५) । कर्ता को पत्नी एवं पुत्र का वियोग नहीं होता है।
गोरत्नवत : कृत्य० (४१०-४११); हे. (व्रत० २।६९४-९५)। हेमाद्रि एवं कृत्यकल्पतरु दोनों ने एक ही प्रकार के दो श्लोक उद्धृत किये हैं; किन्तु हेमाद्रि ने उन्हें दो व्रतों, यथा--गोयुग्म एवं गोरत्न के लिए प्रयुक्त किया है किन्तु यह भी कहा है कि यह श्लोक गोयुग्म व्रत के लिए भी प्रयुक्त हो सकता है।
गोवत्सद्वादशी : (१) कार्तिक कृ० की द्वादशी पर; एक वर्ष ; हरि; प्रत्येक मास में हरि के विभिन्न नाम; पुत्र के लिए सम्पादित होता है; का० कृ० १२ को गोवत्स कहा जाता है (वर्षकृत्यदीपक द्वारा);
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