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व्रत-सूची
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गणपतिचतुर्यो : चतुर्थी पर; दो मासों के लिए; दिन में उपवास, ब्राह्मणों को तिल से बना भोजन देना और स्वयं वही रात्रि में खाना; हे० (व्रत० १, ५१९-५२०)।
गगेशचतुर्थी : देखिए गत अध्याय ८।
गणेशचतुर्थीवत : भाद्र० शु० ४ से प्रारम्भ ; तिथि ; एक वर्ष तक; गणेश-पूजा ; कृत्यकल्पतरु (व्रत० ८८४-८७); हे व्रत (१, ५१०-५१२); (२) हे० (व्रत १, ५१०), चतुर्थी पर; गणेश-पूजा; विधि--वैश्वानरप्रतिपदाव्रत की भाँति।
गन्धवत : पूर्णिमा के दिन आरम्म; एक वर्ष के लिए; पूर्णिमा को उपवास; वर्ष के अन्त में सुगंधित पदार्थों के साथ एक प्रतिमा किसी ब्राह्मण को देना। हेमाद्रि (व्रत २, २४१)।
गन्धाष्टक : आठ प्रकार की गन्धों का मिश्रण, जो शक्ति, विष्णु, शिव एवं गणेश को अर्पित किया जाता है। शक्ति के लिए ये हैं---चन्दन, कपूर, कुंकुम, रोचना, जटामांसी, चोर, कपि (ये दोनों घास के कोई प्रकार हैं) एवं अगल्लोचम। अहल्याकामधेनु (९८)।
___ गलतिकाव्रत : गर्मी की ऋतु में पवित्र जल से पूर्ण घड़े से शिव-प्रतिमा पर जलधारा गिराना; ब्रह्मपद की प्राप्ति होती है; हेमाद्रि (व्रत० २, ८६१)।
गायत्रीवत : शु० चतुर्दशी पर; सूर्य-पूजा; गायत्री मन्त्र (ऋ० ३।६२।१०) का १००, १००० या १०,००० बार जप; भाँति-भाँति के रोग दूर होते हैं; हे० (व्रत २, ६२-६३)।
गिरितनयावत : भाद्र० या वै० या मार्ग० शु० ३ को प्रारम्म ; एक वर्ष; गौरी या ललिता की पूजा; बारह मासों में विभिन्न पुष्प एवं गौरी के विभिन्न नाम; मत्स्य० (६२); पद्म० (५।२२।६१-१०४); हे० (व्रत० १, ४२२-४२६)।
गुडतृतीया : भाद्र शु० ३; तिथि; पार्वती; गुड़ के साथ पूप या पायस का अर्पण; हे० (व्रत० १, ४९७-९८); व्रतप्रकाश (१२५)।
गुण्डिचायात्रा : आषाढ़ शु० २, पुष्य नक्षत्र या उसके बिना भी; ग० प० (१८६) । (जगन्नाथपुरी में प्रचलित है।)
___ गुणावाप्तिवत : फाल्गुन शु०१पर प्रारम्भ ; एक वर्ष ; शिव, आदित्य, अग्नि, वरुण एवं चन्द्र (शिव के स्वरूपों में) की प्रतिमाओं की पूजा; चार दिनों तक; प्रथम दो भयानक स्वरूप होते हैं तथा अन्य दो अपेक्षाकृत मध्यम, इन दिनों विभिन्न वस्तुओं के साथ स्नान ; गेहूँ, तिल एवं जौ के साथ चार दिनों तक होम ; दूध पर रहना;, विष्णुधर्मोत्तर ० ३।१३७।१-१३; हे० (व्रत० २,४९९-५००)।
गुरुवत : अनुराधा नक्षत्र वाले मंगल को आरम्भ ; स्वर्णपात्र में बृहस्पति की स्वर्णप्रतिमा की पूजा; सात नक्त किये जाते हैं; हेमाद्रि (व्रत० २, ५७९)।
गुह्यकद्वादशी : द्वादशी को; उपवास ; अक्षतों, पिसे हुए तिल के गुह्यकों (यक्षों) की पूजा एवं एक ब्राह्मण को स्वर्ण-दान'; सभी पापों को दूर करता है ; हे० (व्रत० १, १२०४)।
गृहपञ्चमी : पंचमी पर; ब्रह्मा-पूजन; चक्की, ऊखल, मूसल, सूप एवं बटलोई एवं एक जल-पात्र का दान ; हे. (व्रत० १, ५७४); कृत्यरत्नाकर (९८, इसने चुल्ली अर्थात् चूल्हे की बात भी कही है)।
गृहदेवी-पूजा : देखिए नीलमतपुराण (पृ० ७९, श्लोक ९६१-६२)। वर्ष के आरम्भ में अपने घर में ही पूजा।
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