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व्रत-सूची तिथि ; एक वर्ष ; शिव देवता; भविष्योत्तर० (५७।१-२२); कृत्य० (व्रत० २४५-२४८); हे० (व्रत० १, ८१६८१७); (३) मार्ग० से कार्तिक तक शिव-पूजा; शिव के विविन्न बारह नामों के साथ ; कृत्यकल्पतरु (व्रत० २४८-२५०); मत्स्य० (५६।१-११७); कृत्यरत्नाकर १४५०-४५२); व्रतरत्नाकर (३१७-३१९); (४) भाद्रपद कृष्ण ८ से श्रावण तक एक वर्ष ; शिव देवता; कृत्यकल्पतरु (२५०-२५२); हे व्रत० (१,८२१-८२३); (५) ज्येष्ठ कृ० ८; तिथि; शिव-पूजा; कृत्य० (वत० २५२-२५४); हे० (व्रत० १, ८४०-८४१, यहाँ इसे तिन्दुकाष्टमी कहा गया है); (६) चैत्र कृष्ण ८; तिथि ; एक वर्ष ; कृष्ण देवता; हे० (व्रत० १, ८१९-८२१); सन्तान के लिए; (७) आश्विन या माघ या चैत्र या श्रावण की कृ०८ से प्रारम्भ ; मंगला देवी; एक मक्त, नक्त, अयाचित एवं उपवास, अष्टमी से एकादशी तक, उसी चक्र में दिनों के अनुसार ; कृत्यकल्पतरु (व्रत० २३३-२३५); देवी के १७ नामों का जप।
कृष्णकादशी : फाल्गुन कृ० ११; तिथि ; चण्डी देवता; हे० (व्रत० १।१५०), व्रतार्क (२३२-३३)।
केदारगौरीव्रत : कार्तिक अमावास्याः तिथि: गौरी एव केदार की पूजा: अहल्याकामधेन (१०६२१०६७)। अ० काम के कथनानुसार यह दाक्षिणात्यों में अति प्रसिद्ध है; उसमें पद्म० का उद्धरण है।
कोकिलावत : अधिकांशतः नारियों के लिए; आषाढ़-पूर्णिमा पर; सायंकाल में संकल्प; पूर्णिमान्त गणना के अनुसार आषाढ़ पूर्णिमा से एक मास तक ; सोने या तिल की रोटी से बनी कोकिला के रूप में गौरी की पूजा; एक मास तक नक्त'; मास के अन्त में ताम्रपत्र में प्रतिमा को रखकर उसका दान, जिसके साथ आँखों, पाँवों एवं चोंच के लिए रत्न रखे रहते हैं; हे० (व्रत० २, ७५५-५७); नि० सि० (१०८-१०९)। व्रतार्क (३२९-३३४) ने टिप्पणी की है कि गुर्जर देश में यह उस देश के आचार के अनुसार मलमास वाले आषाढ़ में मनाया जाता है, किन्तु कोई शास्त्रीय प्रमाण नहीं है। ऐसा कहा जाता है कि दक्ष के यज्ञ के नाश के उपरान्त शिव के शाप से गौरी कोकिला हो गयी थी। १६ उपचारों के साथ चाँदी के पैरों एवं मोती की आँखों वाली कोकिला की सोने की प्रतिमा की पूजा की जाती है। सौभाग्य एवं सम्पत्ति के लिए यह व्रत किया जाता है। तमिल पंचांग में यह ज्येष्ठ (मिथुन) १४ को दिखाया गया है।
कोटिहोम : मत्स्य० (९३।५-६) में आया है कि नवग्रह होम अमृत होम कहलाता है, क्योंकि उसमें १० सहस्र आहुतियाँ होती हैं, अन्य प्रकार हैं लक्ष-होम एवं कोटिहोम। अपशकुनों, निमित्तों या ग्रह-प्रभावों की शान्ति के लिए नवग्रह-मख किया जाता है। मत्स्य ने इन तीनों का वर्णन किया है। देखिए नृसिंहपुराण (३५); बृ० सं० (४५।६, इसने दिव्य उत्पातों के लिए कोटिहोम की व्यवस्था दी है); हर्षचरित (५, जहाँ यह उस समय सम्पादित हुआ है, जब कि प्रभाकरवर्धन मृत्यु-शय्या पर था)।
कोटीश्वरीवत : भाद्र० शुक्ल ३ ; तिथि ; चार वर्षों के लिए, उस दिन उपवास ; दूध में एक लाख चावल के दाने या तिल डाले जाते हैं ; पार्वती की एक प्रतिमा बनायी जाती है और पूजित होती है। इसे लक्षेश्वरी भी कहा जाता है; हे० (व्रत० १, ४५९-४६१), तार्क (५२-५३); व्रतप्रकाश (१२४)।
कोजागर या कौमुदी-महोत्सव : आश्विन पूर्णिमा पर; तिथि; लक्ष्मी की तथा ऐरावत पर चढ़े इन्द्र की पूजा ; राजमार्गों पर, मन्दिरों में, वाटिकाओं एवं गृहों में अधिक संख्या में घृत या तिल के दीपों को जलाया जाता है, पासा खेला जाता है; दूसरे दिन प्रातः स्नान एवं इन्द्र-पूजा, ब्राह्मणों को भरपेट भोजन; लिंगपुराण में आया है कि अर्धरात्रि में लक्ष्मी घमती हैं और कहती हैं 'को जागति, कौन जगता है ?' उस दिन लोगों को नारियल के फर का पानी पीना चाहिए और अंकित अक्षों से पासा खेलना चाहिए; कालविवेक (४०३), वर्षक्रियाकौमुदी (४५३ ४५४); तिथितत्त्व (१३५ १३७); कृत्यतत्त्व (४४५ ४४७); नि० सि० (१९१); पु० चि० (३०२-३०३);
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