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धर्मशास्त्र का इतिहास
कुम्भिकाव्रत : कार्तिक शुक्ल ११; तिथि ; विष्णु-देवता; हे० व्रत० ( १, ११०५ -८ ) ; व्रतप्रकाश
(२११) ।
कूर्मद्वादशी : पौ० शु० १२; तिथि ; नारायण; कृत्यकल्पतरु ( व्रत० ३१७ - ३१९); हे० व्र० (१,१०२६७ ) ; कृ० र० (४८२-४८४ ) । घृत से पूर्ण एक ताम्र पात्र में मन्दराचल के साथ कच्छप की प्रतिमा रखी जाती है और दान की जाती है।
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कूष्माण्ड - दशमी : आश्विन शु० १० से आगे की चतुर्थी तक; तिथि; कूष्माण्ड-पुष्पों से शिव, दशरथ, लक्ष्मी की पूजा; चन्द्र को अर्घ्य ; ग० प० ( १२५ - १२६; साम्ब पुराण से उद्धरण) ।
कृच्छ्रव्रत : मार्ग ० शुक्ल ४; तिथि ; चार वर्ष; गणेश देवता; हे० व्र० ( १, ५०१-५०४ ) । प्रथम वर्ष में व्यक्ति चतुर्थी पर एकभक्त होता है । दूसरे में नक्त रहता है, तीसरे में अयाचित और चौथे में वह चतुर्थी पर उपवास करता है।
कृच्छ्रव्रतानि : कतिपय कृच्छ्र, यथा-सोमायन तप्तकृच्छ्र, कृच्छ्रातिकृच्छ्र, सान्तपन, जो वास्तव में प्रायश्चित हैं, किन्तु व्रत कहे गये हैं ( हे० व्रत० २, ९३१) । शूद्रों को इन्हें करने का अधिकार नहीं है । कुछ अन्य कृच्छ्र भी हैं।
कृत्तिकाव्रत : महाकार्तिकी पर या किसी कार्तिक पूर्णिमा पर कुरुक्षेत्र, प्रयाग, पुष्कर, नैमिष, मूलस्थान, गोकर्ण जैसे पवित्र स्थानों में या किसी नगर या ग्राम में स्नान; सोने, चाँदी, रत्नों, मक्खन, आटे से निर्मित ६ कृत्तिका - मूर्तियों की पूजा । मूर्तियों में चन्दन लेप, अलक्तक, कुंकुम आदि से अलंकरण होता है और जाती पुष्पों से उनकी पूजा की जाती है । हे० ० (२, १९१-१९२) ।
कृत्तिकास्नान : भरणी नक्षत्र में उपवास; कृत्तिका में पवित्र जल एवं सभी पौधों से युक्त सोने या मिट्टी के घड़े के जल से पुरोहित द्वारा कर्ता एवं उसकी पत्नी का स्नपन, अग्नि, स्कन्द, चन्द्र, तलवार, वरुण की पूजा; हे० ० (२, ५९७-५९८, विष्णुधर्मोत्तर से उद्धरण) ।
कृष्णचतुर्दशी : (१) फाल्गुन कृ० १४; तिथि ; शिव देवता; शिव के १४ नामों का पाठ १४ वर्षों तक ; हे० व्र० (२, ६५-७१, कालोत्तर से उद्धरण); (२) केवल नारियों के लिए, कृ० १४ पर उपवास; शिव; एक वर्ष तक; हे० व्र० (२, १५४); (३) माघ कृ० १४ पर बिल्वपत्रों से शिव पूजा हे० प्र० (२, १५६ ) ; हेमाद्रि ( व्रतखण्ड, २, १५६, सौर० से उद्धरण) ।
(४) कृ० १४ पर, शिव प्रतिमा के समक्ष गुग्गुल जलाना
कृष्णजन्माष्टमी : देखिए गत अध्याय ७ ।
कृष्णदोलोत्सव : चैत्र शु० ११ पर; तिथि ; कृष्ण की (लक्ष्मी के साथ) प्रतिमा को झूले पर रखना और रात्रि में जागर (जागरण) एवं दमनक ( दौने) की पत्तियों से पूजा ; स्मृतिको० (१०१) ।
कृष्णद्वादशी : आश्विन कृ० १२ पर; उपवास एवं वासुदेव की पूजा; हे० व्र० (१, १०३६-३७ ) ; कृत्यकल्पतरु (व्रत० ३२९ - ३३१ ) । देखिए वराहपुराण (४६।१ - १५ ) ।
कृष्णव्रत : एकादशी पर ; तिथि ; कृष्ण ; कृत्य० ( व्रत० ४४७ ) ; हे० व्रत० ( १, ११६१ ) ।
कृष्ण - षष्ठी : (१) मार्ग० कृ० ६; तिथि; एक वर्ष; प्रत्येक मास में विभिन्न नाम से सूर्य का पूजन; कृत्य० (व्र० १०१-१०३); हे० ( ० १, ६२४-६२६ ) ; कृत्यरत्नाकर (४४७-४४८); (२) एक वर्ष तक दोनों पक्षों की प्रत्येक षष्ठी पर ; नक्त; कार्तिकेय को अर्घ्य ; भविष्य पुराण (ब्राह्मपर्व, ३९।१-१३) एवं अग्नि० (१८१/२) । कृष्णाष्टमीव्रत : (१) मार्ग कृ० ८; तिथि एक वर्ष; शिव देवता; कृत्य ० ( व्रत०, २४१-२४५ ) ; हे० प्र० (१,८२३-८२६ ) ; विभिन्न मासों में शिव के विभिन्न नाम एवं विभिन्न भोजन-प्रयोग; (२) मार्ग ० कृ० ८)
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