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धर्मशास्त्र का इतिहास
कान्तिव्रत : (१) का० शु० २; तिथि ; एक वर्ष; बलराम, केशव एवं अर्धचन्द्र की पूजा; कार्तिक से आगे चार मासों तक तिल से होम, आषाढ़ से चार मासों तक घी से; वर्ष के अन्त में ब्राह्मण को चाँदी का चन्द्र दिया जाता है; कृत्यकल्पतरु ( ४७-४८ ) ; हे० व्र० (१, ३७८-३७९); (२) वैशाख में; संवत्सरखत; वैशाख भर नमक एवं पुष्पों का त्याग ; कृत्यकल्पतरु ( व्रतखण्ड, ४४५) ।
कामत्रयोदशी : त्रयोदशी पर; तिथि ; काम-पूजा ; हे० व्रत (२,२५), वर्षक्रियाकौमुदी ( ७० ) । कामत्रिव्रत : कई देवियों, यथा--उमा, मेधा, भद्रकाली, कात्यायनी, अनसूया, वरुण - पत्नी की पूजा; वांछित पदार्थों की प्राप्ति होती है; हेमाद्रि ( व्रत, १, ५७५-५७६ ) ।
कामदविधि : मार्ग ० शु० ६ पर पड़ने वाले रविवार को चन्दन लगे करवीरपुष्पों से सूर्य पूजा; कृत्यक० ( व्रत १४ ) ।
कामदा सप्तमी : फाल्गुन शु० ७; तिथि; वर्ष मर; सूर्य-पूजा; फाल्गुन से आगे के प्रत्येक चार मासों में विभिन्न फूलों, धूपों एवं विभिन्न नैवेद्यों से पूजा ; कृत्यकल्पतरु ( व्रतखण्ड, १६९-१७२ ) ; हे० ० ( १, ७२८-७३१, भविष्य० १।१०५।१- २९ से उद्धरण है ) ।
कामदेवपूजा : चैत्र शु० १२ पर; तिथि; एक वस्त्र पर चित्र खींचकर सामने ठंडे जल से पूर्ण तथा पुष्पों से आच्छादित कलश रखकर कामदेव की पूजा करना; इस दिन पतियों द्वारा पत्नियाँ सम्मानित होती हैं; कृत्यकल्पतरु ( व्रतकाण्ड, ३८४) ।
कामदेवव्रत : वै० शु० १३ को आरम्भ तिथि एक वर्ष; कामदेव-पूजा; विष्णुधर्मोत्तर ० ( ३।१८३ ) ; हे० ( ०२, १८ ) ; व्रतप्र० (८६)।
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कामधेनुव्रत : कार्तिक कृ० ११ से पाँच दिनों तक; तिथि श्री एवं विष्णु देवता; रात्रि के समय घर में, गोशाला, चैत्यों, देवमन्दिरों, राजमार्गों, श्मशानों, तालाबों पर दीप जलाना; रात्रि में पत्नी एवं अन्य सम्बन्धियों के साथ पासा खेलना ; एकादशी पर उपवास तथा गाय के दूध या घी से विष्णु प्रतिमा को नहलाना ; जो चार दिनों तक चलता रहता है; कामधेनु नामक दान करना; हे० व्र० (२, ३४४- ३४८, अग्निपुराण से उद्धरण) । यह सभी पापों के लिए एक प्रायश्चित्त भी है।
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कामदेवत्रयोदशी ( या मदनत्रयोदशी ) : चैत्र शु० १३; तिथि ; मदन के रूप में दमनक पौधे की पूजा; गदाधरपद्धति (१५२-१५३ ) ; कृत्यतत्त्व (४६५) । देखिए अनंगचतुर्दशी ।
कामदेवद्वादशी : मार्ग ० शु० १२ को प्रारम्भ; उसके उपरान्त एक वर्ष तक प्रत्येक द्वादशी पर ; पूजन; स्मृतिकौस्तुभ ( ११४) ।
कामदेव
काममहोत्सव : चैत्र शु० १४; तिथि ; किसी वाटिका में त्रयोदशी की रात्रि में मदन एवं रति की प्रतिमा की स्थापना तथा चतुर्दशी को पूजा, अश्लील शब्दों, गानों एवं बाजों के साथ उत्सव मनाया जाता है; वर्षक्रियाकौमुदी (५२९-५३२) । शैवागम में इसे ' चैत्रावली' एवं 'मदनमञ्जी' कहा गया है। देखिए कालविवेक ( १९० ) 'चैत्रविहित-अशोकाष्टमी - मदनत्रयोदशी - चैत्रावली - मदनभञ्जिका चतुर्दशी प्रभृतीन्' एवं राजमार्तण्ड ( ८१ ) ; कृत्यर० (१३७-१३८) ।
काव्रत : (१) केवल नारियों के लिए; कृत्यकल्पतरु ( व्रत० ४२१-४२४); हे० (०२, ८२१-८२४); कार्तिक में प्रारम्भ ; मासव्रत; एक वर्ष; सूर्य-पूजा ; हेमाद्रि ने इसे स्त्री- पुत्र - कामावाप्तिव्रत कहा है; (२) पौष शु० १३ को प्रारम्भ ; प्रत्येक त्रयोदशी को नक्त ( केवल रात्रि में भोजन ), चैत्र में एक सोने का अशोकवृक्ष एवं १० अंगुल की ईखों (गन्ने) का 'प्रद्युम्न प्रसन्न हों' मन्त्र के साथ दान; कृत्यकल्पतरु ( व्रत० ४४० ) ; हे० ब्र० (२, २५ ) ; (३) किसी भी मास की सप्तमी पर; तिथि; सूर्य की पत्नी सुवर्चला की पूजा; सभी कामनाओं की पूर्ति; हेमाद्रि (व्रत
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