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धर्मशास्त्र का इतिहास ऋषिपंचमी : देखिए गत अध्याय ८।।
एकानगङ्गापूजा : कार्तिक शु० ४, ८, ९ या १४ पर; अन्तिम पर नारी फल वाले वृक्ष के नीचे बैठकर एकानंगा की पूजा करती है और बाज या किसी पक्षी से भोजन का सुन्दर कौर भगवती के पास ले जाने को कहती है। इस दिन पत्नी पहले खाती है और पति को उसके उपरान्त खिलाती है। कृत्यरत्नाकर (४१३-४१४)।
ऐश्वर्यतृतीया : तृतीया को ब्रह्मा, विष्णु या शिव की एवं तीनों लोकों की पूजा, उनके लिए व्यवस्थित मन्त्रों के साथ; इससे समृद्धि प्राप्त होती है; हेमाद्रि (व्रत १, ४९८; विष्णुधर्मोत्तर० से उद्धरण)।
कज्जली : भाद्रपद कृ० ३ (पूर्णिमान्त से गणना); तिथि ; विष्णु-पूजा; नि० सि० (१२३); अहल्याकामधेनु (२७), इसका कथन है कि यह श्रावण कृ० ३ को होता है। निर्णयसिन्धु के अनुसार यह मध्यदेश में अति प्रचलित है।
कटदानोत्सव : भाद्रपद शु० ११एवं १२ या १५ को जब कि विष्णु दो मास सो लेने के उपरान्त करवट बदलते हैं। हेमाद्रि (व्रत २, ८१३); स्मृतिकौस्तुभ (१५३)।
__ कदलीवत : भाद्र० शु० १४ पर; तिथि; स्वास्थ्य, सौन्दर्य, सन्तान आदि के लिए केले के वृक्ष की पूजा होती है ; हे० ७० (२,१३२-१३३)। यदि कदली न हो तो उसकी स्वर्ण-प्रतिमा की पूजा। अहल्याकामधेनु (६११) ।
__ कपर्दीश्वर-विनायकवत : श्रावण शु० ४; तिथि ; गणेश-पूजा; व्रतार्क (७८-८४); व्रतराज (१६०१६८)। दोनों में आया है कि विक्रमादित्य ने इसका सम्पादन किया था, दोनों में विक्रमादित्य की चर्चा है।
कपिलाषष्ठी-व्रत : भाद्र० कृ० (अमान्त गणना) या आश्विन कृ० (पूर्णिमान्त' गणना) ६; मंगल से संयुक्त, व्यतिपातयोग, रोहिणी-नक्षत्र, हे० व० (१, ५७८--प्रोष्ठपदासिते पक्ष षष्ठी भौमेन संयुता। व्यतिपातन रोहिण्या सा षष्ठी कपिला स्मृता ॥)। इनके अतिरिक्त यदि सूर्य हस्त नक्षत्र में हो तो फल और महान् हो जाते हैं; भास्कर-पूजा; कपिला गाय का दान । हे० ७० (१, ५७७-७८); नि० सि० (१५२); पु० चि० (१०२); व्रतराज (२२१-२३१); कुछ ग्रन्थ इसे आश्विन में ठहराते हैं, किन्तु यदि भाद्र० है तो अमान्त गणना होनी चाहिए, क्योंकि तभी रोहिणी का योग हो सकता है। इस प्रकार के योग बहुत कम होते हैं, बहुधा ६० वर्षों के उपरान्त ।
कमलषष्ठी : मार्ग० शु० ५-७; तिथि; एक वर्ष ; ब्रह्मा देवता; पंचमी पर नियम, षष्ठी पर उपवास तथा सोने के बने कमल तथा शक्कर का किसी ब्राह्मण को दान; सप्तमी को ब्राह्मण का सम्मान और उसे क्षीर (खीर) खिलाना ; बारह मासों में ब्रह्मा के बारह नाम ; भविष्योत्तरपुराण (३९)।
कमलसप्तमी : चैत्र शु० ७ से प्रारम्भ; तिथि; एक वर्ष; दिवाकर देवता; मत्स्य० (७८।१-११, कृत्यकल्पतरु, व्र० २१७-२१९ में उद्धृत); पद्म० (५।२१।२८१-२९०, हे० ७० १, ६४०-६४१ में उद्धृत); कृ० र० (११९-१२१)। भविष्योत्तर० (५०।१-११); व्रतप्रकाश (६१) ने पद्म० से गायत्री मन्त्र (ऋ० ३।६२।१०) के आधार पर प्रणीत एक मन्त्र उद्धृत किया है, यथा--"भास्कराय विद्महे सप्ताश्वाय धीमहि। तन्मे भानुः प्रचोदयात् ॥”
___ करकचतुर्थी : केवल नारियों के लिए; कार्तिक कृष्ण ४ पर; तिथि ; वट वृक्ष के नीचे शिव, गणेश एवं स्कन्द के साथ बने गौरी-चित्र की समी उपचारों के साथ पूजा; ब्राह्मणों को दस करकों (पात्रों) का दान तथा चन्द्रोदय के उपरान्त चन्द्र को अर्घ्य । नि० सि० (१९६); व्रतार्क (८४-८६) ; व्रतराज (१७२); स्मृतिकौ० (३६७); पु० चि० (९५)।
करकाष्टमी : कार्तिक कृ० की अष्टमी ; रात्रि में गौरी-पूजा, सुगन्धित जल युक्त एवं मालाओं से आच्छादित ९ घड़े; ९ कुमारियों को खिलाने के उपरान्त ही भोजन करना; अहल्याकामधेनु (५४७)।
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