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बत-सूची उपवास-व्रत : देखिए गत अध्याय ५, एकादशी-व्रत; विष्णुधर्मोत्तर० (११५९।३-५)। एक मास से अधिक का उपवास वजित है। हेमाद्रि (व्रत २, ७७६-७८३) ।
उपाकर्म : देखिए इस महाग्रन्थ का मूल खण्ड २, पृ० ८०७-८१५ ।
उपाङ्गललिता : आश्विन शु० ५; तिथि ; ललितादेवी (पार्वती); दक्षिण में प्रचलित; कालतत्त्वविवेचन (२१८); स्मृतिको० (३४३-५३२); पु० चिन्तामणि (९९), व्रतराज (२०६-२१९) ।
उभयद्वादशी : मार्ग० कृ० १२ पर प्रारम्भ ; वर्ष की समी २४ द्वादशियों पर; तिथि; विष्णु के २४ स्वरूपों, यथा--केशव, नारायण आदि की पूजा; हेमाद्रि (व्रत १,१०१३-१०२१)।
उभयनवमी : पौ० शु० ९ से प्रारम्भ ; एक वर्ष ; चामुण्डा-पूजा; देवी की प्रतिमा-निर्माण में प्रति मास विभिन्न पदार्थ एवं विभिन्न नाम, कुछ दिनों में मैंस का मांस; कर्ता को दोनों पक्ष की नवमी पर नक्त (केवल रात्रि में भोजन) करना पड़ता है और कुमारियों को खिलाना पड़ता है। कृत्यकल्पतरु (व० २७४-२८३); हे० ७० (१,९२१-९२८); कृत्यरत्नाकर (२०३-४, ४४५-४४६, ५१७--समी भविष्यपुराण से) ; व्रतप्रकाश (६६) ।
उभयसप्तमी : (१) शक्ल सप्तमी से प्रारम्भ; तिथि; एक वर्ष,प्रत्येक पक्ष; सूर्य देवता; कृत्यकल्पतरु (व्रत० १५९-१६०), हे० ७० (१, ७४८-७५३) दोनों में भविष्य' (१११६५।१-४५) का उद्धरण है; (२) माघ शु० सप्तमी से प्रारम्भ ; एक वर्ष। प्रत्येक मास में विभिन्न नाम से सूर्य की पूजा; भविष्योत्तरपुराण (४७।१।२५)।
उभयकादशी : मार्ग० ११ से प्रारम्भ ; तिथि; एक वर्ष (प्रत्येक पक्ष); विष्णु के विभिन्न नाम (केशव, नारायण आदि) कृष्ण पक्ष में तथा कृष्ण के विभिन्न नाम शुक्ल पक्ष में। व्रतार्क (२३३-२३७)। .
उमाचतुर्थी : माघ शु० ४; तिथि ; उमा; नयतकालिक (४३७-४३८); समयप्रदीप (४७); कृ० र० (५०३); सब को, विशेषतः नारियों को कुन्द के पुष्पों से उमा पूजा करनी चाहिए और उपवास करना चाहिए।
उमामहेश्वरव्रत : (१) माद्र पूर्णिमा पर आरम्म ; चतुर्दशी पर संकल्प; तिथि; उमा एवं शिव की सोने या चाँदी की मूर्तियों की पूजा; व्रतार्क (३३६-३४३); कर्णाटक में प्रसिद्ध ; (२) पूर्णिमा या अमावास्या, चतुर्दशी या अष्टमी तिथि पर प्रारम्भ ; एक वर्ष; उमा एवं शिव की पूजा; हविष्यान्न के साथ नक्त; हे० व० (२, ३९५); (३) अष्टमी या चतुर्दशी पर; इन तिथियों पर एक वर्ष तक उपवास ; हे० ७० (२, ३९६); (४) मार्गशीर्ष की प्रथमा पर आरम्म; एक वर्ष; देवता वही; लिंगपुराण (पूर्वार्ध, ८४।२३-७२); (५) मार्ग शु० ३ को प्रारम्भ ; तिथि; एक वर्ष ; देवता वही; भविष्योत्तरपुराण (२३।१-२८), लिंग० (पूर्वार्ध, ८४) : (६) हे० ७० (२, ६९१-६९३); कृ० क० त० (व० ४१४-४१६)।
उमाविपूजा : चैत्र शु० २; तिथि ; उमा, शिव एवं अग्नि की पूजा; स्मृतिकौस्तुभ (८); पुरुषार्थचिन्तामणि (८३)।
___ उल्कानवमी : आश्विन शु० की नवमी; तिथि ; एक वर्ष ; महिषासुरमर्दिनी की 'महिषघ्नि महामाये' मन्त्र के साथ पूजा; हे०७० (१, ८९५); दूसरा प्रकार-हे०७० (१, ८९७-९) एवं व्रतप्रकाश (१८७); मन्त्र वही है। इसमें व्यक्ति अपने शत्रुओं के समक्ष उल्का के समान लगता है और नारी अपनी सौतों के समक्ष उल्का-सी प्रतीत होती है, अतः इसका यह नाम पड़ा है।
उषःकाल : सूर्योदय के पूर्व पाँच घटियों का काल या सूर्योदय से पहले की ५५ घटियों के उपरान्त; "पंचपंच उषःकाल: सप्तपंचारुणोदयः। अष्टपंच भवेत् प्रातः शेष: सूर्योदयो मतः॥" कृत्यसारमुच्चय' (५२)।
ऋतुव्रत : हेमाद्रि (व्रत २, ८५८-८६१); पाँच व्रत जो यथास्थान सूची में आयेंगे; वर्षक्रिया० (२३७-२४०); स्मृतिकौस्तुभ (५४८-५५२) ।
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