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धर्मशास्त्र का इतिहास
की पूजा; उपवास एवं ब्राह्मणों तथा विवाहित कन्याओं को भोजन; हे० ७० (२, २२७-२२९, • गरुड़ से उद्धरण)।
आयुःसंक्रान्तिव्रत : संक्रान्ति दिवस पर; सूर्य-पूजा; काँसे के बरतन , दूध, घी एवं सोने का दान, उद्यापन, जैसा कि धान्यसंक्रान्ति में होता है ; हे० ७० (२,७३७); व्रतार्क (३८९)।
आरण्यकषष्ठी : देखिए अरण्यषष्ठी।
आरोग्यद्वितीया : पौष शु० २ को प्रारम्भ ; प्रत्येक शु० २ पर वर्ष भर के लिए; चन्दा की पूजा; मार्ग० शु० २ पर अर्ध चन्द्र की पूजा के उपरान्त दो वस्त्रों, सोने एवं पेय पदार्थ से युक्त घड़े का दान ; हेमाद्रि (व० १, ३८९-९१); परिणाम-स्वास्थ्य एवं समृद्धि।
आरोग्यप्रतिपदा : वर्ष के अन्त में प्रथम तिथि को प्रारम्भ ; एक वर्ष तक ; प्रत्येक प्रतिपदा पर सूर्य के चित्र की पूजा; फल वही जो ऊपर व्यक्त है; हे० ७० (१, ३४१-४२); व्रतार्क (२८); व्रतरत्नाकर (५३)।
आरोग्यव्रत : (१) माद्र० की पूर्णिमा के उपरान्त प्रथम प्रतिपदा से आश्विन की पूर्णिमा तक ; दिन में अनिरुद्ध की कमलों एवं जाती फूलों से पूजा; होम तथा अन्त के पूर्व तीन दिनों का उपवास, स्वास्थ्य, सौन्दर्य एवं समृद्धि की प्राप्ति; विष्णुधर्मोसर० (३।२०५।१-७); हे० ७० (२, ७६१); (२) यह दशमोव्रत है; नवमी पर उपवास तथा दशमी पर लक्ष्मी एवं हरि की पूजा; हे० ७० (१,९६३-९६५)।
आरोग्यसप्तमी : माघ शु० ७; एक वर्ष तक सभी सप्तमियों पर उपवास ; सूर्यपूजा; वराह० (६२। १-५); हे० ७० (१, ७४७); तिथितत्त्व (४६०); स्वास्थ्य एवं धन की प्राप्ति ।
आर्द्रादर्शन या आर्द्राभिषेक : मार्ग की पूर्णिमा पर; नटराज (नाचते हुए शिव) के दर्शन के लिए लोग दौड़ पड़ते हैं, और इसके लिए चिदम्बरम में एक बड़ा उत्सव होता है।
आर्द्रानन्दकरी-तृतीया : उत्तराषाढ़ पूर्वाषाढ़ या अभिजित् या हस्त या मूल नक्षत्र, वाली शुक्ल तृतीया पर प्रारम्भ ; एक वर्ष के लिए जो तीन अवधियों में विभाजित कर दिया जाता है; भवानी एवं शिव की पूजा; देवी के चरणों एवं मुकुट तक के सभी अंगों को प्रणाम; मत्स्य० (६४११-२८); हे० ७० (१, ४७१-४७४; ) कृत्यकल्पतरु (व० ५१-५५); भविष्योत्तरपुराण (२७)।
आलेख्यसर्पपञ्चमी : भाद्र० शु० ५; तिथि-व्रत; रंगीन चूर्ण से नागों के चित्र खींचकर उनकी पूजा करना; फल--नागों का भय दूर हो जाता है; भविष्य ० (ब्राह्मपर्व ३७।१-३); कृ० क० (व० ९४-९५); हे० व० (१, ५६७)।
आशादशमी : किसी शु०१० पर आरम्भ ; ६ मास, १ वर्ष या दो वर्ष ; अपने आँगन में दसों दिशाओं के चित्रों की पूजा; व्यक्ति की सभी आशाएँ पूर्ण हो जाती हैं ('आशा' का अर्थ 'दिशा' एवं अभिकांक्षा या इच्छा भी होता है); हे० वृ० (१, ९७७-९८१), व्रतरत्नाकर (३५६-७); यदि विद्ध हो तो पूजा तब होनी चाहिए जब दशमी पूर्वाह्न में हो।
आशादित्यव्रत : आश्विन में किसी रविवार को प्रारम्भ ; एक वर्ष; १२ विभिन्न नामों से सूर्य की पूजा; हे व्र० (२, ५३३-५३७) । इस व्रत से साम्ब कुष्ठ रोग से मुक्त हो गया था।
आश्रमवत : चैत्र शुक्ल ४ पर प्रारम्भ ; वर्ष भर के लिए, वर्ष तीन भागों में विभाजित ; वासुदेव, संकर्षण, प्रद्युम्न एवं अनिरुद्ध की (एक के उपरान्त-एक की) पूजा; विष्णुधर्मोत्तर० (३।१४२।१-७), हे० व्र० १, ५०५)।
आश्विनकृत्य : देखिए कृत्यरत्नाकर (३०१-३९७); वर्षक्रियाकौमुदी (३४३-४५८); निर्णयसिन्धु (१४४-१९२), स्मृतिकौस्तुभ (२८७-३७३); कृत्यतत्त्व (४४४-४४७) । इस मास में बहुत-से व्रत एवं उत्सव
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