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व्रत-सूची
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से उठंग कर (सटे रहकर) महाश्वेता मन्त्र का जप करना, गन्ध, पुष्प आदि से पूजा करना, दक्षिणा देकर भोजन करना।
आनन्तर्यवत : मार्ग० शु० ३ को प्रारम्भ; प्रत्येक पक्ष की द्वितीया को नक्त एवं तृतीया को उपवास; एक वर्ष ; प्रत्येक तृतीया को विभिन्न नाम से उमा की पूजा; नैवेद्य भी विभिन्न ; कर्ता को केवल रात्रि में खाना होता है जो विभिन्न तृतीयाओं में विभिन्न होता है; विशेषतः नारियों के लिए व्यवस्थित; यह अपने पुत्रों, मित्रों एवं सम्बन्धियों से अन्तर (अलगाव) को रोकता है अतएव इसका ऐसा नाम है।
आनन्दनवमी : फाल्गुन शु० ९ को प्रारम्भ ; एक वर्ष के लिए; पंचमी पर एक भक्त, षष्ठी पर नक्त, सप्तमी पर अयाचित, अष्टमी एवं नवमी पर उपवास; देवी-पूजा; वर्ष का तीन माग में विभाजन ; चार मासों की प्रत्येक अवधि में देवी के नाम, पुष्पों एवं नैवेद्य में अन्तर हो जाता है; कृत्यकल्पतरु (व्रत० २९९-३०१), हेमाद्रि (व्रत १, ९४८-९५०, यहाँ 'अनन्दा' शब्द आया है)।
___ आनन्दपञ्चमी : नागों के लिए पञ्चमी प्रिय होती है। नागों (प्रतिमाओं) को दूध में नहलाना; नाग भय से लोगों को मुक्त करते हैं; हे०७० (१, ५५७-५६०)।
आनन्दवत : चैत्र से आगे चार मासों तक; बिना माँगे जल दिया जाता है; अन्त में जलयुक्त पात्र, भोजन, वस्त्र, तिलयुक्त बरतन एवं सोना दिया जाता है; कृत्यकल्पतरु (व० ४४३); हे०७० (१,७४२-७४३, मत्स्य० से उद्धरण); वर्षक्रियाकौमुदी (५२०); कृत्यरत्नाकर (८५); मत्स्य० (१०१॥३१-३२)।
आनन्दसफलसप्तमी : भाद्रपद शु० ७; एक वर्ष के लिए; उपवास; भविष्य (१।११०११-८); कृत्यकल्पतरु (७० १४८-१४९); हे० ७० (१, ७४१)।
आन्दोलक-महोत्सव : वसन्त में, भविष्योत्तर (१३३।२४)।
आन्दोलन-वत : चैत्र शु० ३ पर; पार्वती एवं शिव (की प्रतिमाओं) की पूजा एव उन्हें दोला (झूला) पर झुलाना; हे० ० (२, ७४५-७४८); स्मृतिको० (९०-९१); पु० चि० (८५)।
आमकीवत : किसी भी मास. विशेषत: फाल्गन की श० द्वादशी पर; आमर्दकी-धात्री (आमलक), एक वर्ष; विभिन्न नक्षत्रों में द्वादशी विभिन्न नामों से घोषित है, यथा--विजया (श्रवण के साथ), जयन्ती (रोहिणी के साथ), पापनाशिनी (पुष्य के साथ); इस अन्तिम पर उपवास करना एक सहस्र एकादशियों के बराबर होता है; आमर्दकी वृक्ष के नीचे विष्णु-पूजा में जागर (जागरण) करना चाहिए; आमर्दकी वृक्ष के जन्म की कथा सुननी चाहिए ; हेमाद्रि (व्रत १, पृ० १२१४-१२२२)।
आमलक्येकादशी : फाल्गुन शु० ११ पर; आमलक वृक्ष (जिसमें हरि एवं लक्ष्मी का वास होता है) के नीचे हरि की पूजा; पद्म० (६।४७।३३) ; हे० ७० (१, ११५५-११५६); स्मृतिकौस्तुभ (५१६), जहाँ आमलकी वृक्ष के नीचे दामोदर एवं राधा की पूजा का वर्णन है।
आम्रपुष्पभक्षण : चैत्र शु० १; मदन-पूजा के रूप में आम्र के बौर को खाना, स्मृतिको० (५१९), व० क्रि० कौ० (५१६-१७)।
आयुधवत : (१) श्रावण से चार मासों के लिए; शंख, चक्र, गदा एवं पद्म (जो क्रम से वासुदेव, संकर्षण, प्रद्युम्न एवं अनिरुद्ध के द्योतक हैं) की पूजा; विष्णुधर्मोत्तर० (३।१४८११-६); हे० ७० (२, ८३१); (२) विष्णुधर्मोत्तर० (३।१५५।१-७)।
आयुर्वत : (१) शम्भु एवं केशव को चन्दन-लेप लगाना; एक वर्ष; अन्त में जलयुक्त पात्र के साथ एक गाय का दान; कृत्यकल्पतरु (व० ४४२, १२ षष्टिवतों में एक); (२) पूर्णिमा पर; लक्ष्मी एवं विष्णु
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