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________________ १०६ धर्मशास्त्र का इतिहास ५२३-२४), कृत्यकल्पतरु ( द्र० १२-१३ ) ; कामद (मार्गशीर्ष शु० ६ ); जय (दक्षिणायन में रविवार ); जयन्त ( उत्तरायण में रविवार ) ; विजय ( शुक्ल ७ को रोहिणी के साथ रविवार ); पुत्रद (रोहिणी या हस्त के साथ रविवार, उपवास एवं पिण्डों के साथ श्राद्ध ) ; आदित्याभिमुख (माघ कृ० ७ को रविवार, एकभक्त, प्रातः से सायं तक महाश्वेता मन्त्र का जप ); हृदय (संक्रान्ति के साथ रविवार, नक्त, सूर्य-मन्दिर में सूर्याभिमुख होना, आदित्यहृदय मन्त्र का १०८ बार जप ); रोगहा (पूर्वाफाल्गुनी को रविवार, अर्क के दोने में एकत्र किये हुए अर्क - फूलों से पूजा ) ; महाश्वेताप्रिय ( रविवार एवं सूर्यग्रहण, उपवास, महाश्वेता का जप ); महाश्वेता मन्त्र है - ह्रीं ह्रीं स इति', देखिए हेमाद्रि ( व्रत २, ५२१ ) । अन्तिम दस के लिए देखिए कृत्यकल्पतरु ( व्रत १२-२३), हे० ( ० २, ५२४- २८ ) । आदित्यमण्डल - विधि : लाल चन्दन या कुंकुम से रचित वृत्त में श्वेत गेहूँ या जौ के आटे में गाय के घृत एवं गुड़ को मिलाकर उसकी टिकिया रख दीजिए और उस पर लाल पुष्पों को रखकर पूजा कीजिए; हे०, ० (१, ७५३-७५४, भविष्योत्तरपुराण ४४। १ ९ से उद्धरण); अहल्याकामधेनुं । हस्त नक्षत्र में रविवार या आगे आने वाले रविवार को नक्त (केवल रात्रि में मोजन); वारव्रत; सूर्य देवता; एक वर्ष; मत्स्य० ९७।२-१९; कृ० क० त० (व्र० ३१-३४), हे०, व्र० (२, ५३८-४१); कृत्यरत्नाकर (६०८-६१० ) । आदित्यवारव्रत : मार्गशीर्ष से; सूर्य-पूजा; एक वर्ष; प्रत्येक मास सूर्य के अन्य नाम, विभिन्न फलों का दान, यथा--मार्ग ० में मित्र नाम एवं नारियल फल, पौष में विष्णु एवं बीजपूर फल । व्रतार्क । इससे कुष्ठ जैसे रोग भी दूर हो जाते हैं । आदित्यवारव्रतानि : हे०, ब० (२, ५२० - ५७७), कृत्यकल्पतरु (व्र० ८ ), व्रतार्क । आदित्यव्रत : (१) मनुष्यों, विशेषतः स्त्रियों के लिए; आश्विन के रविवार को प्रारम्भ; एक वर्ष, सूर्य देवता; व्रतार्क में आया है कि साम्ब को किस प्रकार कृष्ण ने शाप दिया कि उसे कुष्ठ हो गया और इस व्रत से किस प्रकार वह रोगमुक्त हो गया; (२) रविवार एवं चतुर्दशी तथा रेवती या रविवार, अष्टमी एवं मघा; शिव की पूजा; तिल खाना, हेमाद्रि ( व्रत० २, ५८९) । आदित्यशयन : रविवार एवं हस्त नक्षत्र के साथ सप्तमी या जब रविवार के साथ सप्तमी को सूर्य की संक्रांति हो; उमा एवं शिव (सूर्य से शिव भिन्न नहीं हैं ) की प्रतिमाओं की पूजा; सूर्य को नमस्कार, उसके पैरों से लेकर विभिन्न अंगों को हस्त से लेकर अन्य नक्षत्रों के समान मानना, पाँच चद्दरों एवं तकियों तथा एक गाय के साथ एक सुन्दर पलंग का दान ; मत्स्य ० ( ५५।२ - ३३ ) | पद्म० (५।२४-६४-९६ ) । आदित्यशान्तिव्रत : हस्त के साथ रविवार ; अर्क की समिधा के साथ सूर्य - प्रतिमा की पूजा ( समिधा की संख्या १०८ या २८ हो ) ; मधु एवं घृत या दही एवं घृत से युक्त समिधा से होम; सात बार; हे०, व्र० (२, ५३७-३८) । आदित्य हृदयविधि : जब संक्रान्ति हो उस रविवार को सूर्य मन्दिर में आदित्य हृदय नामक मन्त्र का १०८ बार पाठ एवं केवल रात्रि में खाना; हे०, व्र० (२, ५२६ ) । रामायण ( युद्धकाण्ड १०७) में ऐसा आया है कि अगस्त्य ने आकर राम से इस मन्त्र के पाठ की बात कही है, जिससे कि रावण के ऊपर विजय प्राप्त हो । कृत्यकल्पतरु (१९-२० ) में आया है कि किसी संक्रान्ति वाले रविवार को हृदय या आदित्यहृदय कहा जाता है । आदित्याभिमुख विधि : देखिए कृत्यकल्पतरु ( व्रत० १८-१९ ) ; हे० ब्र० (२, ५२५-२६); कृत्यरत्नाकर ( ४९४-४९५ ) । प्रातः स्नान के उपरान्त सायंकाल तक सूर्याभिमुख होकर खड़ा रहना चाहिए। किसी स्तम्भ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002792
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1971
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size18 MB
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