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________________ १०० धर्मशास्त्र का इतिहास अपराजिता-सप्तमी : भाद्र० शु० ७; एक वर्ष; सूर्यपूजा; कृत्यकल्पतरु (व० १३२-१३५); हे. व० (१, ६६७-६८, भविष्य०, ब्राह्म० ९८।१-१९), पुरुषार्थचिन्तामणि (१०४); भाद्र० शु० ७ को अपराजिता कहा जाता है। चतुर्थी को एकभक्त से आरम्भ,पंचमी को नक्त, षष्ठी को उपवास एवं सप्तमी को पारण। अपराजिता-दशमी : आश्विन शु० १-१०; विशेषतः राजा के लिए; तिथि; वर्ष में एक बार ; देवीपूजा; हे० व० (१, ९६८-७३, गोपथ ब्रा०, स्कन्द० आदि के उद्धरण); कृत्यरत्नाकर (३६५-३६६, यह शिष्टाचार पर आधृत है); पुरुषार्थचिन्तामणि (१४५-१४६); स्मृतिकौस्तुभ (३५२); हे० ७० एवं स्मृतिको० के भत से राम ने श्रवण नक्षत्र में आक्रमण आरम्भ किया था। ___अपराध-शत-व्रत : भार्ग० १२ या अमावास्या या ८, शु० या कृ० पक्ष से आरम्भ ; एक वर्ष ; हरि-पूजा; भविष्योत्तर० (१४६।६-२१) में सौ अपराधों का उल्लेख है, जो इस व्रत से नष्ट हो जाते हैं; वराह० (१०७) में ३२ अपराध वर्णित हैं। अपापसंक्रान्ति-व्रत : संक्रान्ति से आरम्भ ; एक वर्ष; सूर्य देवता ; श्वेत तिल की आहुति ; हे० ७० (२, ७३९-७४०)। अभिरूपपति-व्रत : इस व्रत का यह नाम इसलिए है कि इसके द्वारा विद्वान् या सुन्दर पति मिलता है; मृच्छकटिक नाटक (१)। अभीष्टतृतीया : भार्ग० शु० ३ से आरम्भ ; तिथि ; गौरी-पूजा; स्कन्द० (काशीखण्ड, ८३।१-१८)। अभीष्ट सप्तमी : किसी भास की सप्तमी तिथि ; समुद्रों, द्वीपों, पातालों एवं पृथिवी की पूजा; हे० ७० (१, ७९१, विष्णुधर्मोत्तर०)। अमावास्या : हेभाद्रि (काल पर चतुर्वर्ग-चिन्तामणि, पृ० ३११-३१५; ६४३-४४); कालविवेक (३४३४४); तिथितत्त्व (१६३), गोभिल-गृह्य (१।५।५) का भाष्य, पुरुषार्थ-चिन्तामणि (३१४-३४५); वर्षक्रियाकौमुदी (९-१०) में महाभारत एवं पुराणों से उद्धरण आये हैं जिनके आधार पर सोमवार, मंगलवार या बृहस्पति के दिन तथा अनुराधा, विशाखा एवं स्वाति नक्षत्रों में पड़ने वाली अमावास्या विशेष रूप से पवित्र मानी जाती है। हे० ७० (२, २४६-२५७); माधवकृत कालनिर्णय (३०९) एवं व्रतार्क (३३४-३५६)। अमावास्या-कृत्य : देखिए स्मृतिकौस्तुभ (२८१); कृत्यसार-समुच्चय (२१-२३); कृत्यकल्पतरु (व्रत०, ८१-८२)। अमावास्था-निर्णय : कृत्यरत्नाकर (६२२-६२४); कालनिर्णय (३०१-३०७)। अमावास्यापयोव्रत : प्रत्येक अमावास्या को केवल दुग्ध पर ही रह जाना; तिथि; एक वर्ष ; विष्णुपूजा; हे० ७० (२, २५४)। अमावास्या-वत : (१) हे० ७० (२, २५७, कूर्मपुराण से उद्धरण); किसी ब्राह्मण को शंकर भानकर कुछ दान देना; (२) हे० ७० (२, २५७, कूर्म० से); ब्रह्मा को प्रसन्न करने के लिए तीन ब्राह्मणों का सम्मान करना। अमावास्या-प्रतानि : हे० ७० (२, २४६-२५७); तिथितत्त्व (१६२), व्रतार्क। अमुक्ताभरण-सप्तमी : भाद्र० शु० ७; शंकर एवं उमा की पूजा; हेमाद्रि (७० १, ६३२-६३८); स्मृतिकौ० (२२२-२२८); नारदीय० (११११६।३२-३३) अम्बुवाची : वह काल जब सौर आषाढ़ में सूर्य आर्द्रा नक्षत्र के प्रथम चरण में होता है; कृत्यकल्पतर (व्रत, २८३, राजमतिण्ड का उद्धरण है); कृत्यतत्त्व (४३४)। जब सूर्य मिथुन राशि में प्रवेश करता है उस दिन तीन दिनों एवं २० घटियों तक न बीजारोपण होता है और न वेदाध्ययन। बंगाल में इन दिनों ज्येष्ठ, आषाढ़ के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002792
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1971
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size18 MB
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